प्रदूषण के मामले में भारत की स्थिति क्या कहती है?

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जल्द ही दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने जा रहे नरेन्द्र मोदी का लोकसभा क्षेत्र वाराणसी प्रदूषण के मामले में टॉप 15 शहरों में से तीसरे नंबर पर है। इसके बावजूद आम चुनावों में पीएम मोदी सहित किसी भी प्रतिनिधि ने प्रदूषण जैसे गंभीर विषय पर अपनी रैलियों में कोई बात नहीं की। आरोप-प्रत्यारोप लगाने वाले नेताओं ने इन चुनावों में उत्तरप्रदेश के कई दौरे किए जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दो पूर्व मुख्यमंत्री, अखिलेश और मायावती ने यहां रैली की, लेकिन इनमें से किसी ने भी प्रदूषण का मुद्दा नहीं उठाया। या फिर यूं कह ले कि उनको सत्ता की कुर्सी के आगे ये जानलेवा मुद्दे नजर ही नहीं आए। ऐसे तो देश में टिकटॉक, पबजी मोबाइल ऐप्स पर लगातार बैन लगाने की मांग उठती और कई बार सख्ती से बैन भी किए जाते हैं। फिर क्यों नहीं बढ़ते प्रदूषण के रोकथाम के लिए कड़े कदम उठाए जाते। क्यों आम लोगों के स्वास्थ्य के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ किया जा रहा है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची जारी की। इस सूची में उन शहरों को रखा गया है जहां की हवा सांस लेने लायक तक नहीं बची है। हैरानी इस बात की 15 शहरों में से 14 शहर सिर्फ भारत के हैं। इस सूची में पहला स्थान कानपुर का है तो वहीं हरियाणा का फरीदाबाद दूसरे स्थान पर। वाराणसी तीसरे स्थान पर बिहार के गया को चौथे और पटना को पांचवें नंबर पर रखा गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की लिस्ट में छठे स्थान पर दिल्ली लखनऊ को सांतवे नंबर पर बताया गया है। इस लिस्ट में आगरा, जयपुर, जोधपुर, पटियाला, श्रीनगर और गुरुग्राम का भी जिक्र किया गया है।

WHO की लिस्ट के 15 शहरों की सूची में चार उत्तर प्रदेश के हैं। रिपोर्ट के मुताबिक किसी भी राज्य सरकार ने प्रदूषण से निपटने के लिए अभी तक कोई विशेष कदम नहीं उठाया है। किसी का भी शहरी और क्षेत्रीय स्तर पर बिगड़ती हवा पर ध्यान नहीं गया। यहां तक पीएम मोदी को अपना संसदीय क्षेत्र तक नहीं नजर आया। शायद ही आपको पता हो कि, एयर क्वालिटी इंडेक्स में हवा की स्थिति को 0 से 50 के बीच अच्छा, 51 से 100 के बीच संतोष जनक, 101 से 200 तक ठीकठाक, 201 से 300 तक खराब, 301 से 400 तक बहुत खराब, 401 से 500 तक गंभीर माना जाता है।

स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट 2019 में बताया गया है कि 2017 में वायु प्रदूषण के कारण उत्पन्न बीमारियों से 1.2 मिलियन भारतीयों की मौत हो गई।  इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2017 के दौरान हार्टअटैक, लंग कैंसर, डायबिटीज जैसे रोगों की वजह से विश्व में 50 लाख लोगों की मौत हुई। इनमें से 30 लाख लोगों की मौत सीधे तौर पर पीएम 2.5 की वजह से हुई है। पीएम 2.5 के कण इतने छोटे होते हैं कि वे फेफड़ों की गहराई तक पहुंच जाते हैं, जिससे लोगों को दिल और सांस से जुड़ी गंभीर बीमारी होने का खतरा रहता है।

रिपोर्ट में भारत की स्थिति क्या कहती है

  • भारत में वायु प्रदूषण मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण है जो धूम्रपान के ठीक ऊपर है।
  • 2017 में असुरक्षित वायु के संपर्क में आने के कारण 1.2 मिलियन से अधिक भारतीयों की मौत हो गई।
  • 1.2 मिलियन वार्षिक अकाल मौतों में से 673,100 मौतें बाह्य पीएम 2.5 के संपर्क में आने के कारण हुईं और 481,700 से अधिक मौतें भारत में घरेलू वायु प्रदूषण के कारण हुईं।
  • 2017 में भारत की लगभग 60% आबादी घरेलू प्रदूषण के संपर्क में थी। हालाँकि, रिपोर्ट यह भी मानती है कि भारत में ठोस ईंधन से खाना पकाने वाले परिवारों का अनुपात 2005 के 76% से घटकर 2017 में 60% (846 मिलियन) हो गया है जो LPG से संबंधित सरकार की योजना के कारण हुआ है।
  • संपूर्ण भारतीय आबादी 10 µg / m3 के डब्ल्यूएचओ वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देश के ऊपर पीएम 2.5 सांद्रता वाले क्षेत्रों में रहती है तथा केवल 15% आबादी ही डब्ल्यूएचओ के कम-से-कम कड़े लक्ष्य 35 µg / m3 के नीचे PM2.5 सांद्रता वाले क्षेत्रों में रहती है।
  • 2017 में पीएम 2.5 प्रदूषण के संपर्क में आने से 55,000 लोगों की मौत हुई।

उल्लेखनीय है कि भारत ने प्रदूषण स्रोतों को संबोधित करने के लिये बड़े कदम उठाए हैं जैसे- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, घरेलू एलपीजी कार्यक्रम, भारत स्टेज VI मानक वाले वाहनों के चलन में तेज़ी तथा नए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम।

जागरूकता की बड़ी कमी
इंडियास्पेंड के अनुसार वायु प्रदूषण और पीएम­-2.5, पीएम-10 और वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) जैसी बुनियादी शब्दावली के बारे में लोगों में बड़े स्तर पर जागरूकता की कमी देखी गई है। बताया गया है कि पुरुषों (78 फीसदी) की तुलना में अधिक महिलाएं (80 फीसदी) घर पर वायु प्रदूषण पर चर्चा करती हैं।

वहीं पीएम-2.5 और पीएम-10 जैसे तकनीकी शब्दावली के बारे में जागरूकता पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में कम है। यह आंकड़े महिलाओं के लिए 27.7 फीसदी और 14.5 फीसदी हैं, जबकि पुरुषों के लिए 31.1 फीसदी और  20.3 फीसदी है। पुरुषों (17.6 फीसदी) की तुलना में अधिक महिलाएं एक्यूआई (21.6 फीसदी) को जानती हैं, लेकिन वे इसके महत्व को समझ नहीं पाती हैं।

बीएस6 मानक से 80% कम होगा प्रदूषण
बढ़ते वायु प्रदूषण को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2000 में स्टैंडर्ड यूरोपीय मानदंडों को भारतीय अनुरूप में अपनाते हुए बीएस यानी ‘भारत स्टेज’ की शुरुआत की। यह गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण के उत्सर्जन का मानक है। इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड वाहनों के लिए तय करता है। इसी मामले पर साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा 1 अप्रैल 2020 से देश में भारत स्टेज (बीएस)-4 वाहनों की बिक्री और रजिस्ट्रेशन पूरी तरह बंद हो जाएगा।

क्या होते हैं बीएस3, बीएस4 और बीएस6?
बीएस के संबंध एमिशन स्टैंडर्ड से है। बीएस यानी भारत स्टेज से पता चलता है कि आपकी गाड़ी कितना प्रदूषण फैलाती है। बीएस के जरिए ही भारत सरकार गाड़ियों के इंजन से निकलने वाले धुएं से होने वाले प्रदूषण को रेगुलेट करती है। बीएस के साथ जो नंबर होता है उससे ये पता चलता है कि इंजन कितना प्रदूषण फैलाता है। यानी जितना बड़ा नंबर उतना कम प्रदूषण। इसी तर्ज पर बीएस3, बीएस4 और बीएस6 निर्धारित किया जाता है। बीएस-6 ईंधन में बीएस-4 के मुकाबले सल्फर काफी कम होता है। इससे प्रदूषण घटता है। उच्च बीएस मानकों वाले वाहन कम प्रदूषण फैलाते हैं।

बीएस6 लागू करने के फायदे
बीएस6 लागू होने के बाद प्रदूषण को लेकर पेट्रोल और डीजल कारों के बीच ज्‍यादा अंतर नहीं रह जाएगा। डीजल कारों से 68 फीसदी और पेट्रोल कारों से 25 फीसदी तक नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन कम हो जाएगा। साथ ही डीजल कारों से पीएम का उत्सर्जन 80 फीसदी तक कम होने की संभावना बढ़ जाएगी।

पर्यावरण को कैसे होगा फायदा-
बीएस6 लागू होने के बाद सबसे ज्यादा फायदा पर्यावरण होगा। ठंड के दिनों में उत्तर भारत के कई शहरों के आसमान में धुंध की चादर और प्रदूषण की खबर खूब सुर्खियों में रहती है। लोगों को सांस तक लेने में परेशानी होती है अभी दिल्ली की हवा सबसे ज्यादा खतरनाक मानी जा रही है। वहीं गंगा घाट पर धुंध हल्की चादर को वहां रहने वाले लोग अक्सर महसूस करते हैं।

जानकारों का कहना है कि बीएस6 लागू होने के बाद ईधन और मंहगा हो सकता है लेकिन इससे 80% जिंदगियों को भी सीधे लाभ पहुंचेगा। यदि पूरी तरह से वायु गुणवत्ता के लिये एक निरंतर प्रतिबद्धता के साथ यदि इन पहलों को कार्यान्वित किया जाता है तो आने वाले वर्षों में महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य लाभ की स्थिति प्राप्त हो सकती है।

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