विशेष डेस्क: प्रेस की आजादी के मामले में पिछले तीन सालों भारत की रैकिंग लगातार गिरती जा रही है। वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2019 यानी ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2019’ में भारत 140वें स्थान पर है। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, साल 1990 से अब तक भारत में 80 पत्रकारों की हत्या के मामले सामने आए हैं।
लेकिन सिर्फ एक मामला ही अदालती कार्रवाई के स्तर तक पहुंच सका है। इसी साल जनवरी महीने में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के मामले में पंचकूला में सीबीआई की अदालत ने दोषी करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई है।
कुछ मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई है। वहीं कुछ मामलों में आज तक किसी को कसूरवार तक नहीं ठहराया गया है। आपको बता दें, पिछले दो सालों में ही भारत में 15 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है।
पिछले साल दो बड़े पत्रकारों की हत्या
साल 2017 पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में बेहद ही खराब साबित हुआ है। वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश और शांतनु भौमिक सहित नौ पत्रकारों को इस साल अपनी जान गंवानी पड़ी है। 2018 में भारत में कई पत्रकारों की हत्या हुई जिसमें ‘राइजिंग कश्मीर’ अखबार के संपादक शुजात बुखारी का नाम शामिल है। जून 2018 में जब बुखारी अपने श्रीनगर स्थित दफ्तर से निकले तो उन पर अज्ञात लोगों ने हमला किया था।
सजा दिलाने में भारत काफी पीछे
पत्रकारों के हत्यारों को सजा दिलाने के मामले में भारत काफी पीछे है। अमेरिका की एक गैर-लाभकारी संस्था ‘कमिटी टु प्रॉटेक्ट जर्नलिस्ट’ (CPJ) की एक वैश्विक सूची में यह जानकारी सामने आई है। इस लिस्ट में उन देशों को शामिल किया गया है जहां पत्रकारों की हत्या की गई और मामलों की जांच अब भी लटकी हुई है। भारत को इस सूची में 14वें स्थान पर रखा गया है। चिंता की बात है कि यह लगातार 11वां साल है जब भारत को इस सूची में रखा गया है।
इन पत्रकारों को सबसे ज्यादा खतरा
पत्रकारों की सुरक्षा पर निगरानी रखने वाली सीपीजे के अनुसार भारत में भ्रष्टाचार कवर करने वाले पत्रकारों की जान को खतरा हो सकता है। 2016 में आई सीपीजे की 42 पन्नों की इस विशेष रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में रिपोर्टरों को काम के दौरान पूरी सुरक्षा अभी भी नहीं मिल पाती है। इसमें कहा गया, “1992 के बाद से भारत में 27 ऐसे मामले दर्ज हुए हैं जब पत्रकारों का उनके काम के सिलसिले में कत्ल किया गया। लेकिन किसी एक भी मामले में आरोपियों को सजा नहीं हो सकी है”। रिपोर्ट के अनुसार इन 27 में 50% से ज़्यादा पत्रकार भ्रष्टाचार संबंधी मामलों पर खबरें करते थे।
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