सियासत राजनीति पॉलिटिक्स किस नाम से इस पाजेब की खनखनाहट को पुकारा , क्योंकि जहाँ चलती है बेतुकी, बेदिशा, और बेवजह चलती है। कहीं सिंदूर लूट लेती है, कहीं गोद उजाड़ देती है, हंसते खेलते रोशन घरौंदों में अंधेरा छोड़ जाती है। ये वो मर्ज है जिसका इलाज शायद अभी बना ही नहीं है। क्योंकि कुछ दिन पहले बुलंदशहर के चिंरावठी में जो कुछ भी देखने को मिला है वो इस बात को सही साबित करता दिखाई दे रहा है कि सियासत जब मज़हबी चौला पहन लेती है तो वो जानलेवा हो जाती है। चिंगरावठी पिछले दिनों में क्यों फूट फूट कर रोया इससे हर कोई वाकिफ है, क्यों मज़हब की आंधी ने इंसानियत को खतरे में लाकर खड़ा कर दिया ये भी किसी से छुपा नहीं है। कुछ लोगों को शिकायत थी कि गाऊं के पास गौ हत्या की जा रही है उसकी शिकायत लेकर ही भीड़ बेकाबू हो गयी थी। हालांकि कुछ लोगों का मानना ये भी है कि ये एक ऐसी सियासत थी जिससे माहौल को खराब करने की कोशिश की जा रही वो भी ऐसे वक्त जब चिंगरावठी से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर एक समुदाय का प्रोग्राम चल रहा था। लेकिन सवाल ये है कि आखिर सुबोध सिंह जो कि इन्स्पेटर थे और सुमित की जान क्यों गयी, पुलिस स्टेशन क्यों जला, रास्ता क्यों सील हुआ, सिंदूर क्यों लूटा, एक माँ की गोद क्यों उजड़ी, ये वो सवाल है जिसका जवाब शायद वक़्त ही दे सकता है। गाय को माता का दर्जा दिया गया है इससे किसी को कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए, ना ही किसी की भावनाओं के साथ किसी को खेलने का अधिकार है ये लोगों को समझना होगा कि अगर सामने वालों के एहसासों और भावनाओं को अगर समझना छोड़ दिया तो फिर सियासत को मज़हबी रंग लेने से कोई नहीं रोक सकता। सुबोध सिंह जैसे अफसरों की बदौलत ही ये देश चल रहा है , सलाम है ऐसे अफसरों को जो अपनी जान की बाजी लगाते है, सुबोध सिंह ने जिस समझ बूझ के साथ मामले को सम्भला वो क़ाबिल-ए-तारीफ है। सुबोध सिंह को 100 सलाम जिसने अपनी जान देकर ना जाने कितनी माओं की गोद उजड़ने से बचा ली। मुझे सहानभूति सुमित के परिवार से भी जिसने अपने बेटे खो दिया। लेकिन जिस तरह से इस मामले को सियासी रंग देकर मज़हबी चौला पहनाने की कोशिश की गई है वो देश के लिए दुर्भायपूर्ण है। चिंगरावठी को इससे पहले तक शायद कोई जानता भी नहीं होगा अब चिंगरावठी चाय की चर्चाओं से लेकर मीडिया की सुर्खियां तक में बना हुआ है। पत्थरबाज़ी, आगजनी, डंडे, यहां तक कि गोली भी चली । एक देश के जवान को गोली मारने और दंगाइयों का साथ देने के इल्ज़ाम में गिरफ्तार भी किया गया है। एक नाम बजरंग दल से है जो आम लोगों की लिस्ट से निकल कर मीडिया की सुर्खियों में पहुंच गया। गाय के नाम आजकल जितना माहौल खराब हो रहा है उतना कभी पहले देखने को नहीं मिला, यहाँ भी वजह सिर्फ ये ही थी। ये पूरा कांड सियासत का गंदा खेल था है कुछ और इस बात की सच्चाई जांच पूरी होने के बाद सामने आ जाएगी। लेकिन जिस तरह से शहीद सुबोध सिंह के घरवालों ने आरोप लगाए है उसको देखते हुए साज़िश की बू ज़्यादा आने लगती है। सुबोध सिंह की बहन साफ तौर पर इस बात को कहा कि दादरी कांड में जांच कर रहे उनके भाई को निशाना बनाया गया है। इससे पहले शहीद सुबोध अख़लाक़ कांड की जांच कर रहे थे जिसकी वजह से उनको धमकियां भी मिल रही थी, उनकी पत्नी ने ये भी कहा कि 8-8 दिन तक उनका परिवार घर से बाहर नहीं निकलता था। उनकी हत्या के आरोप में। फौजी को गिरफ्तार करके 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।फौजी को जम्मू कश्मीर से गिरफ्तार किया गया था। लेकिन सोचने वाली बात है कि जब जब सियासत आने पांव पसारने की कोशिश करती है तब तब घरों में नफरत की आग आखिर क्यों लग जाती है। अक्सर लोगों को शिकायत प्रशासन से होती है की वो अपना काम सही से नही कर रहा । लेकिन यहां प्रशासन ने बेहतरीन काम किया, फिर भी हुक्मरानों ने उन पर सवालिया निशान लगा दिया । कहीं ऐसा तो नही की उनको सियासी फायदा दिखाई दे रहा हो। हुक्मरान जब बेतरतीब बातें करते हैं यक़ीन मानों तब तब सियासत ओर गंदी होने लगती है। सुबोध सिंह जिसमे अपने फ़र्ज़ के लिए अपनी जान दे दी उनको भी सियासत के रहनुमाओं ने नहीं छोड़ा उन्हें गलत साबित करने की पूरी कोशिश की गई लेकिन ऐसा हो न सका।
अब आखिर में एक ओर सवाल सामने लाना चाहता हूँ हिन्दू-मुसलमान धर्म ज़ात का ये गंदा खेल जो चिंगरावठी में खेला जा रहा था वो आखिर कब-तक खेला जाएगा क्या हिंदुस्तान सिर्फ इन्ही बातों में उलझ कर रह जाएगा या फिर उससे आगे भी सोचा जाएगा। अब ज़रूरत है कि इन सब चीज़ों से निकल कर विकास और तरक़्क़ी के बारे में सोचा जाए। और अगर ऐसा ना हुआ तो ना जाने कितने चिंगरावठी हमारे सामने बन जाएंगे। आज जिस युवा को देश की मजबूती के बारें में सोचना चाहिए वो युवा भटका हुआ सा नज़र आ रहा है , उसे इस सियासत ने मज़हब रूपी चौला पहनकर उसकी आँखों पर पट्टी बांध दी है और ऐसा ज़्यादातर चिंगरावठी जैसे छोटे गाऊं और क़स्बों में दिखाई दे रहा था जिससे नफरत की आग ज्यादा फैलती दिखाई दे रही है। पिछले कुछ वक्त से जी तरह की सियासत देखने को मिल रही है वो लोकतंत्र के लिए खतरा बन रही है। हालांकि सिक्के का दूसरा पहलू ये भी है शहरों में रहने वाले युवा इस गंदी सोच का हिस्सा नहीं है उनकी सोच अलग है क्योंकि शायद वो मज़हब से ऊपर उठकर इंसानियत को ज़्यादा मानते हैं। यहां देश के सभी युवाओं को ये समझने की ज़रूरत है कि आखिर उनकी दिशा क्या होनी चाहिए।
-मो.आरिफ कुरैशी
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