Karnataka Right To Die: कर्नाटक देश का पहला राज्य बना, जहां मिला सम्मान के साथ मरने के अधिकार

सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia) और लिविंग विल को संवैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता दी थी

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भारत में इच्छा मृत्यु यानी यूथेनेसिया पर लंबे समय से बहस चल रही है। हालांकि, अब कर्नाटक देश का ऐसा पहला  राज्य बन गया है जहां सम्मान के साथ मरने के अधिकार (Karnataka Right To Die) देने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू कर दिया गया है। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडू राव ने घोषणा की कि स्वास्थ्य विभाग ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार यह ऐतिहासिक आदेश जारी किया है।

लेकिन ये युथनेशिया नहीं इच्छा मृत्यु नहीं है। ये सशर्त तौर पर उन लोगों पर ही लागू होगा, जो विशेष तौर पर गंभीर रूप से बीमार हों या लाइलाज रोग से पीड़ित हो। वह ये निर्णय ले सकते हैं कि वह अपनी जीवनरक्षक चिकित्सा को जारी रखना चाहता है या नहीं। इसमें ‘लिविंग विल’ की स्थितियां शामिल हैं। जो व्यक्ति को गरिमा के साथ मरने का विकल्प प्रदान करती हैं।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia) और लिविंग विल को संवैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता दी थी लेकिन इसके साथ सख्त प्रक्रियागत शर्तें भी तय की थीं। इसी के मद्देनजर कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार ‘सम्मानपूर्वक मरने के अधिकार’ को लागू करने का निर्णय लिया है।

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क्या है ‘सम्मानपूर्वक मृत्यु का अधिकार’?
यह अधिकार उन मरीजों को दिया गया है जो गंभीर और लाइलाज बीमारियों से पीड़ित हैं, जिनके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है, और जो जीवन रक्षक उपचार जारी नहीं रखना चाहते। ऐसे मामलों में, मरीज अग्रिम चिकित्सा निर्देश (Advance Medical Directive) या ‘लिविंग विल’ के माध्यम से अपनी इच्छाएं दर्ज करा सकते हैं, जिसमें वे भविष्य में अपने उपचार के बारे में निर्णय ले सकते हैं।

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इच्छामृत्यु से कैसे अलग है यह अधिकार?
‘सम्मानपूर्वक मृत्यु का अधिकार’ और इच्छामृत्यु (Euthanasia) दोनों ही जीवन के अंत से संबंधित हैं, लेकिन इनमें अंतर है। इच्छामृत्यु में किसी गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति की जानबूझकर जीवन समाप्त की जाती है, जबकि ‘सम्मानपूर्वक मृत्यु का अधिकार’ में मरीज को यह निर्णय लेने का हक होता है कि वह जीवन रक्षक उपचार जारी रखना चाहता है या नहीं। भारत में इच्छामृत्यु कानूनी रूप से अवैध है।

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सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, ऐसे मामलों की देखरेख के लिए दो बोर्ड बनाए जाएंगे:

  1. प्राथमिक बोर्ड (Primary Board): अस्पताल स्तर पर कार्य करेगा।
  2. द्वितीयक बोर्ड (Secondary Board): जिला स्तर पर कार्य करेगा, जिसमें जिला स्वास्थ्य अधिकारी (DHO) या उनका नामित व्यक्ति शामिल होगा।

द्वितीयक बोर्ड के सदस्यों में न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन, सर्जन, एनेस्थेटिस्ट या इंटेंसिविस्ट शामिल होंगे, जिन्हें मानव अंग और प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 के तहत अनुमोदित किया गया है। कर्नाटक सरकार के इस कदम से असाध्य बीमारियों से ग्रस्त मरीजों को अपनी जीवन की गुणवत्ता के बारे में निर्णय लेने का अधिकार मिलेगा, जिससे वे सम्मानपूर्वक मृत्यु का चयन कर सकेंगे।

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