हमारी संवेदनाओं को शून्य बनाती रैगिंग

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रैगिंग, यह शब्द पढ़ने में सामान्य लगता है। इसके पीछे छिपी भयावहता को वे ही छात्र समझ सकते हैं जो इसके शिकार हुए हैं। बीते महीने की बात है कोलकाता के सेंट पॉल कॉलेज के पहले वर्ष के एक छात्र को सीनियर छात्रों ने कथित रूप से निर्वस्त्र किया और यातना दी थी। जिससे आहत होकर छात्र ने आत्महत्या कर ली। यह घटना 17 मई 2018 की बताई जा रही है। बढ़ती आधुनिकता के साथ रैगिंग के तरीके भी बदलते जा रहे हैं। रैगिंग आमतौर पर सीनियर द्वारा कॉलेज में आए नए छात्रों से परिचय लेने की प्रक्रिया है। कॉलेजों का सीनियर-जूनियर परिचय सम्मेलन अब तेजी के साथ क्राइम में बदलता जा रहा है। गलत व्यवहार, अपमानजनक छेड़छाड़, मारपीट जैसे वीभत्स रूप रैगिंग के सामने आते हैं। स्कूल में अनुशासित जीवन जीने के बाद जब आपका बच्चा कॉलेज में कदम रखता है तो उसे नहीं मालूम होता कि आज उसके साथ क्या होने वाला। रैगिंग ने कुछ छात्रों के जीवन में इस कदर बदलाव किया कि उनका पहला दिन आखिर बन गया। हाल ही में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पांच साल के रैंगिग के आंकड़े जारी किए है। जो 2013 से 2017 तक के। जिसमें 75 फीसदी वृद्धि बताई गई है। इन पांच सालों में यूजीसी को लगभग 3,022 शिकायतें मिलीं हैं। जिसमें 416 शिकायतों के साथ  उत्तर प्रदेश अव्वल रहा। इसके बाद मध्य प्रदेश (357), पश्चिम बंगाल (337), उड़ीसा (207) और बिहार (170)। रिपोर्ट में केवल आंकड़े ही चौंकाने वाले नहीं थे। सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान इससे छात्रों पर पडऩे वाले मनोवैज्ञानिक प्रभाव के बारे में अध्ययन कराने का निर्देश दिया है। यूजीसी की पहल पर जेएनयू के प्रोफेसरों व विशेषज्ञों ने कुछ प्रतिष्ठित संस्थानों का आधार बनाकर इस पर अपनी रिपोर्ट तैयार की है। यद्यपि यह रिपोर्ट काफी पहले जेएनयू की अध्ययन कमेटी ने सौंप दी थी, किंतु यूजीसी ने अब इसे सार्वजनिक किया है। रैगिंग को लेकर सरकार की ओर से अब तक की यह सबसे व्यापक अध्ययन रिपोर्ट है। इसमें रैगिंग करने वाले छात्रों, संस्थाओं तथा पीड़ित सभी को चिन्हित करने के साथ ही इस पर रोकथाम के लिए दीर्घकालिक तथा तात्कालिक कदम उठाये जाने के भी सुझाव दिये गए हैं। अध्ययन रिपोर्ट में उन सभी तरीकों की पहचान की गई है, जिसके माध्यम से कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों में छात्रों की रैगिंग की जाती है। इंट्रोडक्शन के नाम पर जूनियर छात्रों को परेशान किया जाता है। इस तरह की रैगिंग सबसे अधिक होती है। इसे रिपोर्ट में सॉफ्ट रैगिंग कहा गया है।

इन छात्रों की वजह से चरम पर रैगिंग-
रैगिंग पर सुप्रीम कोर्ट 2001 में सख्त रूप से बैन कर चुकी है लेकिन मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में रैगिंग सबसे अव्वल नम्बर पर होती है। देशभर के सभी बड़े छोटे कॉलेजों में मेडिकल और इंजीनियर्स स्टूडेंस बढ़-चढ़कर इसमें हिस्सा लेते हैं। पहले रैगिंग में केवल लड़के ही ज्यादा हिस्सा लिया करते थे लेकिन अब लड़कों से ज्यादा लड़कियां हिस्सा लेती है। इसमें शारीरिक रैगिंग से लेकर सीनियर्स के सभी काम करने के पहलू शामिल होते हैं।

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कहां से आई रैगिंग-
रैगिंग भारत की देन नहीं है, ऐसा माना जाता है कि ग्रीस में 7वीं और 8वीं शताब्‍दी में खेल समुदायों में खिलाड़‍यों में खेल की भावना को मजबूत करने के उद्देश्‍य इसकी शुरूआत की गई थी। मगर उसके बाद सैन्‍य अधिकारियों ने इसे अपना हिस्‍सा और फिर धीरे-धीरे स्‍कूल और कॉलेजों में भी छात्रों ने रैगिंग शुरू कर दी। लोगों ने हमेशा रैगिंग को गलत रूप देने की कोशिश की। सबसे पहले यूरोपीय देशों में छात्र संगठन बनाने की प्रथा शुरू हुई। शुरुआत में छात्रों के संगठन अपने समुदाय के हित में काम करते थे। मगर 18वीं शताब्‍दी के आखिर तक छात्र संगठनों ने हित के नाम पर अपने अधिकारों का गलत इस्‍तेमाल करना शुरू कर दिया और हिंसक रूप ले लिया। इसे अच्छे उद्देश्य के लिए शुरू किया गया था लेकिन इसका उद्देश्य पूरी तरह बदलकर हूकुमत के तौर पर लिया जाने लगा।

भारत में रैगिंग से पहली मौत-
आजादी के वक्त भारत में रैगिंग का रंग केवल अंग्रेजी संस्थानों में ही दिखाई देते थे। आंकड़ों की मानें तो वर्ष 1997 में तमिलनाडु में रैगिंग के सबसे ज्‍यादा मामले पाए गए। उसके बाद साल 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया। साल 2009 में धर्मशाला के एक मेडिकल संस्‍थान के एक छात्र अमन काचरू की रैगिंग से हुई मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी शिक्षण संस्‍थानों को रैगिंग विरोधी कानून का सख्‍ती से पालन करने के निर्देश दिए थे। वहीं दुनिया में पहली मौत अमेरिका के न्‍यूयॉर्क शहर में हुई थी। यहां की कॉरनेल यूनिवर्सिटी की इमारत से गिरकर छात्र की मौत हो गई थी।

क्या है एंटी रैगिंग कानून-
एंटी रैगिंग कानून के तहत दोषी पाए जाने पर तीन साल की जेल भी हो सकती है और दोषी पर आर्थिक दंड भी लगाया जा सकता है। एक अनुमान के मुताबिक ये राशि 50,000 के पास है। इतना ही नहीं रैगिंग के मामले में कार्रवाई न करने या मामले की अनदेखी करने पर कॉलेज के खिलाफ भी कार्रवाई होगी और आर्थिक दंड भी लगाया जा सकता है।

इस तरह का व्यवहार को रैगिंग माना जाएगा…

-छात्र के रंगरूप या उसके पहनावे पर टिप्‍पणी की जाए या उसके स्‍वाभिमान को ठेस पहुंचाई जाए।
-किसी छात्र का उसकी क्षेत्रियता, भाषा या फिर जाति के आधार पर अपमान किया जाए।
-छात्र की नस्‍ल या फिर उसके फैमिली बैकग्राउंड पर अभद्र टिप्‍पणी की जाए।
-छात्रों से उनकी मर्जी के बिना जबरन किसी प्रकार का अनावश्‍यक कार्य कराया जाए।

मानवता के खिलाफ अपराध-
कहते हैं शिक्षा ऐसा बीज है जो मनुष्य को जानवरों से अलग बनाती है लेकिन शिक्षा के मंदिरों में ही अब मनुष्य को जानवर कैसे बनाया जाए इसकी शिक्षा मिलने लगी है। जिस तरह कॉलेजों में होने वाले छात्र चुनावों से भविष्य की राजनेता तय होते है उसी तरह से यहां होने वाले अपराधों से तय होती है कि भविष्य में क्या मिलने वाला है। मेडिकल छात्रों का मानना है कि रैगिंग केवल नए छात्र-छात्रों के साथ होने वाला एक छोटा सा मनोरंजन का रूप है इसे कोई अपराध की श्रेणी तय नहीं होती। लेकिन मनोवैज्ञानिकों ने इस बात को नकारते हुए कहा है कि, छात्रों में सबसे बड़े डिप्रेशन और आत्महत्या का कारण ही रैगिंग या सीनियर्स का दबाव है। दवाब ऐसा कि इसमें पीड़ित स्टूडेंट का व्यवहार में परिवर्तन होने लगता है। कभी इतना रोना आता कि रोका नहीं जाता, कभी कमरा/हॉस्टल छोड़कर जाने की इच्छा नहीं होती। खाना नहीं खाया, दोस्तों से नहीं मिलना, प्रोफेसर से क्लास में सवाल-जवाब करने में हिचकना। जानकार बताते हैं इस तरह से स्वभाव परिवर्तन होने को बायपोलर डिसऑर्डर है। जो आपको सामान्य तो लगेगा लेकिन होगा नहीं। मनोवैज्ञानिकों का कहना जरूरी नहीं हर केस इसका रैगिंग से जुड़ा हो, इसमें डिप्रेशन पढ़ाई का भी हो सकता है। क्योंकि इस पर ज्यादा स्पष्ट्रतौर से कुछ कहा नहीं जा सकता। काउंसिलिंग सेंटर्स का कहना है कि वह सालभर में 20-25 स्टूडेंस की काउसिलिंग लेते हैं पहली नजर में उनको देखने से लगता है वह किसी युद्ध को लड़कर आए है। उनके साथ बातचीत के दौर में कई चीजें निकल कर सामने आती है इसमें मेंटल और शारीरिक बातें ज्यादा निकलर सामने आती है। देश के विभिन्न भागों में रैगिंग की वजह से मौत और आत्महत्या की कोशिशें हो रही हैं। ऐसी दुखद घटनाएं लगातार देश को आघात पहुंचा रही हैं और हमारी बची हुई मानवता को शून्य। हमारे देश में लगभग हर अपराध के लिए कानून बनने हुए है। जब कोई बड़ी घटना सामने आती है तब हल्ला करने हम पहुंच जाते हैं लेकिन फिर क्या? क्या हम उस मामले से कुछ सीख पाते हैं या फिर उस हल्ले से जिसे हम किसी पीड़ित छात्र के मन में एक उम्मीद जलाते हैं। वैसे तो कॉलेज खुलने के समय नए विद्यार्थियों को प्रवेश मिलने की खुशियां मनानी चाहिए। लेकिन उन्हें कॉलेज के सीनियर छात्रों के कठोर व्यवहार को सहना पड़ता है। ऐसे बहुत कम छात्र होते हैं, जो रैंगिंग के खिलाफ लड़ते हैं। अनगिनत छात्र ऐसे हैं, जो चुपचाप इसे सहते हैं, और पूरे जीवन पीड़ा का अनुभव करते हैं। रैगिंग से मौत होने पर ही इसके खिलाफ आवाज उठाई जाती है। लेकिन कुछ दिनों बाद फिर सब कुछ शांत हो जाता है। ये खेल मानवता के खिलाफ बड़ा अपराध है। जो अपनी चरम सीमा पर है। जिन एक दो घटनाओं को आप बड़ा मुद्दा नहीं मानते मत भूलिए ये वहीं मुद्दे है जिनमें से कल कोई आतंकी बनेगा, दंगे करेगा और मानवता को मरते हुए आप देखेंगे..।

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