सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संवैधानिक बेंच ने सोमवार को तलाक को लेकर अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि जिस शादी में सुलह की गुंजाइश ही न बची हो, तो कोर्ट भारत के संविधान के आर्टिकल 142 के तहत तलाक तुरंत दे सकता है। इसके लिए उन्हें फैमिली कोर्ट नहीं जाना होगा और न ही 6 महीने का इंतजार अनिवार्य नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्तियों के इस्तेमाल को लेकर यह फैसला सुनाया। अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को अधिकार है कि सीधे तलाक का आदेश दे सकता है। ऐसी स्थिति में आपसी सहमति से तलाक के मामलों में 6 महीने इंतज़ार करने की कानूनी बाध्यता भी जरूरी नहीं होगी।
Supreme Court’s five-judge Constitution bench holds that it can dissolve a marriage on the ground of irretrievable breakdown of marriage.
Supreme Court says it can invoke special power granted to it under Article 143 of the Constitution and that the mandatory waiting period of… pic.twitter.com/DFdJgM9mJ7
— ANI (@ANI) May 1, 2023
क्या था मामला ?
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इस सवाल को लेकर सुनवाई की थी कि शीर्ष अदालत को को किसी शादी को सीधे रद्द करार देने का अधिकार है या उसे निचली अदालत के फैसले के बाद ही अपील सुननी चाहिए। पिछले दो दशक से अधिक समय से सुप्रीम कोर्ट ने असाधारण रूप से टूटी हुई शादियों को रद्द करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत मिली विशाल शक्तियों का प्रयोग करता रहा है।
हालांकि, सितंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट इस बात पर विचार करने के लिए सहमत हो गया था कि क्या वह दोनों पार्टनर की सहमति के बिना अलग रह रहे जोड़ों के बीच विवाह को रद्द कर सकता है। 29 सितंबर, 2022 को पीठ ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, ए. एस ओका, विक्रम नाथ और जे. के महेश्वरी की संवैधानिक बेंच जिस मुद्दे के तहत सुनवाई की, वह था कि हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13बी के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए अनिवार्य किया गया 6 महीने का समय हटाया जा सकता है या नहीं।
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