Gyanvapi Masjid Case: वाराणसी की जिला अदालत ने बड़ा फैसला सुनाते हुए ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में हिंदू पक्ष को पूजा करने का अधिकार दे दिया है। 31 सालों से यानी 1993 से तहखाने में पूजा-पाठ बंद था। कोर्ट ने कहा कि वाराणसी के डीएम 7 दिन के अंदर पुजारी नियुक्त करेंगे, जिसके बाद व्यास परिवार पूजा-पाठ शुरू कर सकता है।
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इससे पहले, कोर्ट ने 17 जनवरी को व्यास जी के तहखाने का जिम्मा डीएम को सौंप दिया था। डीएम ने मुस्लिम पक्ष से तहखाने की चाबी अपने पास ले ली थी। इसके 7 दिन बाद यानी 24 जनवरी को डीएम की मौजूदगी में व्यास तहखाने का ताला खोला गया था। वहीं, मुस्लिम पक्ष के वकील मेराजुद्दीन ने कहा कि फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट जाएंगे। यह फैसला न्यायसंगत नहीं है।
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क्या है व्यास तहखाना?
हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने बताया कि भगवान नंदी जहां पर विराजमान हैं, उसके ठीक सामने व्यास परिसर का तहखाना है। यहां 1993 तक पूजा होती थी, लेकिन नवंबर 1993 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने इसे अवैध रूप से बंद करा दिया था। साथ ही पूजा करने वाले पुजारियों को हटा दिया गया था।
1551 से मिलता है व्यास परिवार का वंशवृक्ष
वाराणसी में व्यास परिवार वंशवृक्ष 1551 से मिलता है। सबसे पहले व्यास शतानंद व्यास थे, जो 1551 में इस मंदिर में व्यास थे। इसके बाद सुखदेव व्यास (1669), शिवनाथ व्यास (1734), विश्वनाथ व्यास (1800), शंभुनाथ व्यास (1839), रुकनी देवी (1842) महादेव व्यास (1854), कलिका व्यास 1874), लक्ष्मी नारायण व्यास (1883), रघुनंदन व्यास (1905) बैजनाथ व्यास (1930) तक यह कारवां चला।
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बताते चले ज्ञानवापी की ASI सर्वे की रिपोर्ट 25 जनवरी को देर रात सार्वजनिक हुई थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक, परिसर के अंदर भगवान विष्णु, गणेश और शिवलिंग की मूर्ति मिली हैं। पूरे परिसर को मंदिर के स्ट्रक्चर पर खड़ा बताते हुए 34 साक्ष्य का जिक्र किया गया है। मस्जिद परिसर के अंदर ‘महामुक्ति मंडप’ नाम का एक शिलापट भी मिला है।
ASI ने रिपोर्ट में लिखा कि ज्ञानवापी में एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था। 17वीं शताब्दी में जब औरंगजेब का शासन था, उस वक्त ज्ञानवापी स्ट्रक्चर को तोड़ा गया। कुछ हिस्सों को मॉडिफाई किया गया। मूलरूप को प्लास्टर और चूने से छिपाया गया। 839 पेज की रिपोर्ट में ASI ने परिसर के प्रमुख स्थानों का जिक्र किया।
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