रेस ऑफ मून के लिए अमेरिका से लेकर कई बड़े देश होड़ में लगे हैं। जिसमें कल भारत चांद (Chandrayaan3Landing) पर अपनी सफल लैडिंग के बाद इतिहास रचने वाला है। भारत दुनिया का पहला देश बन जाएगा जो चांद के उस हिस्से की खोज करेगा जहां आज तक कोई नहीं पहुंच पाया। इसके साथ ही चंद्रयान-3 वहां जिन जिन चीजों की खोज करेगा, वो पूरी दुनिया के लिए खास होने वाली है। इसके साथ ही भारत के लिए मून इकोनॉमी के दरवाजे भी खुल जाएंगे। चलिए जानते हैं क्या है मून इकोनॉमी…
मून इकोनॉमी क्या है?
भारत ने अपने हेवी लिफ्ट लॉन्च व्हीकल LVM3-M4 से चंद्रयान को लॉन्च किया है. बीते दिनों अमेजन के फाउंडर जेफ बेजोस की कंपनी ‘ब्लू ओरिजिन’ ने इसरो के LVM3 रॉकेट के इस्तेमाल में अपना इंटरेस्ट दिखाया था। जेफ बेजोस अपनी स्पेस कंपनी ब्लू ओरिजिन में भारत के LVM3 का इस्तेमाल कॉमर्शियल और टूरिज्म पर्पज के लिए करना चाहते हैं। चंद्रयान-3 भारत के लिए भारी भरकम मून इकॉनोमी के दरवाजे खोलने वाला है। स्पेस एक्स जैसी कई कंपनियां चांद तक के ट्रांसपोर्ट को बड़ा बिज़नस मान रही हैं। चंद्रयान के जरिए भारत उस बड़े बिजनेस में अपनी हिस्सेदारी के लिए तैयार है।
4 करोड़ 20 लाख डॉलर की होगी मून इकॉनोमी
स्पेस इकोनॉमी एक्सपर्ट मुताबिक, चांद तक होने वाले ट्रांसपोर्टेशन का व्यापार दो हजार 40 तक 42 बिलियन डॉलर तक हो सकता है। 2020 से 2025 के बीच 9 बिलियन डॉलर के मून इकोनॉमी का अनुमान लगाया है। साल 2026 से 2030 तक के लिए मून इकॉनोमी का अनुमान 19 बिलियन डॉलर का है. 2031 से 2035 के बीच 32 बिलियन डॉलर की मून इकॉनोमी होगी और 2036 से 2040 के बीच 42 बिलियन डॉलर यानी 4 करोड़ 20 लाख डॉलर की होगी।
सिर्फ चांद तक होने वाले ट्रांसपोर्टेशन के व्यापार से ही मुनाफा नहीं होगा, चांद से मिलने वाला डाटा भी बेहद अहम होने वाला है। हर देश सफलतापूर्वक चांद पर नहीं उतर सकता है। तो वो वहां से मिलने वाली जानकारी भारत से ही करोड़ों डॉलर में खरीदी जाएगी, ताकि बिना यान भेजे चांद पर रिसर्च की जाए। तो अपना दिल थाम लीजिए क्योंकि कल भारतीयों के लिए बड़ा दिन होने वाला है। जहां कुछ पलों के लिए धड़कने थमने वाली है।
चांद के दक्षिण ध्रुव क्यों है खास
दरअसल, वैज्ञानिकों का मानना है कि चांद का दक्षिणी ध्रुव बिल्कुल पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका जैसा है। यानी वो इलाका बिल्कुल ठंडा है। वहीं अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऑर्बिटरों से जो परीक्षण किए गए उसके आधार पर ये कहा जाता है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर भारी मात्रा में बर्फ है। जाहिर सी बात है कि अगर वहां बर्फ के सुबूत मिले तो पानी भी मिल सकता है। और अगर ऐसा हुआ तो जीवन की संभावना भी बन सकती है। इसलिए चांद के इस हिस्से का महत्व पूरी दुनिया के लिए बहुत ज्यादा है।
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