अस्पताल में 45 दिनों में बुखार से 70 मासूमों की मौत, मचा हड़कंप

प्रतिदिन ओपीडी में इस समय 550 से 800 रोगियों का परीक्षण होता है। इनमें 65 से 70 रोगी भर्ती करने योग्य होते हैं। इसके बाद यहां एक बेड पर दो से तीन मरीज लिटाए जा रहे हैं।

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उत्तरप्रदेश के बहराइच जिले में बुखार से 45 दिनों में लगभग 70 मासूमों की जान ले चुका है। जबकि 86 लोगों को इलाज के लिए भर्ती कराया गया है। अस्पताल प्रशासन रोगियों को देर से अस्पताल व स्वास्थ्य केंद्र लाने का ठीकरा अभिभावकों पर फोड़ रहा है लेकिन हकीकत ये है कि इस अस्पताल में संसाधन और सुविधा दोनों की कमी है। इस अस्पताल की हालत ये है कि एक बेड पर तीन-तीन मरीजों को भर्ती किया है।

मौसमी बीमारी के चलते इस के सबसे ज्यादा शिकार बच्चे हो रहे हैं। मरीजों की संख्या में तेजी से हो रही वृद्धि के चलते अस्पताल में बेड तक खाली नहीं हैं, जिसके चलते मरीजों का इलाज जमीन पर बेड लगाकर किया जा रहा है. मौतों के बढ़ते आंकड़ों के बाद पूरे अस्पताल परिसर में हड़कंप मच गया है। मीडिया चैनलों की रिपोर्ट्स के मुताबिक, दो माह में बुखार डेंगू और अन्य संक्रामक बुखार से अब तक 128 लोगों की जान जा चुकी है लेकिन अभी तक अस्पताल प्रशासन ने यहां संसाधनों और सुविधाओं की पूर्ति नहीं की है।

मिली जानकारी के अनुसार, प्रतिदिन ओपीडी में इस समय 550 से 800 रोगियों का परीक्षण होता है। इनमें 65 से 70 रोगी भर्ती करने योग्य होते हैं। इसके बाद यहां एक बेड पर दो से तीन मरीज लिटाए जा रहे हैं। जिन्हें बेड नहीं मिलता, वह फर्श पर लेटते हैं या बच्चे अपने अभिभावकों की गोद में अपना इलाज करवाने के लिए मजबूर है।

इस लापरावाही पर अभिभावकों का कहना है कि उनकी मजबूरियों का गलत फायदा उठाया जा रहा है। अस्पताल प्रशासन के पास प्राप्त संसाधन नहीं और लेट आने का ठिकरा हम पर फोड़ा जा रहा है। सरकार कुछ नहीं कर रही है। वहीं एमएस डाॅक्टर ओपी पांडेय ने बताया कि अस्पताल में बहराइच ही नहीं श्रावस्ती, गोंडा और बलरामपुर के मरीज आते हैं, जिसके कारण अस्पताल में मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। उन्होंने बताया कि बीते 24 घंटे के दौरान 5 बच्चों की मौत हो चुकी है।

इसमें दो बच्चे बर्थ एस्पेसिया से पीड़ित थे, दो बच्चों की दिमागी बुखार से और एक बच्चे की निमोनिया से मौत हुई है। वहीं बीते 24 घंटे में अस्पताल में 86 मरीज भर्ती किए गए हैं, जबकि जिला अस्पताल के चिल्ड्रन वार्ड में 40 बेड ही उपलब्ध हैं।

अस्पताल प्रशासन का कहना है कि यह मौसमी बीमारी है। इसलिए रोगियों की संख्या में इजाफा हो रहा है और इस दौरान मौत होना भी आम है। इसमें अस्पताल की ओर से कोई लापरवाही नहीं बरती जा रही है। अस्पताल प्रशासन ने माना की संसाधनों की कमी है लेकिन ईलाज सभी मरीजों को मिल रहा है।

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