हैरान कर देगा अमेरिका का रक्षा बजट, भारत से लगभग 16 गुना अधिक

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न्यूयार्क: अमेरिका का इस वित्त वर्ष का रक्षा बजट 48.5 लाख करोड़ रुपए होगा। इस रक्षा बजट को हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव ने शुक्रवार को मंजूरी दे दी। इंडिया-पेसिफिक रीजन, साउथ चाइना सी में चीन की चुनौती, मिडिल ईस्ट में आईएस के खतरे, कोरिया संकट और सेना का वेतन बढ़ाने जैसे मुद्दों पर रक्षा बजट में 18% यानी 7.27 लाख करोड़ रुपए की बढ़ोतरी की है।

इस बिल को हाउस में 66 के मुकाबले 351 वोटों से मंजूरी मिली। बिल को एनडीएए 2019 नाम दिया गया है। यह बजट बिल राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दस्तखत के लिए उनके कार्यालय व्हाइट हाउस भेजा जाएगा। ये रक्षा बजट भारत के कुल रक्षा बजट करीब तीन लाख करोड़ रुपए से 16 गुना ज्यादा है। जबकि बजट बढ़ोतरी भारत के रक्षा बजट से ढाई गुना ज्यादा है। भारत का दुनिया में 5वां सबसे बड़ा रक्षा बजट है। दूसरे और तीसरे नंबर पर क्रमश: चीन और सऊदी अरब हैैैै।

साल 2003 में छह लाख करोड़ रु. बढ़े थे 
बजट में ये इजाफा 2003 के बाद सबसे बड़ा है। 2001 में हुए 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने 2003 में रक्षा बजट में 26% की बढ़ोतरी की थी। उस समय रक्षा बजट 25 लाख करोड़ रुपए से बढ़ाकर 31 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया था। वहीं, इस बार बजट बढ़ाने पर तर्क दिया गया है कि देश की मिलिट्री ताकत को मजबूती देनी जरूरी है।

पहली बार सैन्य परेड की तैयारी के लिए भी बजट में प्रा‌वधान
-टेक्नोलॉजी पर जोर और आतंकवाद के खात्मे के लिए अत्याधुनिक तकनीक इजाद करना। चीन-रूस को ध्यान में रखकर सामरिक तैयारी।
-सक्रिय सैन्य बलों के वेतन में इजाफा करना। और मिलिट्री परेड के लिए बजट का प्रावधान।
-सामरिक मोर्चे पर ज्यादा वॉरशिप और लड़ाकू विमानों की जरूरत, मेंटेनेंस आदि काम।

रूस, चीन की चुनौती समेत 3 मोर्चों पर निपटने की तैयारी
-रक्षा बजट में बढ़ोतरी कर अमेरिका की कोशिश तीन मोर्चों पर फिर से दबदबा कायम करने की है। ये मोर्चे हैं- चीन की चुनौती से निपटना, रूस से संबंधों में खटास, भारत-प्रशांत क्षेत्र और मिडिल ईस्ट में युद्ध।
-ट्रम्प के डेढ़ साल के कार्यकाल में रूस और चीन से संबंध खराब हुए। मिडिल ईस्ट में इराक, सीरिया में लड़ाई अंजाम तक नहीं पहुंच सकी।
-अब ट्रम्प अमेरिका को दुनिया की व्यापक राष्ट्र शक्ति के रूप में उभारने के लिए जुट गए हैं।
-रक्षा बजट बढ़ाने के पीछे बड़ा कारण चीन है, जिसने 2050 तक हर मोर्चे पर अमेरिका को पीछे छोड़ने के लक्ष्य तय किया है। अमेरिका तकनीक के दम पर सिरमौर बना रहना चाहेगा।

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