खून का रंग देख और बता कौन हिन्दू कौन मुसलमान!

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मर रही है मानवता और मर रहा है इंसान
मासूमों से ही जब हिन्दू मुसलमान कराओगे
तो फिर इंसानियत को कैसे बचाओगे
1947 में जब बंटवारा हुआ था उस वक़्त के गवाह बुज़ुर्ग जब कभी भी मुझे उस वक़्त की बात बताते थे, मुझे लगता था कि मैं होता तो शायद इस बंटवारे को होने नहीं देता। मैं इस बंटवारे को रोक सकता था , और आज के समाज का मेरे जैसा हर एक युवा येही सोचता है कि उस वक़्त उन लोगों का शायद ज़ेहन काम नहीं कर रहा होगा जो देश के दो टुकड़े करने पर आमादा थे। हालांकि कारण तो बहुत से रहे होंगे लेकिन आज की पीढ़ी को हिन्दू मुसलमान होने से पहले इंसान होना ज़्यादा पसंद है ऐसा मुझे लगता था। लेकिन मेरी आँखें देश की राजधानी दिल्ली की एक घटना ने शायद खोल दी है। मैं सोच रहा था कि शायद मेरे देश में अब लोग पुरानी पीढ़ी के हिसाब से नहीं बल्कि विकास और उन्नत्ति के मुताबिक चलना चाहते है। किसी भी मज़हब से ताल्लुक रखने वाले लोग अपने बच्चों को सबसे पहले स्कूल में पड़ने भेजते हैं क्योंकि वहां उन्हें सिखाया जाता हैं कि देश सर्वोपरि है मज़हब ज़ात का हिसाब ही ना लगाया जाए। लेकिन एक सवाल ने यहां जन्म लिया हैं कि आखिर जब शिक्षा के मंदिर में धर्म के नाम पर मासूम बच्चों को बांटा जाता है तो मानवता ज़िंदा कैसे रह सकती है। ऐसा ही माज़रा देखने को मिला दिल्ली के एम सी डी के एक स्कूल में जहां स्कूल के प्रधानाचार्य ने बच्चों के सेक्शन सिर्फ इस बुनियाद पे बांटे की हिन्दू कौन है और मुस्लिम कौन है। मेरी नज़र में ये बंटवारा भी 1947 के बंटवारे से कम नहीं था क्योंकि उस वक़्त भी कुछ लोगों की बेवक़ूफि के वजह से हिन्दू मुस्लिम के बुनियाद पर देश को दो टुकड़ों में बांट दिया गया था। इंसानियत वहां भी मर गयी थी इंसानियत यहां भी मरी हुई दिखाई दी है। हिंदुस्तान के सविंधान के पहले पेज को देखते ही समानता और महत्वत्ता दोनों दिखाई देती है, सविंधान हमे बताता हैं की सब एक सामान है किसी में कोई फर्क नहीं है।  जब हिन्दू मुस्लिम में भारत का सविंधान फ़र्क़ नहीं कर रहा हो तो प्रधानाचार्य को किसने अधिकार दिया कि वो बच्चों को मज़हब के तराजू में तोल कर बांट दे।

ये सिर्फ बच्चों को अलग अलग बिठाने का मुद्दा नहीं है ये मुद्दा है सोच का, ये मुद्दा है मर रही मानवता का और ये मुद्दा है छोटे छोटे मासूम बच्चों के जेहन में ज़हर घोलने का वो भी उस उम्र में जब वो ये भी नहीं जानते होंगे कि आखिर राम और रहीम का मज़हब क्या था। प्रधानाचार्य के मुताबिक उन्होंने रेंडमली ही ऐसा किया है, सिर्फ एक तरफ से बच्चों को उठा कर सेक्शन बनाये है , उनका कोई और मक़सद नहीं था लेकिन क्या जिस वक्त बच्चों के सेक्शन बांटे गए थे उस वक़्त बच्चे मज़हब के हिसाब से ही बैठाए गए थे ! बच्चों से बात की गई तो पता चला कि उनको तो ये भी नहीं पता कि उनमें और बाकी बच्चों में फ़र्क़ क्या है, यहां तक कि बच्चे दुखी थे क्योंकि उनके दोस्त दूसरे सेक्शन में भेज दिए गए थे।

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अब सवाल ये है कि आखिर जिस उम्र में बच्चों के दिमाग में एकता , लक्ष्य, और सपने होने चाहिए क्या इस बंटवारे से उनके दिमाग में हिन्दू मुस्लिम ही भर कर ना रह जाएगा। मैं ये नहीं चाहता कि इस बात को लेकर सियासत अपने पैर पसारे लेकिन मैं चिंतित हूँ क्योंकी अगर एक स्कूल की पहल पर बाकी स्कूलों ने भी ये करना शुरू कर दिया तो मानवता जो आज सिसकियों के साथ धीरे धीरे मर रही है वो एक झटके में खत्म हो जाएगी। बंटवारा जब जब भी हुआ है तब तब इंसानियत को मारते हुए देखा गया चाहे 1947 का बंटवारा हो, या किसी राज्य का बाँटवरा हो या फिर किसी स्कूल का , हर बार लोगों की उम्मीदे टूटी है, हर बार रिश्ते टूटे है , हर बार संभध खराब हुए है क्योंकि बाँटवरा वो बला है जो ना केवल मानवता को मारता है बल्कि नारियल और खजूर को भी बांट देता है । बार बार मैंने मानवता को मरता हुआ बताया है क्योंकि आजकल अगर किसी को मदद की ज़रूरत पड़ जाए ना तो जाती और मज़हब देखकर मदद की जाती है वो भी अगर किसी की इंसानियत जाग जाए तो। बेहरमी से क़त्ल किये जाते है, बलात्कार किये जाते है, चोरी डकैती की जाती है उसके बाद भी लोगों की मानवता नहीं जागती बस उसको धर्म के तराजू में तोला जाता है, उसका पोस्टमार्टम ज़ात की मशीन में किया जाता है।

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बूढे मां बाप को वर्धआश्रम छोड़कर आने में कोई दिक्कत नहीं है, दिक्कत तो तब होती हैं जब खुद जाने की नौबत आ जाए। सड़क पर दुर्घटना हो जाए तो मदद के किये कोई आगे नहीं आता , सिर्फ मोबाइल निकाल कर वीडियो बनाते है ताकि सोशल मीडिया पर व्यूज ज़्यादा हो जाए। पड़ोसी घर में भूखा मर जाए कोई नहीं जाएगा लेकिन पड़ोसी कोई कमी मिल जाए तो नीचा दिखाना कोई नही छोड़ेगा। ये सब मैन इसलिए कहा है क्योंकि इन सब चीजों को रोकने का एक ही रास्ता है शिक्षा और जब शिक्षा के मंदिर में ही मानवता को मारा जाएगा तो फिर बचेगा क्या। मैं किसी को रुस्वा नहीं कर रहा बस बताना चाहता हूँ कि बंटवारे से बचो मानवता को ज़िंदा करो। और साथ ही ये भी निवेदन है कि सत्ता में बैठे लोग इस स्कूल की घटना को सीरियस होकर ले इसे रोके ताकि आगे से कोई कम से कम मासूम बच्चों को तो धर्म के तराजू में ना तोले ।

मो. आरिफ कुरैशी

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