क्या भारत में आ रही है 2008 जैसी आर्थिक मंदी, जानें कैसा होगा इसका असर

अगले 12 महीने के भीतर दुनिया की ज्यादातर अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आने से खुद को नहीं बचा पायेंगी। इस रिपोर्ट के अनुसार अलग-अलग देशों के केन्द्रीय बैंकों की सख्त नीतियां और आम आदमी के जीवनयापन की बढ़ती लागत पूरी दुनिया को एक बार फिर 2008 जैसी मंदी की ओर धकेल रहे हैं।

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बिजनेस डेस्क: मंगलवार का दिन यानी आज का दिन आपके आने वाले दिनों की मुश्किलें बढ़ा सकता है। दरअसल हम यहां आज भविष्य में आनी वाली उस आर्थिक मंदी (Global Economy Crisis) की बात करने वाले जिसको भारत पहले भी झेल चुका है और शायद वापस झेलने वाला है। ऐसा हम नहीं दुनियाभर अर्थशास्त्रियों का मानना है।

इन दिनों दुनियाभर के आर्थिक चिंतकों की कई रिपोर्ट्स मीडिया में सुर्खियों में बनीं हुई है। कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि तेजी से गिरी हुई विकास दर के दौर से गुजरते हुए हम मंदी के दौर का सामना कर सकते हैं। जिसमें ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म नोमुरा होल्डिंग्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले 12 महीने के भीतर दुनिया की ज्यादातर अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आने से खुद को नहीं बचा पायेंगी।

इस रिपोर्ट के अनुसार अलग-अलग देशों के केन्द्रीय बैंकों की सख्त नीतियां और आम आदमी के जीवनयापन की बढ़ती लागत पूरी दुनिया को एक बार फिर 2008 जैसी मंदी की ओर धकेल रहे हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर मंदी का पूरा असर पड़ेगा।

क्या होते हैं केन्द्रीय बैंक-
हर देश में बड़े बड़े बैंक होते हैं, जो ब्याज दरें तय करते हैं। जैसे भारत में रिर्जव बैंक ऑफ इंडिया है। अब होता ये है कि जब अलग अलग कारणों से महंगाई बढ़ने लगती है तो ये केन्द्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा देते हैं और जब ब्याज दरें बढ़ती हैं तो आपने जो लोन लिया है, उसकी EMI महंगी हो जाती है। जैसें पिछले दिनों दो बार भारत में रेपो रेट बढ़ा है।

उदाहरण के लिए, RBI ने पिछले महीने ब्याज दरों को 0.40 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.4 प्रतिशत कर दिया था और ऐसा करने वाला RBI दुनिया का अकेला बैंक नहीं है। दुनिया के 50 से ज्यादा देशों में केन्द्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरें बढ़ाई गई हैं, जिससे इन देशों में लोन की EMI महंगी हो गई है।

मंहगाई का केन्द्रीय बैंकों से क्या है कनेक्शन
उदाहरण के लिए, RBI को भारत में बैंकों का बैंक कहा जाता है। यानी अगर RBI बैंकों को लोन देते वक्त ब्याज दरें बढ़ाता है तो बदले में आपका बैंक भी आपकी ब्याज दरें या EMI बढ़ा सकता है। अब आप सोच रहे होंगे कि महंगाई कम करने के लिए तो RBI को ब्याज दर घटा देनी चाहिए ताकि लोगों के पास ज्यादा पैसा बच पाए। तो फिर RBI और दूसरे केन्द्रीय बैंक ब्याज दरें क्यों बढ़ाते हैं।

आखिर RBI ने क्यों बढ़ाईं ब्याज दरें?
तो इसका जवाब ये है कि अगर बैंक ब्याज दरों में कमी करेंगे तो लोगों के पास ज्यादा पैसा बचेगा और ऐसी स्थिति लोग और ज्यादा सामान खरीदेंगे यानी डिमांड बढ़ जाएगी जबकि सप्लाई पहले के जैसी ही बनी रहेगी। इससे महंगाई में और ज्यादा इजाफा होगा। क्योंकि डिमांड और सप्लाई में बड़ा अंतर पैदा हो जाएगा और इसी वजह से ये ब्याज दरें बढ़ाई जाती हैं।

अभी और होंगे शेयर मार्केट धड़ाम-
नोमुरा ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि शेयर मार्केट के गिरावट का दौर अभी थमने वाला नहीं है। नोमुरा ने कहा है कि आर्थिक मंदी के कारण दुनिया भर के बाजारों में और गिरावट होने वाली है। रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका की अर्थव्यवस्था में इस मंदी के कारण 1.5 फीसदी गिरावट आने वाली है। बता दें कि कोरोना महामारी के समय यह 10 फीसदी और 1929 में आई महान आर्थिक मंदी के समय यह 4 फीसदी था।

रूस-यूक्रेन युद्ध बना दुनियाभर के लिए परेशानी-
नोमूरा के अनुसार, यूक्रेन पर रूस के हमले से सप्लाई चेन की बाधाएं पैदा हुई हैं। इन समस्याओं से ग्लोबल इकोनॉमी के ऊपर मंदी का खतरा पहले से ही अधिक हो चुका है। अगर रूस ने यूरोप में गैस स्पलाई पूरी तरह से रोक दिया तो यूरोपीय देशों में मंदी की मार और गहरी हो सकती है। रिपोर्ट के अनुसार यूरोप की इकॉनोमी में एक फीसदी का नुकसान हो सकता है। वहीं, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और दक्षिण कोरिया जैसे देश भी मंदी के गंभीर खतरे से जूझ रहे हैं। अगर यहां हाउसिंग सेक्टर टूटा तो यहां मंदी की मार और खतरनाक हो सकती है। इस मंदी में सबसे अधिक नुकसान दक्षिण कोरिया को हो सकता है।

भारत के लिए लगभग-लगभग संकेत अच्छे-
रिपोर्ट के मुताबिक, एशिया की सबसे बड़ी और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी चीन को लेकर नोमुरा का अनुमान है कि अनुकूल नीतियों के कारण यह देश मंदी की मार से बच सकता है। हालांकि चीन के ऊपर जीरो-कोविड स्ट्रेटजी के चलते कड़े लॉकडाउन का खतरा है। प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज ग्रोथ रेट वाला देश भारत भी मंदी की मार से अछूता रह सकता है। हालांकि ग्लोबल इकोनॉमी की मंदी के सीमित असर की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।

क्या होती है आर्थिक मंदी?
किसी भी देश का विकास वहां की अर्थव्यवस्था पर निर्भर होता है। जब अर्थव्यवस्था में लगातार कुछ समय तक (कम से कम तीन क्वार्टर तक) विकास थम जाता है, रोजगार कम हो जाता है, महंगाई बढ़ने लगती है और लोगों की आमदनी अप्रत्याशित रूप से घटने लगती है तो इस स्थिति को ही आर्थिक मंदी का नाम दिया जाता है। पूरी दुनिया में जब से कोरोना संकट शुरू हुआ है उसके बाद से अलग-अलग अर्थव्यवस्थाओं के मंदी की चपेट में आने का खतरा बढ़ गया है। उसके बाद लगातार जारी रूस-यूक्रेन की लड़ाई अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ सकती है। इसलिए अर्थशास्त्री चिंतित हैं कि दुनियाभर में साल 2008 जैसे हालात न बन जाए।

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