नई दिल्ली: मुगल शासन का दुनिया पर कितना राज था ये बताना तो जरूरी नहीं लेकिन दिल्ली या हिंदुस्तान के जितने भी पुराने बने किले या कोई स्मारक हैं उनमें ज्यादातर मुगल शासन की ही देन है।
इन्हीं में से एक बहादुर शाह ज़फर के परपोते की पत्नी हैं, सुल्ताना बेगम। जो आज की तारीख में कोलकाता के एक स्लम में रहती हैं। जहां रह कर अपनी जिंदगी काटने के लिए बेगम सुल्ताना बेगम को सरकार की तरफ़ से 6000 रुपए मिलते हैं।
खबरों के अनुसार, अपनी खराब हालत के बारे में सुल्ताना बेगम ने सोनिया गांधी को भी लिखा था। तब सरकार की तरफ से सुल्ताना को 50000 रूपये कैश में मिले थे। रहने के लिए एक अपार्टमेंट में फ्लैट भी मिला था। लेकिन गुंडों ने छीन लिया और सड़क पर ला कर खड़ा कर दिया।
राजशाही घराने से आते हैं, हम भीख नहीं मांग सकते
इसके बाद सुल्तान बेगम ने चाय की दुकान तक चलाई जिससे घर का खर्च चल सके। लेकिन वो भी बंद हो गई। कहती हैं, हम भीख भी नहीं मांग सकते। हमारे पति स्व. बेदर बख्त मुझसे कहा करते थे, “हम इज्ज़तदार राजशाही घराने से आते हैं, हम भीख नहीं मांग सकते” और आज हालात ये हैं कि स्लम के एक 2 रूम के चॉल में रहने को मजबूर हैं सुल्ताना।
इस बर्बादी की इबारत दशकों पहले लिख दी गई थी। जब 1857 की क्रांति की शुरुआत हुई थी तब बहादुर शाहज़फर के साथ मिलकर क्रांतिकारियों ने 60 के करीब अंग्रेज सिपाहियों को कैद कर लिया। जिन्हें बहादुरशाह ज़फर के महल में ही रखा गया था। बाद में जिन्हें मार दिया गया था। जिसके बारे में ऐसा कहा जाता है कि बहादुरशाह ज़फर का इससे कोई संबंध नहीं था।
लेकिन अंग्रेज शासकों को कोई लेना देना नहीं था। उनको तो बस नेता को कैद करना था। जो कि उन्होंने किया। बहादुरशाह को कैद कर लिया गया। यहां से भेज दिया गया, ‘रंगून'(तब बर्मा की राजधानी)। बाकी के बचे परिवार के लोग आज के पाकिस्तान वाले हिस्से में चले गए। कुछ लोग वर्तमान में पाकिस्तान वाले हिस्से में भागकर चले गए। कुछ इंडिया में ही कहीं छिप गए।
मुगल स्मारकों से सरकार करोड़ो कमाती है लेकिन हमें कुछ नहीं मिलता:
सुल्ताना बेगम उन्हीं कुछ में से हैं जो कि इंडिया में ही रह गए। आज अगर सब कुछ ठीक-ठाक होता तो सुल्ताना बेगम दिल्ली के ज़फर महल में रह रही होतीं लेकिन इतिहास अपने हिस्से का खेल चुका था।
आज सुल्ताना कहती हैं, भारत सरकार ताज महल, लाल किला, शालीमार गार्डन जैसी जगहों से करोड़ों पैसे कमाती है, मुझे जीने भर का आसरा तो मिल ही सकता है। जिससे मैं अपनी बाकी की ज़िंदगी शांति और चैन से बिता सकूं।