क्या सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना खुद का सार्वजनिक प्रदर्शन करना है? 

65% बुजुर्ग इंटरनेट उपयोगकर्ताओं का मानना ​​है कि फोन या कंप्यूटर पर अत्यधिक ध्यान देना अपमानजनक है। बुजुर्गों को  नजरअंदाज कर दिया जाता है।

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सोशल मीडिया के आगमन के साथ सामाजिक जीवन के संबंध में एक नई क्रांति शुरू हुई है और सामाजिककरण के तरीके में भारी बदलाव आया है। पर क्या क्या आपने कभी सोचा है कि सोशल मीडिया के बिना जीवन कैसा होता होगा?
21वीं शताब्दी इंटरनेट और वेब मीडिया के युग की शताब्दी मानी जा रही है। हो भी क्यों न? मानव ने अपनी सुविधानुसार कई चीजों का आविष्कार किया। स्कॉटलैण्ड के अलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने 1876 में टेलीफोन का आविष्कार
किया था। इसके बाद से लगातार आविष्कार होते ही रहे हैं और जारी हैं। आज सब कुछ इंटरनेट पर निर्भर है।  सोशल मीडिया के आने से हमारे द्वारा खींची हुईं तस्वीरें एलबम में सिमट जाती थीं। जब हम कभी भी उन्हें दोबारा देखते थे तो कुछ पलों के लिए मीठी यादें और सुकून दे जाती थीं ? आज जिन्दगी के किसी भी हिस्से को हम सोशल मीडिया के जरिए हर किसी को शेयर कर सकते हैं। सोशल मीडिया के इस्तेमाल के दौरान हम यह नहीं देखते कि हमारी जिंदगी की घटनाओं में कौन दिलचस्पी रख रहा है, कौन नहीं। सवाल यह है कि क्या सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना अपना सार्वजनिक प्रदर्शन करना है? क्या आज सामाजिक ऐप्स और वेबसाइटों के बिना जीवन आसान या कठिन होगा?
निश्चित रूप से,  50 और 60 के दशक में जन्में लोग एक बच्चे के रूप में बधाई देने के लिए  ग्रीटिंग कार्ड्स बनाते थे ताकि वे अपने प्रियजनों को जन्मदिन, शादी की सालगिरह, पिता दिवस, मातृ दिवस आदि पर बधाई दे सकें।
बाजार से तरह-तरह के रंगीन ग्रीटिंग कार्ड्स खरीदने के लिए दुकानों पर खड़े रहना, फिर डाकघर जाकर टिकट खरीदना, फिर लेटर बॉक्स में डालना एक अलग तरह का ही रोमांच था। आज एेसा रोमांच कहां है। अलग-अलग अवसरों पर बधाई
देने के लिए तारघरों में विशेष व्यवस्था होती थी। जन्म दिन, साल गिरह, परीक्षा में उत्तीर्ण होने आदि के लिए अलग-अलग क्रमांक संख्या होती थी। अब तो भारत तो क्या संसार के सभी देशों में टेलीग्राम खत्म हो गया है। फिर काहे के तारघर और टेलीग्राम। टेलीफोन से बधाई देना बहुत ही धनाढ्य लोगों के लिए सम्भव था।  बाद में टेलीफोन क्रांति आई। उन दिनों भारत में एकमात्र दूरसंचार सेवा प्रदाता बीएसएनएल और एमटीएनएल (देश के कुछ हिस्सों में) था जो देर रात या सुबह के दौरान किए गए कॉल (केवल लैंडलाइन) के लिए सस्ती कॉल दरें प्रदान करता था। यह स्थिति प्रेषक और रिसीवर दोनों के लिए लाभप्रद थी। चूंकि सभी लोग शुभचिंतकों की सूची में शीर्ष पर जाना चाहते थे, इसलिए सबसे पहले कॉल करने की होड़ लगी रहती थी। बच्चे के जन्मदिन, शादी की सालगिरह समेत अनेक उल्लासमय शुभकामनाओं के लिए टेलीफोन किया जाता था।

आह! वह दिन कितने अच्छे थे! धीरे-धीरे इन हस्तनिर्मित कार्ड, ग्रीटिंग कार्ड और कीमती फोन कॉलों की संख्या तेजी से घटती गई और इनका स्थान ले लिया इंटरनेट के जरिए सोशल मीडिया ने। एसएमएस भी बधाई देने का जरिया बन गया। पहले एसएमएस भेजने की भी शब्द सीमा था, वह सीमा भी न के बराबर है। हालांकि  50 और 60 के दशक में जन्में ज्यादातर लोग आज भी पारिवारिक बंधन बनाए रखने के लिए कार्ड का उपयोग करते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि फोन कॉल या इंटरनेट से भेजे बधाई संदेश में कार्ड या आवाज में भावनाओं का व्यक्तिगत स्पर्श गायब है। देखा जाए तो मार्क जुकरबर्ग ने अपने क्रांतिकारी सोशल मीडिया मंच – फेसबुक के जरिए पूरे सामाजिक गठन को बदल
दिया है। उनके नवाचार से बहुत से लोगों को अपने जीवन के साथ-साथ अपने प्रियजनों के जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण तिथियों और घटनाओं को चिह्नित करने में मदद मिली है।

कॉमस्कोर की तरफ से जारी एक रिपोर्ट में व्हाट्सएप के भारत में 200 मिलियन यूजर हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि भारतीय यूजर्स 89 फीसद समय स्मार्टफोन पर और बाकी का समय डेस्कटॉप या लैपटॉप पर ऑनलाइन बिताते हैं। यह आंकड़ा अमरीका और कनाडा से कई गुना ज्यादा है। कॉमस्कोर की रिपोर्ट में  ग्यारह देशों जैसे अमरीका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन, यूके, अर्जेनटीन, ब्राजील, मैक्सिको, भारत, इंडोनेशिया और मलेशिया के डाटा का इस्तेमाल किया गया है। अब यह कोई रहस्य नहीं है कि प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया का उपयोग वास्तविक दुनिया में व्यक्तिगत बातचीत को कम कर सकता है। ज्यादातर वरिष्ठ नागरिक यह मानते हैं कि ‘गुणवत्ता धीरे-धीरे कम हो रही है। हालांकि, बड़ा मुद्दा कहीं और स्थित है। रिपोर्ट के अनुसार, 65% बुजुर्ग इंटरनेट उपयोगकर्ताओं का मानना ​​है कि फोन या कंप्यूटर पर अत्यधिक ध्यान देना अपमानजनक है। बुजुर्गों को  नजरअंदाज कर दिया जाता है। हेल्पएज के निष्कर्ष से पता चलता है कि इंटरनेट कनेक्टिविटी से जहां बुजुर्ग भारत के बाहर रह रहे अपने परिवार से जुड़े हैं  वहीं उनमें ‘अलगाव’ भी बढ़ा है। इन सभी सामाजिक गतिविधियों के बीच एकमात्र प्रश्न जो मेरे दिमाग में बार-बार उठता है और मुझे यकीन है कि आप में से कई लोग मेरे विचार से सहमत होंगे -जब सब कुछ है ऐप संचालित है और उसमें कुछ भी व्यक्तिगत स्पर्श नहीं है तो क्या यह दूरी परिवारों और दोस्तों से कहीं अधिक व्यापक है?

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