राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने 11 साल की दुष्कर्म पीड़िता के 31 सप्ताह के भ्रूण का अबॉर्शन कराने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। जस्टिस अनूप कुमार ढंढ ने कहा कि पूर्ण विकसित भ्रूण को भी दुनिया में प्रवेश करने और स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार है।
हाईकोर्ट ने पीड़िता की डिलीवरी कराने के संबंध में राज्य सरकार को कई दिशा-निर्देश जारी किए। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि भ्रूण धड़कन सहित विकसित हो चुका है और गर्भपात कराना खतरनाक हो सकता है।
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याचिकाकर्ता के वकील फतेह चंद्र सैनी ने अदालत को बताया कि पीड़िता दुष्कर्म के कारण गर्भवती हुई है। वह सामाजिक और स्वास्थ्य कारणों के कारण बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती है। इसके साथ ही पीड़िता की मां मानसिक तौर पर बीमार हैं और पिता क्रिमिनल केस में आरोपी हैं। ऐसे में उसकी देखभाल करने वाला कोई ओर नहीं है, इसलिए उसे गर्भपात की अनुमति दी जाए।
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राज्य सरकार कराए पीड़िता की डिलीवरी
हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए कि पीड़िता की डिलीवरी कराने की समस्त व्यवस्था सरकार करें। सरकार पीड़िता को बालिका गृह में भर्ती कर आवश्यक देखभाल, फूड और मेडिकल सहायता उपलब्ध कराए। पीड़िता के वयस्क होने तक बालिका गृह अधीक्षक उसे वहां रखे और इस दौरान उसे शिक्षा सहित अन्य सुविधाएं मुहैया कराए।
एसीएस चिकित्सा सुरक्षित प्रसव कराने के लिए महिला नर्स नियुक्त करें। महिला अस्पताल के अधीक्षक डिलीवरी से पहले और बाद के लिए समस्त चिकित्सा सुविधाएं बिना शुल्क उपलब्ध कराएं। वहीं विधिक सेवा प्राधिकरण को भी निर्देश दिए है कि वह पीड़ित प्रतिकर स्कीम से 3 महीने में पीड़िता को मुआवजा दिलवाएं। वहीं मुआवजा राशि को पीड़िता के वयस्क होने तक एफडी के रूप में रखा जाए।
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जन्म लेने के बाद गोद दिया जा सकता है बच्चा
बच्चे के जन्म के बाद उसे बाल कल्याण कमेटी को सौंपा जा सकता है और पीड़िता को अगर बच्चे की कस्टडी चाहिए तो वह अपने अभिभावक के माध्यम से प्रार्थना पत्र पेश करे। यदि बच्चे को किसी दम्पत्ति को गोद दिया जाता है, तो पीड़िता को कोई आपत्ति नहीं होगी। साथ ही भ्रूण के नाल सहित अन्य चीजों को डीएनए जांच के लिए संरक्षित रखे।
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