दिल्ली: लंबे समय से रूके हुए बिल पर जल्द फैसला आ सकता है। जी हां हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान में कई दशकों से लंबित पड़े हिंदू विवाह विधेयक की। सीनेट की एक समिति ने इस ऐतिहासिक विधेयक को मंजूरी दे दी है। करीब चार महीने पहले ही इस बिल को नेशनल असेंबली में पारित किया गया था।
हिंदू विवाह विधेयक 2016 संसद के ऊपरी सदन सीनेट में पारित होने के बाद कानून बन जाएगा। मानवाधिकार पर सीनेट की संचालन समिति ने सर्वसम्मति से बहुप्रतीक्षित हिंदू विवाह विधेयक को मंजूरी दी जिससे इसके सीनेट में पेश करने का रास्ता साफ हो गया। मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट के सीनेटर नसरीन जलील के नेतृत्व में सीनेट समिति ने इस विधेयक पर चर्चा के बाद इसे मंजूरी दी।
इसलिए भी अहम है विधेयक:
इस विधेयक को पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं के लिए एक व्यापक और स्वीकार्य पारिवारिक कानून माना जा रहा है। इसके प्रभावी होने के बाद हिंदू समुदाय के सदस्य अपनी शादी को पंजीकृत करा सकेंगे और शादी टूटने के मामलों में अदालत में अपील कर सकेंगे। इसके मुताबिक मुसलमानों कि निकाहनामा की तरह ही हिंदुओं को भी अपने शादी के प्रमाण का दस्तावेज मिलेगा, जिसे ‘शादीपरात’ कहा जाएगा। विधेयक के मुताबिक तलाकशुदा हिंदुओं को फिर से शादी करने की भी इजाजत मिलेगी।
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– पाकिस्तान में हिंदू मैरेज बिल के ड्राफ्ट के मुताबिक शादी के 15 दिनों के भीतर इसका रजिस्ट्रेशन कराना होगा।
– शादी के समय हिंदू जोड़े की उम्र 18 साल या उससे अधिक होनी चाहिए।
– अगर पति पत्नी एक साल या उससे अधिक समय से अलग रह रहे हैं और साथ नहीं रहना चाहते। तो वो शादी रद्द कर सकते हैं।
– पति की मृत्यु के छह महीने के बाद महिला को दोबारा शादी करने का हक होगा।
– अगर कोई हिंदू व्यक्ति अपनी पहली पत्नी के होते हुए दूसरी शादी करता है तो यह एक दंडनीय अपराध माना जाएगा।
– बिल का उल्लंघन करने पर छह माह की सजा और पांच हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान है।
अब तक यहां हिंदू समुदाय के लोगों खासकर महिलाओं को अपनी शादी को साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं होता था। इससे उन्हें न्याय पाने में दिक्कत आती थी। यह समुदाय पुनर्विवाह, संतान गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे कानूनी अधिकारों से वंचित था। नए कानून से अब पाकिस्तान में हिंदू महिलाओं के अपहरण की घटनाओं पर भी लगाम लगने की उम्मीद है।