नई दिल्ली: बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के अचानक आत्महत्या करने से बॉलीवुड जगत से लेकर आम जनता तक सदमें में है। सुशांत की आत्महत्या के पीछे उनका डिप्रेशन बताया जा रहा है। अब एक बार फिर से भारत में मेंटलहेल्थ का मुद्दा गर्म हो चुका है। इस पर छानबीन करते हुए पता चला है कि भारत सरकार हर भारतीय की मेंटल हेल्थ पर सालाना 4 रूपया ही खर्च करती है। कई रिपोर्ट्स को पढ़ते हुए ये भी मालूम चला कि सरकार अब साल-दर साल मेंटलहेल्थ का बजट तक कम कर रही है।
डिप्रेशन को लेकर कई रिसर्च और आंकड़े हमें पहले ही बता चुके हैं कि ये कितनी गंभीर बीमारी है। दुनिया में हर 9 में से 1 व्यक्ति मानसिक बीमारी से जूझ रहा है। मेंटल हेल्थ बहुत गंभीर विषय है, लेकिन इस पर कभी उतना खास ध्यान नहीं दिया गया। पिछले साल दिसंबर में साइंस जर्नल द लैंसेट की एक रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 2017 तक 19.73 करोड़ लोग (कुल आबादी का 15%) किसी न किसी मानसिक बीमारी से जूझ रहे थे। यानी, हर 7 में से 1 भारतीय बीमार है। इनमें से भी 4.57 करोड़ डिप्रेशन और 4.49 करोड़ एंजाइटी का शिकार हैं।
देश में इलाज कितना मंहगा-
डिप्रेशन- 1000 रूपये से लेकर 5000 रूपये तक
सिजोफ्रेनिया- 1200 रूपये से लेकर 5000 रूपये तक
बायपोलर डिसओडर- 1000 रूपये से लेकर 5000 रूपये तक
एंजाइटी- 1000 रूपये से लेकर 3000 रूपये तक
भारत में हर साल एक लाख लोगों में से 16.3 लोग आत्महत्या करते हैं-
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनियाभर में 26 करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। 15 से 29 साल की उम्र के लोगों में आत्महत्या की दूसरी सबसे बड़ी वजह डिप्रेशन ही है। भारत में इसके आंकड़े और भी चौंकाने वाले हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक भारत में हर साल एक लाख लोगों में से 16.3 लोग मानसिक बीमारी से लड़ते-लड़ते आत्महत्या कर लेते हैं। इस मामले में भारत, रूस के बाद दूसरे नंबर पर है। रूस में हर 1 लाख लोगों में से 26.5 लोग सुसाइड करते हैं। वहीं, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2013 से लेकर 2018 के बीच 52 हजार 526 लोगों ने मानसिक बीमारी से तंग आकर आत्महत्या कर ली।
भारत में मेंटलहेल्थ को लेकर क्या व्यवस्था-
2018-19 के बजट में मेंटल हेल्थ को लेकर 50 करोड़ रुपए रखे थे। 2019-20 में घटकर 40 करोड़ रुपए हो गए। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, 2017 में हर भारतीय की मेंटल हेल्थ पर सालभर में सिर्फ 4 रुपए खर्च होते थे। नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे 2015-16 के मुताबिक, देश में 9 हजार साइकेट्रिस्ट हैं जबकि, हर साल करीब 700 साइकेट्रिस्ट ग्रेजुएट होते हैं। हमारे देश में हर 1 लाख आबादी पर सिर्फ 0.75 साइकेट्रिस्ट है, जबकि इतनी आबादी पर कम से कम 3 साइकेट्रिस्ट होना चाहिए। इस हिसाब से देश में 36 हजार साइकेट्रिस्ट होना चाहिए। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, 2017 में देश के मेंटल अस्पतालों में हर 1 लाख आबादी पर 1.4 बेड थे, जबकि हर साल 7 मरीज भर्ती होते थे। जबकि, सामान्य अस्पतालों में हर एक लाख आबादी पर 0.6 बेड हैं और इनमें हर साल 4 से ज्यादा मरीज आते हैं।
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