खतरनाक है कोरोना मरीजों में मिलने वाला ये नया फंगस, जानें इसके बारें सबकुछ

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कोरोना वायरस संक्रमण का प्रकोप अभी खत्म भी नहीं हुआ कि इस महामारी से जुड़ा एक नया फंगस सामने आया है। इस फंगस से जुड़ा पहला केस पुणे से आया है। चिकित्सकीय भाषा में इस फंगस को एस्पर्गिलस आस्टियोमाइअलाइटिस कहा जाता है। बताया जा रहा है कि इससे कोरोना पीड़ितों के मुंह या फेफड़ों में रीढ़ की हड्डी में होने वाली TB जैसे लक्षण पैदा कर रहा है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पुणे में पिछले तीन महीने में कोविड-19 (कोरोना संक्रमण) से उबरने वाले चार मरीजों में इस नए फंगस के लक्षण मिले हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, 66 साल के एक मरीज प्रभाकर (परिवर्तित नाम) को कोरोना संक्रमण से उबरने के एक महीने बाद हल्के बुखार और बेहद गंभीर तेज दर्द वाले कमर दर्द की शिकायत शुरू हुई। चिकित्सकों ने शुरुआत में प्रभाकर का इलाज मांस-पेशियों को आराम देने वाले और बिना स्टेरॉयड से इलाज किया, जिससे राहत नहीं मिली।

इसके बाद MRI स्कैन कराने पर प्रभाकर की रीढ़ की हड्डी में एक बेहद गंभीर संक्रमण की जानकारी मिली, जिससे उनकी स्पांडिलॉडिसाइटिस (स्पाइनल डिस्क के बीच खाली स्थान) की हड्डी को नुकसान पहुंचा था। हड्डी की बायोप्सी और ऊतक जांच के बाद उन्हें एस्पर्गिलस आस्टियोमाइअलाइटिस फंगस का शिकार पाया गया।

क्या होता है एस्पर्गिलस आस्टियोमाइअलाइटिस

  • यह हड्डियों में होने वाल बेहद दुर्लभ किस्म का खतरनाक फंगस संक्रमण है
  • यह कमजोर इम्यून सिस्टम वाले मरीजों को अपना निशाना बनाता है
  • रीढ़ की हड्डी की TB जैसे ही लक्षण के कारण पहचानना बेहद मुश्किल है
  • यह सबसे ज्यादा रीढ़, पसलियों और सिर की हड्डियों में असर करता है
  • आमतौर पर इसे हटाने के लिए सर्जरी करना ही सही विकल्प माना जाता है

कोरोना दूर करने को दिए स्टेरॉयड्स से है नाता
पुणे के दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल के संक्रमण विशेषज्ञ डॉक्टर परीक्षित प्रयाग के मुताबिक, हम पिछले तीन महीने में एस्पर्गिलस श्रेणी के फंगस के कारण होने वाले वर्टाब्रेल ऑस्टोमाइलिटिस के चार मरीजों का इलाज कर चुके हैं। इससे पहले भारत में कोरोना से उबरने वाले मरीजों में इस फंगस के लक्षण दिखने का कोई मामला सामने नहीं आया था।

हालांकि, प्रयाग का कहना है कि ये चारों मरीज गंभीर कोरोना संक्रमण से जूझे थे और उस दौरान निमोनिया व अन्य संबंधित जटिलताओं के इलाज के लिए उन्हें बड़े पैमाने पर स्टेरॉयड्स दिए गए थे। उन्होंने कहा, कोर्टिकोस्टेरॉयड्स के लंबे समय तक उपयोग से अन्य संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि यह बीमारी के इलाज और उपयोग की जा रही अन्य दवाइयों पर भी निर्भर करता है। उन्होंने कहा, फिलहाल हम चारों मरीजों का इलाज कर रहे हैं। इनमें पहला चार महीने पहले अस्पताल में भर्ती हुआ था, जबकि आखिरी मरीज अक्तूबर में ही आया है।

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