Mast Mein Rehne Ka’ Review : अकेलेपन और जीवन जीने की कहानी है ‘मस्त में रहने का’

Mast Mein Rehne Ka' Review: अभिनेता जैकी श्रॉफ और अभिनेत्री नीना गुप्ता की आगामी फिल्म ‘मस्त में रहने का’ 8 दिसंबर को अमेज़न प्राइम पर रिलीज हो चुकी है। फिल्म की कहानी मेट्रो में रहने वाले चार अलग-अलग आयु वर्ग के पात्रों पर आधारित है, जो जिंदगी में अनेक संघर्ष होने के बावजूद जीवन को बेहतर बनाने में मस्त रहते हैं।

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Mast Mein Rehne Ka’ Review: अभिनेता जैकी श्रॉफ और अभिनेत्री नीना गुप्ता की आगामी फिल्म ‘मस्त में रहने का’ 8 दिसंबर को अमेज़न प्राइम पर रिलीज हो चुकी है। फिल्म की कहानी मेट्रो में रहने वाले चार अलग-अलग आयु वर्ग के पात्रों पर आधारित है, जो जिंदगी में अनेक संघर्ष होने के बावजूद जीवन को बेहतर बनाने में मस्त रहते हैं। घनी आबादी वाले शहर में रहने वाले इन पात्रों में अगर कुछ समान है, तो वह है, इनका अकेलापन। इस फिल्म में छोटी-छोटी खुशियां दुख, भूली बिसरी यादें जैसे हर पहलू को बहुत ही बारीकी से दिखाया गया है।

‘मस्त में रहने का’ की कहानी

निर्देशक विजय मौर्या कि फिल्म ‘मस्त में रहने का’  में चार पात्रों की कहानी को दिखाया गया है। एक कहानी में मिस्टर कामत (जैकी श्रॉफ) और प्रकाश कौर (नीना गुप्ता) हैं, और दूसरी कहानी नन्हे और रानी की। फिल्म की कहानी मिस्टर कामत की पत्नी की मृत्यु हो जाती है। जिसके बाद वह जिंदगी से हतास रहने लगते हैं। दूसरी ओर प्रकाश कौर यानी नीना गुप्ता अपने बेटे के साथ कनाडा में रहती रही हैं, लेकिन पति के जाने के बाद वह कनाडा से मुंबई आ जाती हैं। प्रकाश कौर भी अंदर टूटी होती हैं लेकिन किसी के सामने जाहिर नहीं करती। दूसरी कहानी में नन्हे एक लेडीज ट्रेलर होता है। नन्हे कर्ज में डूबे होते हैं और इससे निकलने के लिए घर में अकेले रहने वाले बुजुर्गो के घर चोरी करके अपना कर्ज चुकाने की कोशिश करते हैं। वहीं नन्हे को ट्रैफिक सिगनल पर भीख मांगने वाली लड़की रानी से प्यार हो जाता है। दोनों कहानियां का कब, कैसे और कहां मिलन होता है इस पर आधारित है।

‘गली बॉय’ और ‘तुम्हारी सल्लू’ जैसी फिल्में बनाने वाले निर्देशक विजय मौर्या ने, इस फिल्म में नन्हे और रानी के किरदार के जरिए, मुंबई जैसे महानगर की झोपड़पट्टी में रहने वाले लोगों की मनोदशा दिखाने की कोशिश की है, वहीं मिस्टर कामत और प्रकाश कौर के किरदार मुंबई के पॉश इलाकों में अकेले रहने वाले बुजुर्गों की मजबूरी और उनके अकेलेपन को दर्शाते हैं।

किरदारों का जबरजस्त अभिनय

मिस्टर कामत की भूमिका में जैकी श्राफ ने एक बार से अपनी अभिनय से लोगों का दिल जाता है। फिल्म में जैकी श्रॉफ एक 75 वर्ष के बुजुर्ग की भूमिका में कमाल के लग रहे हैं। वहीं बात करें नीना गुप्ता की तो प्रकाश कौर की भूमिका में वह भी कमाल का अभिनय करती नजर आईं। मिस्टर कामत को बात -बात में मद्रासी बुलाना और मद्रासी बोले जाने पर मिस्टर कामत का सफाई देना, फिल्म के बहुत ही भावुक प्रसंग हैं। नन्हे की भूमिका में अभिषेक चौहान और रानी की भूमिका में मोनिका पवार का भी काम सरहानीय है। पंचायत सीरीज में उप प्रधान की भूमिका निभा चुके फैसल मालिक ने फिल्म में फल बेचने वाले बाबूराम की भूमिका में जान फूंक दी है। फिल्म में राखी सावंत का ट्रैक थोड़ा सा डिस्टर्ब जरूर करता है, लेकिन फिल्म की कहानी में उनके किरदार को इस तरह से जोड़ा गया है कि उनकी भी भूमिका को नजर अंदाज नहीं कर सकते हैं।

तकनीकी रूप से कमजोर

फिल्म में छोटे छोटे ऐसे क्षण आते रहते हैं कि लगता है जिंदगी में सब दुख दर्द भूलकर मस्त में ही रहना चाहिए। इंसान के जीवन में एक दौर ऐसा आता है जब इंसान जिंदगी जीता है, लेकिन जब जिंदगी इंसान को जीने लगे तब किस तरह से समय के साथ अपने जीवन को अनुकूल बनाया जा सकता है। यही, इस फिल्म में दिखाया गया है। कलाकारों के डायलॉग्स को और बेहतर तरीके से लिखा जा सकता था। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी में कुछ खास दम नहीं दिखाई दिया। फिल्म का विषय जितना अच्छा है तकनीकी रूप से फिल्म उतनी ही कमजोर नजर आ रही है।

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