नई दिल्ली: देश की निगाहें अब राष्ट्रपति चुनावों पर है, देखना दिलचस्प रहेगा कि आगामी 20 तारिख को देश का नया उत्तराधिकारी कौन होगा। हालांकि अभी तक दोनों ही पक्षों ने अपने उम्मीदवार का नाम नहीं बताया है लेकिन अनुमान है कि अंदर ही अंदर सब तय हो चुका है। दोनों ही पार्टी अपना-अपना दांव मजबूत रखना चाहती है।
चुनावों की समीक्षका करने वालों का कहना है कि इस बार भी पीएम मोदी और अमित शाह किसी ऐसे का ही नाम जनता के सामने रखेंगे जिसकी उम्मीद शायद बहुत कम हो। कहने का मतलब सीधा सा ये है कि हमेशा की तरह एक नया चेहरा और विपक्ष चारों खाने चित। लेकिन फिर भी कुछ ऐसे चेहरे हैं जिनकी उम्मीद की जा रही है। तो चलिए आइए बताते हैं ऐसे ही कुछ संभावित चेहरों के बारें में…।
थावरचंद गहलोत:
इस लिस्ट में सबसे आगे जिस नाम की चर्चा है वह है मोदी सरकार में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलौत की। 69 साल के गहलौत राज्यसभा के सदस्य हैं और संसद के सौम्य और सरल चेहरे माने जाते हैं। उन्हें प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह दोनों का नजदीकी माना जाता है। दलित समुदाय से आने वाले थावरचंद गहलौत कुछ दिन के लिए मीसाबंदी विवाद में भी फंसते नजर आए थे लेकिन जल्द ही प्रदेश और केंद्र सरकार की सफाई के बाद यह मामला ठंडा पड़ गया। माना जा रहा है कि थावरचंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर भाजपा दलितों को अपने पाले में करने के लिए बड़ा दांव खेल सकती है।
सुषमा स्वराज:
इस पद के लिए चौथा बड़ा नाम है केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का। मोदी कैबिनेट की सबसे योग्य और सक्रिय मंत्री के रूप में सुषमा ने अपनी पहचान बनाई है। हर मोर्चे पर वह सबसे आगे खड़ी दिखाई देती हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से उन्हें लगातार स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों से जूझना पड़ रहा है। चर्चाएं ये भी हैं कि इसके चलते वह भी काफी समय से सक्रिय राजनीति से विराम लेना चाहती हैं। अगर इन खबरों पर यकीन किया जाए तो तय है कि पार्टी सुषमा का नाम राष्ट्रपति पद के लिए आगे बढ़ा सकती है। सुषमा के नाम पर न ही पार्टी में किसी को आपत्ति होगी न ही संघ को, दूसरे दलों में भी उन्हें काफी लोकप्रिय माना जाता है।
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लालकृष्ण आड़वाणी:
कभी पार्टी के शिखर पुरुष रहे लालकृष्ण आडवाणी आज मार्गदर्शक मंडल में रहकर अघोषित वनवास काट रहे हैं। तमाम योग्यताओं के बाद भी हालातों के चलते प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में असफल रहे आडवाणी को लंबे समय से राष्ट्रपति पद का स्वभाविक दावेदार माना जाता है। हालांकि वर्तमान में हालात उनके मुफीद नहीं दिखाई देते लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि पार्टी में उनके समर्थकों की संख्या आज भी कम नहीं है। राजनाथ सिंह और सुषमा स्वराज सिंह जैसे बड़े नेताओं की गिनती उनके शिष्यों के तौर पर होती है और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी कभी उनका शिष्य माना जाता था। ऐसे में पार्टी उनकी वफदारियों का इनाम उन्हें दे सकती है।
वैंकेया नायडू:
केंद्रीय मंत्री वैंकेया नायडू का नाम भी राष्ट्रपति के लिए एनडीए के प्रमुख चेहरे के तौर पर सामने आ रहा है। उसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि वैंकेया उस दक्षिण से आते हैं जहां भाजपा लाख प्रयास के बाद भी अभी तक अपना मजबूत वजूद खड़ा नहीं कर पाई है। पूर्व में पार्टी के अध्यक्ष रह चुके वैंकेया नायडू प्रधानमंत्री मोदी के सिपहसलार माने जाते हैं और हर मौके पर वह मोदी के साथ खड़े दिखाई देते हैं ऐसे में इसका ईनाम भी उन्हें मिल सकता है। वैंकेया मोदी-शाह की जोड़ी के अलावा संघ के भी नजदीकी माने जाते हैं।
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द्रौपदी मुर्मू :
झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मु का नाम पिछले कुछ दिनों से लगातार चर्चाओं में बना हुआ है। उन्हें प्रधानमंत्री मोदी की पहली पसंद बताया जा रहा है। उसकी बड़ी वजह ये भी है कि अभी तक देश में दलित भी राष्ट्रपति बन चुके हैं और अल्पसंख्यक भी, लेकिन कोई आदिवासी आज तक इस पद पर नहीं पहुंचा है। ऐसे में सामाजिक समरसता का बड़ा उदाहरण पेश करते हुए भाजपा मुर्मु को आगे कर सकती है। उत्कल यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट मुर्मु भाजपा के उस अभियान में भी फिट बैठती हैं जिसके सहारे पार्टी उड़ीसा जैसे बड़े राज्य में खुद को सत्ता तक पहुंचाने की कवायद कर रही है। दो बार उड़ीसा की विधायक रही मुर्मु का नाम राज्यपाल के लिए भी इसी तरह चौंकाते हुए सामने आया था।
झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मु का नाम पिछले कुछ दिनों से लगातार चर्चाओं में बना हुआ है। उन्हें प्रधानमंत्री मोदी की पहली पसंद बताया जा रहा है। उसकी बड़ी वजह ये भी है कि अभी तक देश में दलित भी राष्ट्रपति बन चुके हैं और अल्पसंख्यक भी, लेकिन कोई आदिवासी आज तक इस पद पर नहीं पहुंचा है। ऐसे में सामाजिक समरसता का बड़ा उदाहरण पेश करते हुए भाजपा मुर्मु को आगे कर सकती है। उत्कल यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट मुर्मु भाजपा के उस अभियान में भी फिट बैठती हैं जिसके सहारे पार्टी उड़ीसा जैसे बड़े राज्य में खुद को सत्ता तक पहुंचाने की कवायद कर रही है। दो बार उड़ीसा की विधायक रही मुर्मु का नाम राज्यपाल के लिए भी इसी तरह चौंकाते हुए सामने आया था।
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