कार्ल मार्क्स: 20वीं सदी पर सबसे बड़ा असर छोड़ने वाला विचारक

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कार्ल मार्क्‍स का नाम आते ही जेेेेहन में एक गंभीर दार्शनिक,लेखक और चिंतक की छवि उभरती है। मार्क्स के बारें में कहा जाता है कि वह उस व्यक्ति की तरह थे जो खुली आंखों से सपना देखा करता था। सपना जो उससे पहले भी कईयों ने देखा था – ‘दुनिया में सभी लोग बराबर होने चाहिए’। लेकिन ये सपना देखकर वह बैठ नहीं गया। तुरंत ही सपने को हकीकत में बदलने की तमाम कोशिशें करने लगा।

इतिहास गवाह है, 1980 तक दुनिया भर में 10 करोड़ से ज्यादा इंसान कम्युनिस्ट शासन के अंतर्गत रह रहे थे। यानि मार्क्स का सपना सच हो चुका था। तमाम समाज विज्ञानी मानते हैं कि 20वीं शताब्दी पर किसी और इंसान की बजाए मार्क्स की सामाजिक बदलाव पर छाप कहीं गहरी छुटी थी।

1999 में कराए गए BBC के एक ऑनलाइन पोल के मुताबिक मार्क्स इस सहस्त्राब्दी के विचारकों में सबसे आगे थे। आज हम उनके 200वीं जंयती पर जानेगे उनकी किताबों और विचारों से परे उनकी निजी जिंदगी के बारें में…

वे एक सच्‍चे कामरेड होने के साथ साथ बेहद संवेदनशील प्रेमी,पति,पिता और मित्र भी थे। उनका जीवन बेहद उतार चढ़ाव भरा था। इसके बावजूद उनके दिल में इंसानियत के लिए और हर इंसानी रिश्‍ते के लिए अथाह प्‍यार भरा था।  इस बात की हकीकत हमें उनके लिखे खतों से मिलती है। प्रेम और दर्शन, ये दोनों पहलू उनमें  इतनी इच्छी तरह मिले हुए थे कि जब तक हम उन्हें एक साथ ही वैज्ञानिक और समाजवादी योद्धा के रूप में न जान लें, तब तक हम उन्हें नहीं समझ सकते हैं।

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मार्क्स ने की थी उम्र में 4 साल बड़ी प्रेमिका से शादी:

मार्क्‍स को पहले प्रेमिका फिर पत्‍नी बनी जेनी से बहुत प्‍यार था। इस बात का पता इस बात से चलता है कि उन्‍होंने अपनी बेटियों के नाम में ‘जेनी’ जोड़ रखा था। जैसे- जेनी लॉरा, जेनी कैरोलाइन, जेनी एवलिन फ्रैंकस और जेनी जूलिया एलेनॉर। मार्क्स की तीसरी बेटी जेनी एवलिन फ्रैंकस एक साल की उम्र में ही चल बसी। मार्क्‍स इसी सहज मानवीय प्रेम का नमूना है 21 जून  1865 काे जेनी केे लिए लिखा लव लेटर।

मेनचेस्टर, 21 जून  1865

मेरी प्रिय

देखो, मैं तुम्हें फिर से खत लिख रहा हूँ। जानती हो क्यों? क्योंकि मैं तुमसे दूर हूँ और जब भी मैं तुमसे दूर होता हूँ तुम्हें अपने और भी करीब महसूस करता हूँ। तुम हर वक्त मेरे जेहन में होती हो और मैं बिना तुम्हारे किसी भी प्रतिउत्तर के तुमसे कुछ न कुछ बातें करता रहता हूँ,

ये जो छणिक दूरियां होती हैं न प्रिय, ये बहुत सुन्दर होती हैं। लगातार साथ रहते-रहते हम एक-दूसरे में, एक-दूसरे की बातों में, आदतों में इस कदर इकसार होने लगते हैं कि उसमें से कुछ भी अलग से देखा जा सकना संभव नहीं रहता। फिर छोटी छोटी सी बातें, आदतें बड़ा रूप लेने लगती हैं, चिडचिड़ाहट भरने लगती हैं। लेकिन दूर जाते ही वो सब एक पल में कहीं दूर हो जाता है, किसी करिश्मे की तरह दूरियां प्यार की परवरिश करती हैं ठीक वैसे ही जैसे सूरज और बारिश करती है नन्हे पौधों की। ओ मेरी प्रिय, इन दिनों मेरे साथ प्यार का यही करिश्मा घट रहा है। तुम्हारी परछाईयां मेरे आसपास रहती हैं, मेरे ख्वाब तुम्हारी खुशबू से सजे होते हैं। मैं जानता हूँ कि इन दूरियों ने मेरे प्यार को किस तरह संजोया है, संवारा है।

जिस पल मैं तुमसे दूर होता हूँ मेरी प्रिय, मैं अपने भीतर प्रेम की शिद्दत को फिर से महसूस करता हूँ, मुझे महसूस होता है कि मैं कुछ हूँ। ये जो पढ़ना-लिखना है, जानना है, आधुनिक होना है ये सब हमारे भीतर के संशयों को उजागर करता है, तार्किक बनाता है लेकिन इन सबका प्यार से कोई लेना-देना नहीं। तुम्हारा प्यार मुझे मेरा होना बताता है, मैं अपना होना महसूस कर पाता हूँ तुम्हारे प्यार में।

इस दुनिया में बहुत सारी स्त्रियाँ हैं, बहुत खूबसूरत स्त्रियाँ हैं लेकिन वो स्त्री सिर्फ तुम ही हो जिसके चेहरे में मैं खुद को देख पाता हूँ। जिसकी एक एक सांस, त्वचा की एक एक झुर्री तुम्हारे प्यार की तस्दीक करती है, जो मेरे जीवन की सबसे खूबसूरत याद है। यहाँ तक कि मेरी तमाम तकलीफों और जीवन में होने वाले तमाम अपूरणीय नुकसान भी उन मीठी यादों के साये में कम लगने लगते हैं।

मैं तुम्हारी उन प्रेमिल अभिव्यक्तियों को याद करता हूँ, तुम्हारे चेहरे को चूमते हुए अपने जीवन की तमाम तकलीफों को, दर्द को भूल जाता हूँ…

विदा, मेरी प्रिय, तुम्हें और बच्चों को बहुत सारा प्यार और चुम्बन…

तुम्हारा

मार्क्स

ये तो है मार्क्स की लिखी वो चिट्टी है जो ये बंया करती है कि वो अपनी पत्नी से कितना प्यार करते थे। उनके जीवन के हालात इतने भी सामान्य नहीं थे जो बताए जाते हैं.. जरा ये भी पढ़ें…

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जेनी मार्क्स को ‘एक छोटा जंगली’ बोला करती थीं। वे दिन बड़े कठिन थे। शादी के बाद दोनों पेरिस चले गए। जेनी मार्क्स को एक जर्मन शब्द ‘schwarzwildchen’ से पुकारा करती थीं जिसका मतलब होता है ‘एक छोटा जंगली’।

एक रोज जेनी मार्क्स से चिढ़ गईं और इस तरह से जीवन गुजारने का कारण पूछा। जेनी मानती थीं कि ऐसी जिंदगी जीने से क्या फायदा जब आपके पास बाल कटवाने, दाढ़ी बनवाने और नाखून काटने का वक्त ही नहीं है? इसका जवाब देते हुए मार्क्स कहा था, ‘अभी मैं अपने बारे में नहीं सोच रहा। जो काम कर रहा हूं, करते हुए मेरे दिमाग में बेबसी में जी रहे लाखों-करोड़ों मजदूर होते हैं।’

लंदन शिफ्ट होने के बाद मार्क्स का परिवार पूरी तरह से उसके मित्र और सहकर्मी एंगेल्स की मदद पर ही निर्भर था। वे हालांकि उनकी गरीबी असली नहीं थी। उन्हें जेनी के अमीर रिश्तेदारों से कुछ मदद जरूर मिली थी जिन्हें मार्क्स बिल्कुल पसंद नहीं करते थे और उनकी मौत से खुश ही हुए थे।

जेनी और बेटियों की मौत ने मार्क्स को तोड़ दिया

जेनी की कैंसर के चलते 2 दिसंबर, 1881 को मौत हो गई। जेनी की मौत के अगले ही साल मार्क्स की सबसे बड़ी बेटी कैरोलाइन की मौत हो गई। मार्क्स की सबसे छोटी बेटी एलेनोर मार्क्स ने 1898 में खुदकुशी कर ली।

मार्क्स को कई तरह की बीमारियां तो पहले से ही थीं जिसमें बवासीर, आंतों का बढ़ जाना, त्वचा रोग और मनोवैज्ञानिक रोग भी शामिल थे। जेनी की मौत के बाद मार्क्स को सदमा लगा और उनकी जिंदगी बमुश्किल 15 महीने ही और चल सकी।

उन्हें इस घटना के बाद तमाम बीमारियों ने घेर लिया और 15 मार्च, 1883 में मार्क्स की मौत हो गई। जिस समय मार्क्स की मौत हुई वो रूस की अर्थव्यवस्था के आंकड़ों की व्याख्या में जुटे हुए थे।

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महान विचारक को दफनाने बस 10 लोग आए थे

परिवार और दोस्तों ने उसे लंदन में ही दफना दिया। इतने बड़े विचारक की मौत पर वहां 10 लोग ही मौजूद थे। इनमें से एक एंगेल्स भी थे, जिन्होंने इस मौके पर कहा था, ’14 मार्च को दोपहर को, जब 3 बजने में 15 मिनट बाकी थे, दुनिया के सबसे महान जीवित विचारक ने सोचना बंद कर दिया।’

खुलासा: मार्क्स का एक बेटा भी था

1895 में अपनी मौत के वक्त एंगेल्स, मार्क्स की दो बेटियों के लिए करीब 48 लाख डॉलर की संपत्ति छोड़ गया था। मार्क्स की मौत के बाद एक विवादित खुलासा हुआ कि मार्क्स का उसके घर काम करने वाली नौकरानी से भी एक बच्चा था। उसका नाम फ्रेडी डीमथ था।

फ्रेडी पहले एंगेल्स का बेटा माना जाता था और उसके संरक्षण में ही बड़ा हुआ था। एंगेल्स ने भी कभी ये खुलासा नहीं होने दिया था और हमेशा ही उसका असली बाप होने का नाटक किया।

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