प्‍यार में कंफ्यूजन या कमिटमेंट से परेशान तो जरूर देखें ये 10 फिल्‍में

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मुम्बई: इसमें कोई दोराय नहीं कि हमारी फिल्मों ने हमें प्यार करना सिखाया लेकिन अब दौर बदला तो प्‍यार का रूप भी पर्दे पर बदल गया। बीते कुछ सालों में सिनेमा ने हमें कई ऐसी फिल्मों से रू-ब-रू करवाया जो ‘कंफ्यूज्‍ड’ प्रेमियों को रास्‍ता दिखाती हैं। जो जिंदगी की कल्‍पना और हकीकत के बीच का फर्क बताती हैं। तो आज हम ऐसी ही 10 फिल्में आपके लिए लेकर आए है…

हाफ गर्लफ्रेंड 2017:

हाल ही में सबसे ज्यादा चर्चा में है.. ‘हाफ गर्लफ्रेंड’। कहानी बिहार के लड़के और दिल्‍ली की लड़की की है। माधव (अर्जुन कपूर) गंभीर प्रेम करता है रिया सोमानी (श्रद्धा कपूर) से। रिया ‘दोस्‍त से ज्‍यादा और गर्लफ्रेंड से कम’ वाला रिश्‍ता चाहती है। कहने के लिए एकतरफा इश्‍क ताकत भले ही हो, लेकिन वास्‍तविकता कुछ और ही होती है। कहने का मतलब ये है कि कमिटमेंट का इलाज पहले कर लिया जाता तो दर्द का पता चल जाता है…।

बेफिक्रे 2016:

बेफिक्रे’ की कहानी ‘नेवर से आई लव यू’, मस्‍ती है लेकिन किसी ने कहा है ना भटके हुए को मंजिल तलाशती है। ऐसा ही कुछ फिल्म में धरम (रणवीर) और शायरा (वाणी) के साथ भी हुआ। फिल्म में बार-बार टकराते है लेकिन कहते है ना जब जिसे मिलना होता है तब मिलते है। फिल्म तो अपने दर्शकों को ये ही कहती है जिंदगी सिर्फ जवानी नहीं है, बुढ़ापा भी है।

ये जवानी है दीवानी 2013:

कबीर (रणबीर कपूर) और नैना (दीपिका पादुकोण) एक-दूसरे से बहुत अलग हैं। कबीर रुकना नहीं चाहता। दुनिया देखना चाहता है। उसे लगता है जिंदगी ऐसे ही चलेगी। ठहरने की जरूरत क्‍या है। प्‍यार और रिश्‍ते उसे ठहराव जैसे लगते हैं। नैना की अपनी राह है। वह जिंदगी को अपनी रफ्तार से जीना चाहती है। प्‍यार और रिश्‍तों का मतलब रुकना नहीं होता। किसी के साथ चलना होता है। फिल्म अपने दर्शकों को ये ही बताना चाहती है कि जिंदगी केवल एक रास्ता जिसपर चलने के लिए किसी के साथ की जरूरत है।

सलाम नमस्ते 2005:

लिव इन रिलेशन आज के समय में शहरों के लिए सामान्‍य है। जाहिर है जब दो लोग आपसी रजामंदी से साथ रहना चाहें तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है। मसला साथ होने का है। एक-दूसरे को समझने का। एक-दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखने। तभी तो रिश्‍ता है। वर्ना राह चलते लोग भी रोज मिलते हैं। और जब इन सब बोझ लगे तो जिंदगी निख‍िल (सैफ अली खान) व अंबर (प्रीति जिंटा) जैसी हो जाती है। प्‍यार जिम्‍मेदारी का एहसास है। बिना इस एहसास के प्‍यार पाना भी मुश्‍क‍िल है और निभाना भी।

ए दिल है मुश्किल 2016:

अयान (रणबीर कपूर) और अलीजा (अनुष्‍का शर्मा) की यह कहानी एकतरफा प्‍यार को भी मानती है। दोस्‍ती को भी। साथ को भी और एक-दूसरे के साथ नहीं होने के एहसास को भी। दोस्‍त से प्‍यार होना गलत नहीं है। और प्‍यार में दोस्‍ती का होना सबसे जरूरी। प्‍यार में तड़प सिर्फ दर्द दे सकती है। सुकून साथ होने में है। प्‍यार सिर्फ शारीरिक जरूरतों तक सीमित नहीं है।

बचना ए हसीनो 2008:

असल जिंदगी पर्दे पर नहीं चलती..जी हां फिल्म बचना ए हसीनो इसका एक उदाहरण है। राज (रणबीर) को लगता है कि जिंदगी में किसी एक स्‍टेशन पर क्‍यों रुकना। लिहाजा उसकी जिंदगी में माही (मिनिषा लांबा) आती है। पड़ोस वाली राध‍िका (बिपाशा) आती है। गायत्री (दीपिका पादुकोण) आती है। वह सबसे आगे बढ़ते हुए अगले स्‍टेशन पर भी पहुंचना चाहता है। लेकिन मन के भीतर खलबली को अब सुकून चाहिए। जिंदगी कई बार मौके नहीं देती। यही हाल होता है। उसने पहले सबके प्‍यार को ठुकराया और जिसे उससे प्‍यार है, उसने उसे ठुकरा दिया। हम तो बस ये ही कहेंगे डायरेक्टर के चलते फिल्म का हैपी एड होता है लेकिन असल जिंदगी में इस हैपी एडिंग की तलाश लंबी होती है।

इनकार 2013:

आज के दौर में प्‍यार का एक रूप यह भी है। राहुल (अर्जुन रामपाल) और माया (चित्रांगदा सिंह) एकसाथ काम करते हैं। माया राहुल पर सेक्‍सुअल हैरेसमेंट का आरोप लगाती है। ऑफिस में कमिटी बनती है। सुनवाई होती है। कार्रवाई होती है। लेकिन अंत में ट्व‍िस्‍ट है। प्‍यार है। दोनों को प्‍यार है एक-दूसरे से। लेकिन भावनाएं अनकही रह जाती हैं। रिश्‍तों में दूरी आती है। कंफ्यूजन पैदा होता है और प्‍यार के नहीं मिलने की चिढ़ बदले की भावना का रूप ले लेती है। जिंदगी दोनों की तबाह होती है। प्‍यार में कोई भी ‘प्‍यार’ ही चाहता है। और जब ये नहीं मिले तो चिढ़ होती है। गुस्‍से में कोई निर्णय खुद के लिए भी दुखदायी है और सामने वाले के लिए भी।

रॉकस्टार 2011:

कहीं से सीख मिलती है कि इसके लिए दिल का टूटना जरूरी है। हीर (नरगिस फखरी) से मुलाकात होती है। प्‍यार होता है। दोनों बयान नहीं कर पाते। दिल टूट जाता है। जर्नादन जॉर्डन बन जाता है। हीर अपने रांझे से दूर बीमार हो जाती है। जॉर्डन की तड़प उसे आवारा बना देती है। सुकून एक-दूसरे की छांव में ही है, ये समझते-समझते देर हो जाती है। जिस बीमार हीर को दवा ठीक नहीं कर पाती, जॉर्डन का साथ उसे कुछ दिन बीमारी से लड़ने की ताकत दे जाता है। प्‍यार ताकत है, कमजोरी नहीं। जिसके साथ होने से खुद के होने का एहसास हो, ताकत मिले। वही सच्‍चा प्‍यार है। जिसके होने से आप हैं और आपके होने से जो।
शुद्ध देसी रोमांस 2013:
‘कमिटमेंट फोबिया’ के शिकार लोगों के लिए तो यह फिल्‍म वरदान है। रघु (सुशांत सिंह राजपूत) को प्‍यार करना है, शादी नहीं करनी। गायत्री (परिणीति चोपड़ा) का भी यही हाल है। तारा (वाणी कपूर) भी है फिल्‍म में। रघु और गायत्री पूरी फिल्‍म में कभी खुद से तो कभी एक-दूसरे से भागते हैं। जिम्‍मेदारी से भागते हैं। लेकिन जिंदगी में एक पल ऐसा आता है, जब आपको किसी ऐसे की जरूरत होती है जो आपको समझे। जो आपकी ताकत बने। ये फिल्‍म है इसलिए रघु और गायत्री मिल जाते हैं। असल जिंदगी बार-बार मौके नहीं देती।
रांझणा 2013:
एकतरफा प्यार असल जिंदगी में कहा तक जाता है ये तो कहना मुश्किल है लेकिन पर्दे का प्यार अंत मे सीख दे जाता है। ऐसा ही कुंदन (धनुष) पड़ोस की जोया (सोनम कपूर) से बचपन से मोहब्‍बत करता है। उसके प्‍यार में कमिटमेंट भी है और डिग्‍न‍िटी भी, क्‍योंकि बिंदिया तो जाने कब से कुंदन की होना चाहती है। कुंदन इंतजार करता है। जोया उसे गंवार मानती है। अपना काम निकलवाती है और एक घायल आश‍िक की तरह सबकुछ जानते हुए भी जोया का साथ देता है। अंत में जोया के लिए ही सही खुद को खत्‍म भी कर देता है। जोया को तब एहसास होता है कि वह तो हर दिन कुंदन से ही प्‍यार करती थी। यानी प्‍यार दोनों तरफ से था, लेकिन कंफ्यूजन के कारण दोनों में से किसी को प्‍यार नहीं मिला।
तो अगर आप ने ये मूवी नहीं देखी तो देख लीजिए बहुत कुछ नहीं तो कुछ तो सीखने को मिल ही जाएगा..।
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