बाल दुराचार- आकंड़े दे रहे हैं गवाही

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पापा, वो अंकल है ना, वो ना बहुत अच्छे है। पाँच साल की बच्ची ने अपने पापा से कहा। पापा मुस्कुराते हुये बोले- अच्छा! वो अंकल अच्छे हैं, मैं नहीं? बच्ची बोली- आप अच्छे तो हो पर रोज चॉकलेट नहीं देते। वो अंकल मुझे रोज चॉकलेट देते है मेरे साथ बहुत सारे गेम्स खेलते है, पर कभी कभी इतना खेलते है कि मुझे दर्द भी होने लगता है। पापा को ज्यादा समझ न आया पर वो खुश थे कि उनकी बेटी पड़ोस में ही रहने वाले अंकल के पास खेलती है।

उसकी बातों को समझ न पाना शायद उनकी सबसे बड़ी गलती थी। वह उन अंकल को बाह्य रूप से तो जानते थे पर उस व्यक्ति के अंदर जो राक्षस था उससे पूर्णतः अंजान थे। सबकुछ ऐसे ही चलता रहा और दिन प्रतिदिन बच्ची के अंदर का बाल स्वभाव कही खोने लगा। और उन अच्छे अंकल का गेम बच्ची की साँसें रुकने तक चला। वासना की भूख एक और अबोध बच्ची को खा गयी। उसके कपड़ों पर लगा खून चीख-चीख कर बता रहा था कि उसको कितना दर्द हुआ होगा। उसके चेहरे पर आँसूओं की जो धारायें बही थी सारी कहानी बयान कर रही थी।

अच्छे वाले अंकल ने उसके साथ क्या किया वो समझ ही ना पायी होगी। ऐसा क्यूं हुआ, शायद उस बच्ची का ही दोष रहा होगा उसकी फ्रॉक छोटी थी, और कभी कभी तो बिन कपड़ों के भी चली जाती थी अंकल के पास। तो जो हुआ उसकी ही हरकतों से हुआ, उस बलात्कारी की क्या गलती बच्ची के अधखुले अंग उसे उत्तेजित कर गये तो उसने ऐसा कर दिया और इसमे उसका क्या कसूर। और सबसे बड़ी उसकी गलती ये थी कि वो लड़की थी। माँ पिता का भी पूरा दोष था जो उसे रोक नहीं पाये ऐसी हरकतों से।

खैर खून तो आपका भी अबतक उबाल लेने लगा होगा। पर कोई फर्क नहीं पड़ता इससे, क्यूंकि ये उबाल दूध सा है बस क्षणिक। ये सब पढ़ने के बाद फिर सब भूल जायेंगे और सब सामान्य हो जायेगा। ये उम्मीद करना आपसे कि वो अच्छे अंकल जो थे वैसे दूसरे अंकल जो आपके आस पास रहते है और दूसरे बच्चों पर भी नज़र रखते है, आप उनको पहचानते और जानते भी होंगे तो भी उनके खिलाफ कोई आवाज़ उठायेंगे बिल्कुल व्यर्थ है क्यूंकि ऐसा कुछ अभी आपके घर तक नहीं आया। शासन प्रशासन से उम्मीद लगाये बैठे होंगे कि वो ऐसे लोगों पर नियन्त्रण करेगी क्यूंकि ये उनका काम है और इसमें आपकी कोई सहभागिता तो है नहीं।

Final Issue for Printing_May 2018-16

आपने अपना योगदान कैंडल मार्च निकालकर, सरकार के खिलाफ नारेबाजी करके, जूलूस निकालकर दे दिया और आपकी जिम्मेदारी यही खत्म हो गयी। आपके सावधान होने का समय आ चुका है ऐसी राक्षस प्रकृति के लोग किसी के सगे नहीं होते, कब आपके घर आ जाये नहीं पता। कुछ दिल पर निशान छोड़े ये सब तो एक बार खुद के दायित्व को समझे और प्रयास करे। बाकी तो आप बहुत समझदार पहले से ही है।

कानून का मजाक उड़ाते आंकड़े
निर्भया के बाद देश का कठुआ और उन्नाव पीड़िता मामले के लिए फूटता गुस्सा, सोशल मीडिया चलते कैंपेन, सियासत का बदलता रंग सबकुछ देखने को मिला लेकिन क्या आपको पता है कड़े कानून के बावजूद रेप की वारदातों के आंकड़ों में लगातार इजाफा होता जा रहा है। ये आंकड़े साफतौर से न्यायपालिका का मजाक उड़ाते नजर आ रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि साल 2016 में देश की विभिन्न अदालतों में चल रहे बलात्कार के 152165 नए-पुराने मामलों में केवल 25 का निपटारा किया जा सका, जबकि इस एक साल में 38947 नए मामले दर्ज किए गए। इस रिपोर्ट में हैरानी की बात ये है कि ये केवल आंकड़े रेप के हैं, बलात्कार की कोशिश, छेड़खानी जैसी घटनाएं इसमें शामिल भी नहीं।

Final Issue for Printing_May 2018-17

क्या कहती है विदेशी रिपोर्ट्स-

भारत में बढ़ते रेप आंकड़ों पर कई विदेशी सर्वे सामने आए है जो इस तरफ है। जिनको देखने के बाद आप जरूर सोचेंगे कि बेटी बचाओं वाले देश में आखिर नारी सम्मान कहां खोता जा रहा है और हम सब क्या करने में लगे है।

  • साल 2011 में Tomson-Reuters Trust Law Foundation की शोध रिपोर्ट में भारत को दुनिया का महिलाओं के प्रति सबसे असुरक्षित देशों में चौथे स्थान पर दर्जा मिला। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद देशभर में इसकी आलोचना हुई।
  • संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष तथा वाशिंगटन स्थित संस्था ‘International Center Research on Women ‘(ICRW) की रिपोर्ट से सामने आया कि भारत में 10 में से 6 पुरुषों ने कभी न कभी अपनी पत्नी अथवा प्रेमिका के साथ हिंसक व्यवहार किया है। इसकी सबसे बड़ी वजह बेरोजगारी बताई गई।
  • यूनिसेफ की रिपोर्ट ‘Hidden in Plain Sight’ में सामने आया कि भारत में 15 साल से 19 साल की उम्र वाली 34 फीसदी विवाहित महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने अपने पति या साथी के हाथों शारीरिक या यौन हिंसा झेली है।

इन रिपोर्ट्स केवल अभी रेप की घटनाओं को उजागर किया गया। यहां अभी उन आंकड़ों को पेश ही नहीं किया गया जिनमें घरेलू हिंसा, बच्चियों से अपराध, छेड़खानी आदि शामिल है। जितने भी आंकड़े यहां शामिल किए है, उतने आंकड़े ये बताने के लिए काफी है कि महिलाओं के लिए भारत और उनका घर कितना सुरक्षित है।

-आयुष पाण्डेय ‘सूर्यांश’

डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य और व्यक्त किए गए विचार पञ्चदूत के नहीं हैं, तथा पञ्चदूत उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है। अगर आप भी अपने लेख वेबसाइट या मैग्जीन में प्रकाशित करवाना चाहते हैं तो हमें [email protected] ईमेल करें।

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