चुनाव: सोच मे संशोधन जरूरी      

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चुनाव का अर्थ है किसी चीज को चुनना। आज बदलते परिवेश में हम अपने चुनाव के लिए बहुत सी चीजों पर आधारित होते हैं? हमें बचपन से सिखाया जाता है की चुनाव के वक्त बिना किसी स्वार्थ के बिना जातिगत भेदभाव के चुनाव करें, पर क्या ऐसा कर पाते हैं? नहीं आजकल राजनीति भी इसी का फायदा उठाती है,हमारी जरूरतों को मुद्दा बनाया जाता है और वह मुद्दा सिर्फ मुद्दा बनकर रह जाता है। कभी जाती,कभी क्षेत्र,कभी शिक्षा,तो कभी रोजगार के नाम पर हमें बहलाया बुलाया जाता है, हम भूल जाते हैं बचपन की वह किताबी बातें, पर कब तक ऐसा होता रहेगा? कुछ आगे हमें ही सोचना पड़ेगा, सिर्फ जाति और धर्म के नाम पर इस बार वोट नहीं देंगे ,क्षेत्र और विकास के लिए ही हम कुछ सोचेंगे अपने वोटो को बिकने नहीं देंगे। ना ही अपने ईमान को बेचेंगे। झूठे लालच के दांव पेच से दूर होकर उसे चुनेंगे जो सच में विकास करें सिर्फ विकास की बातें नहीं। यह सच है गंदगी को दूर करने के लिए हमें उस में उतरना पड़ता है। जिसे देखें वही तो आज गंदा हुआ खड़ा है तो अब किसे चुने यह एक बहुत बड़ा मुद्दा है। हमें यह सोचना होगा की इन सब मैलो में कम मैला कौन है ? और क्या कोई साफ भी है यहां ? अगर है, तो उसे बिना किसी भेदभाव के चुने। उसे चुनें जो आपको भेदभाव करना ना सिखाए जो आपको बांटे नहीं एक करके आगे बढ़ना सिखाएं। एक नेता समाज का आदर्श होता है, आईना होता है हमारा, प्रतिनिधि होता है और इस प्रतिनिधि को इन भेदभाव की झूठी दीवारों के परे देखें और चुने। मैंने देखा है लोगों को बिकते हुए, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता देश बिक जाए उनकी पेट की भूख देश से बड़ी हो जाती है। उनकी जीने की इच्छा देश को मारने से बड़ी हो जाती है, कोशिश करें उनकी मदद करने की ताकि हम देश को आगे बढ़ा पाए बिकने ना दे। यह देखें कि किसी ने सिर्फ शुरू के 1 साल आखिरी के 1 साल काम ना करके पूरे 5 साल काम किया है, किसने सिर्फ दिखावे के लिए किसी किसान के घर में ना जाकर सच में उसका दुख दर्द बाँटा है कौन है जो सरकारी पैसे को खुद की पैसों की तरह मितव्ययिता से उपयोग करता है। जो काम कराता है वह 5 साल के लिए नहीं अगले 50 वर्षों तक वैसा ही रहता है। वह कौन है जिसकी बनाई गई सड़कें सिर्फ 2 साल के लिए नहीं बनती उम्र भर के लिए मजबूत होती है। वह कौन है जो लोगों को पैसों से नहीं अपने काम के बल पर दिलों को जीता है।

धर्म-जाति नहीं मुद्दों का चुनाव करें-

आज इस बदलते परिवेश में हमारा संविधान भी परिवर्तन मांगता है बात आरक्षण की हो रोजगार की चुनाव की  या  नौकरी की सर्वप्रथम अगर हम  आरक्षण की बात करें तो आज के परिवेश में आरक्षण जरूरी है  पर  उसकी चयन सीमाएं  हमें परिवर्तित करनी पड़ेगी  जातिगत किस स्थान पर  आर्थिक आधार बनाना होगा  ताकि  उचित परिणाम मिले  भेदभाव खत्म करने के लिए संविधान बना था  पर आज वही संविधान भेदभाव बना रहा है। एक छोटे से बच्चे को तब तक जाति का अर्थ नहीं पता होता जब तक उससे कक्षा में उसके अध्यापक जाति प्रमाण पत्र लाने को नहीं कहते, उस दिन उसे पता चलता है कि उसके साथ वाले सभी बच्चे एक से नहीं है, कुछ है जिन्हें कुछ विशेष अधिकार प्राप्त है और कुछ है जिन्हें सरकार  आगे बढ़ने पर मदद करती हैं। पर वह मदद कितनी  वास्तविक मदद है इसका विश्लेषण करना होगा। मेरा अपना मत यह है कि अगर आर्थिक आरक्षण किया जाए तो इसका फायदा उसे मिलेगा जिससे इसकी वास्तविक आवश्यकता है। आज आरक्षण का लाभ सिर्फ एक सतह के लोग ही उठाते हैं  निम्न वर्ग के लोग आज भी शोषित ही हो रहे हैं। जो सिर्फ तभी आगे बढ़ पाएंगे जब आर्थिक आधार पर आरक्षण होगा।

दूसरा मुद्दा आया रोजगार का। पहले जाति  का वर्णन वर्गीकरण किस प्रकार था  जो-जो कार्य करता था वह उस जाति का था  पर क्या आज भी यही आधार है?नहीं आज सब-सब कार्य करते हैं  पर  फिर यह जाति को बीच में क्यों लाया जाता है?

तीसरा मद्दा आया चुनाव का  एक  प्राइवेट नौकरी  और एक सरकारी नौकरी में क्या अंतर है और क्यों?एक प्राइवेट नौकरी करने वाला हमेशा यह सोचता है कि अगर उसने कार्य नहीं किया तो हाथ से नौकरी गई। जितना कार्य करेगा कितनी मेहनत करेगा और जितनी गुणवत्ता से करेगा उसका उतना ही लाभ उसे मिलेगा और वह उतनी ही आगे बढ़ेगा परंतु क्या सरकारी नौकरी में भी ऐसा होता है नहीं एक बार सरकारी नौकरी मिली फिर भले काम करो या ना करो नौकरी हमसे दूर नहीं जाएगी और यही कारण होता है लोग सरकारी नौकरी करना तो पसंद करते हैं परंतु ना सरकारी अस्पताल जाना पसंद होता है ना सरकारी दवाखाना सरकारी दफ्तरों के नाम पर सिर्फ चक्कर काटना ही याद रहता है और इसके लिए कौन जिम्मेदार है सरकार नहीं हम खुद भी हम भी यही सोचते हैं कि एक बार सरकारी नौकरी लगी और बस ठीक इसी प्रकार हमें अपने चुनाव को कर करना होगा अगर कोई प्रत्याशी काम ना करें तो उसे वापस बुलाने का अधिकार 5 वर्षों के बीच में अगर किसी के खिलाफ अधिक कंप्लेन आए तो हम उसे अपने पास वापस बुलाया  के नए प्रत्याशी को वहां भेज सकें ताकि उन्हें भी डर हो कि काम नहीं किया तो घर वापस जाना पड़ेगा।

सोच में बदलाव करें
इसके लिए नोटा एक्ट भी पारित किया पर क्या फायदा निकला उसका नोटा हो तो ऐसा हो अगर उस का प्रतिशत अधिक हो तो वह दो राजनीतिज्ञ जोकि उस समय चुनाव में खड़े थे उन्हें अगले 10 साल तक वोट चुनाव में ना खड़े होने को मिले पर ऐसा नहीं है नोटा पर वोट देने के बाद भी विजयी तो वह होगा जैसे बाकी दलों में सबसे अधिक मत प्राप्त हुए मोटा होकर भी अर्थ ही नहीं रहा ना जाने हम समझदार संशोधनों से इतना डरते क्यों हैं चाहे बात जीएसटी लागू होने की हो यहां अपनी मुद्रा बदलने की सभी बदलाव बुरे नहीं होते अधूरी जानकारी इस दरों का कारण होती है जब हम खुद के लिए कोई कपड़े खरीदने जाते हैं तो सिर्फ चार के दो कपड़ों में से एक खरीद नहीं खरीदते  बहुत से बहुत से कपड़े देखते हैं बहुत सी डिजाइंस देखते हैं कई बार बहुत सी दुकानें या वेबसाइट भी देखते हैं फिर जो पसंद आता है उसमें मोलभाव करते हैं तब कहीं जाकर खुद के लिए एक जोड़ी कपड़े आते हैं तो फिर हम अपने देश के नेता को परखने के लिए कोई मापदंड तय क्यों नहीं करते बस भेड़ चाल में किसी एक रंग में अपने आप को भी होते रहते हैं।

भारत एक युवा देश है आर्य युवा शक्ति आज जो चाहे वह कर सकती है जो चाहे वह बदल सकती है तो क्यों ना हम आज अपने इस युवा देश को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए संकल्प लें संकल्प ले की हम अपने देश के लिए सबसे पहले तो चुनाव करेंगे सबसे अच्छे का मतदान किसी भी हालत में करेंगे मतदान के दिन को सिर्फ एक छुट्टी का दिन बनाकर नहीं रखेंगे खुद तो मतदान करेंगे ही औरों से भी पूछेंगे कि क्या मतदान किया अब आधे से ज्यादा जनसंख्या मतदान करती ही नहीं है सबके अपने कारण होते हैं कुछ का कहना होता है कि सभी राजनीतिक दल एक से होते हैं इन्हें मत दे या ना दे क्या फर्क पड़ता है अनजाने में खुद को ही छोटा समझ बैठते हैं तू कुछ छुट्टी ना मिल पाने के कारण मतदान नहीं कर पाते कुछ अपने कार्य क्षेत्र और निवास क्षेत्र से दूर होने के कारण पता नहीं कर पाते पर यह सब बहाने हैं मतदान ना करने के हम दूसरे प्रदेश से भी अपने प्रदेश में वोट डाल सकते हैं यह जानकारी सबको प्राप्त नहीं होती और जो लोग बाहर नौकरी करते हैं वह लोग वोट डालते ही नहीं जब तक आप वोट नहीं डालेंगे तब तक आप किसी को दोष नहीं दे सकते और दोष देना तो हम भारतीयों का सबसे प्रिय कार्य है

संशोधन अब जरूरी है, समाज में भी हमने भी और हमारे संविधान में भी उम्मीद करती हूं आप सब इस बार अपने चुनाव से पहले बचपन की वो किताबी बातें जरूर ध्यान करेंगे और मतदान जरूर करेंगे।

श्रुति दीप तिवारी

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