वर्ष 2019 आ गया है। नया उल्लास होगा, नई चुनौतियां होंगी। 2019 में लोकसभा चुनाव भी हो जाएंगे। 2018 की चुनौती से काफी कुछ सीखकर हम आगे बढ़ेंगे। हमने यह भी देखा है कि 2018 की चुनौती से हम कैसे निपटे हैं, हमने क्या नहीं किया। पिछली चुनौतियां का अब हमारे-आपके लिए क्या मतलब है? पिछले साल की तरह से इस साल भी वर्ष अलग नहीं होगा। हमने पहले
चुनौतियों को देखा है। चुनौतियों को समझने, उसका निदान करने में लोगों का समूह भी वीडियो में बना रहा है। इस साल भी वीडियो बनेंगे और भी धुंआधार तरीके से। चुनौतियां तेजी से बढ़ी रहीं हैं और सोशल मीडिया पर उसका एक प्रमुख प्रारूप रहा है। सामान्य चुनौतियों को हम किस रूप में लेते हैं। कुछ लोग रचनात्मक होते हैं और इंटरनेट के माध्यम से खुद को बाहर निकाल देते हैं। सब कुछ हमारे ऊपर ही निर्भर है। चुनौती का मतलब है-“इन माई फीलिंग्स” यानी हम कैसा कैसा महसूस करते हैं। हम चुनौतियों पर नजर डालें और देखें कि भारत कैसे उनसे लड़ने की योजना बना रहा है।
2019 में आम चुनाव से पहले प्रधान मंत्री के रूप में नरेंद्रमोदी के कार्यकाल के लिए आम बजट पेश नहीं सकता है। यह अंतरिम बजट ही होगा। वर्ष 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण में जीडीपी में भारत की अनुमानित वृद्धि 7-7.5 प्रतिशत थी। यह वृद्धि विश्व बैंक द्वारा जारी 2018 ग्लोबलइकोनॉमिक्स प्रॉस्पेक्ट (जीईपी) के अनुसार है। इस साल भारतीय अर्थव्यवस्था ने अप्रत्यक्ष करदाताओं की संख्या में 50 प्रतिशत की वृद्धि देखी है। विश्व बैंक की बिजनेस लिस्ट की भारत ने आसानी से 100 रन बनाए हैं। सुधारों में मोदी सरकार ने कई पुरस्कार जीते हैं। पर ऐसे कई ऐसे क्षेत्र हैं, पर अभी भी भारत में कारोबार किए जाने की गति को और तेज करने के लिए सरकार के ध्यान देने की आवश्यकता है। सीमा पार व्यापार में सुधार दिखाई नहीं दिया है। व्यवसाय सफल बनाने में कई प्रक्रियाएं शामिल हैं। नौकरशाही अक्सर पूरी प्रक्रिया को धीमा कर देती है। हालांकि, भारत सरकार ने कर सुधारों को प्रशासित करने के लिए ‘रैपिड-राजस्व, जवाबदेही, सूचना और डिजिटलकरण’ भी पेश किया है। पर इसका अपेक्षित लाभ नहीं मिल सका है।
सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक तेल की कीमतों में वृद्धि है। सऊदी अरब में उच्च तेल की कीमतें भारत में कीमतों पर काफी प्रभाव डालती हैं। भारत तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है। कच्चे तेल
की उच्च कीमतों से व्यापार घाटे में वृद्धि होगी। इस पर ध्यान देना जरूरी होगा। भारत मुख्य रूप से कृषि अर्थव्यवस्था वाला देश है। वैश्विक कृषि उत्पादन का 7.68 प्रतिशत यह पैदावार है। भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का 6.1 प्रतिशत योगदान है जो दुनिया के औसत सेअधिक है। इस क्षेत्र में श्रमिकों का 50 प्रतिशत से अधिक का योगदान है। भारतीय निर्यात का 13.2 प्रतिशत हिस्सा कृषि उत्पाद है। पिछले साल इस क्षेत्र में उत्पादकता वृद्धि स्थिर रही है। इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर खराब असर दिखा है। पिछले कुछ वर्षों सेभारतीय बैंक बढ़ते एनपीए के मुद्दों से जूझ रहे हैं।
बढ़ते एनपीए और कम लाभ की वजह से रियल एस्टेट क्षेत्र में बैंक ऋण की हिस्सेदारी 2016 में 68 प्रतिशत से बढ़कर 17 प्रतिशत हो गई है। बैंक अचल संपत्ति पर क्रेडिट देने के लिए तैयार नहीं हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से में योगदान देने वाले एमएसएमई क्षेत्र को भी बैंकिंग
क्षेत्र से क्रेडिट की कमी का सामना करना पड़ रहा है। कहने की जरूरत नहीं कि आम लोग हों या खास, सबको उम्मीदें हजार हैं और सरकार के सामने चुनौतियां अपार हैं। भारत हर तरह की चुनौती से पार पाने में काफी हद तक सक्षम है। खर्चीले चुनाव अभियान के बाद सत्ता संभालने
वाली सरकार के समक्ष घरेलू और वैश्विक पटल परअनेक चुनौतियां रहेंगी। इन चुनौतियों में वे मुद्दे और उपलब्धियां प्रमुख होंगी जिनके कारण जनता सरकार को सिंहासन पर बैठाएगी। बकौल एक शायर…
“परेशानियों से भागना आसान होता है
हर मुश्किल जिन्दगी में एक इम्तिहान होता है”
इसी तरह
“चलता रहूंगा पथ पर, चलने में माहिर बन जाऊंगा
या तो मंजिल मिल जाएगी या अच्छा मुसाफिर बन जाऊंगा”
डिस्क्लेमर: पञ्चदूत पत्रिका पढ़ना चाहते हैं तो वेबसाइट (www.panchdoot.com) पर जाकर ई-कॉपी डाउनलोड करें। इसके अलावा अगर आप भी अपने लेख वेबसाइट या मैग्जीन में प्रकाशित करवाना चाहते हैं तो हमें [email protected] ईमेल करें।