विधानसभा चुनाव 2018: ये 10 बाबा दिला सकते हैं भाजपा को बड़ी जीत…

साल 2019 लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल माने जाने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा-कांग्रेस की साख दांव पर लगी है। तो माना जा रहा है कि भाजपा जल्द इन 10 बाबाओं की शरण में जा सकती है।

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जयपुर: पांच राज्यों में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने है ऐसे में दो सबसे बड़े दल कांग्रेस और भाजपा पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतर रही है। जहां राहुल गांधी गठबंधंन की राजनीति करने में लगे है वहीं खबर है भाजपा अब बाबाओं की शरण में आ रही है।

याद हो भाजपा ने कर्नाटक में चुनाव जीतने के लिए मठों पर भरोसा जताया था अब वैसे ही साल 2019 लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल माने जाने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा-कांग्रेस की साख दांव पर लगी है। तो माना जा रहा है कि भाजपा जल्द इन 10 बाबाओं की शरण में जा सकती है। बतादें इनमें से कुछ बाबा भाजपा के सख्त विरोधी भी है। आइए आपको बताते हैं उन बाबाओं के बारें में….

शंकराचार्य स्वरूपानंद- ज्योतिर्मठ-द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद कांग्रेस के करीबी माने जाते हैं। इतना ही नहीं वो संघ और बीजेपी के विरोधियों में गिने जाते हैं। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के नजदीकी है। स्वरूपानंद का मध्य प्रदेश के महाकौशल की करीब तीन दर्जन सीटों पर असर रखते हैं।

देव प्रभाकर (दद्दा जी)- मध्य प्रदेश के सागर के गृहस्थ संत देव प्रभाकर का मजबूत सियासी कद है। शिवराज सरकार के कई मंत्री उनके शिष्य हैं। 5 लाख से ज्यादा अनयायी हैं।

भैयाजी सरकार- नर्मदा पट्टी के किनारे बसे क्षेत्र में भैयाजी सरकार का अपना दबदबा कायम है। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह से लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक उनकी पकड़ है।

ऋषभचंद्र सुरीश्वर-  जैन समाज से ताल्लुक रखने वाले ऋषभचंद्र सुरीश्वर ख्यात ज्योतिषशास्त्री हैं। जैन समुदाय में अच्छी खासी पकड़ रखते हैं. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ से लेकर राहुल गांधी तक आशिर्वाद लेने पहुंच चुके हैं।

कंप्यूटर बाबा- दिगंबर अखाड़ा से जुड़े श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर नामदेव त्यागी उर्फ कंप्यूटर बाबा का राज्य में अपना एक कद है. वो रामानंद संप्रदाय से ताल्लुक रखते हैं. संतों की लड़ाई लड़ने की बात कर रहे हैं। बीजेपी के कई नेता उनके करीबी हैं।

स्वामी शांति स्वरूपानंद गिरी- निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर हैं। विहिप के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल के सदस्य भी हैं. इसी के चलते संघ के करीबी है. उज्जैन के उत्तर दक्षिण विधानसभा सीट पर अच्छा असर है।

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योगेंद्र महंत- कंप्यूटर बाबा के साथ योगेंद्र महंत को भी राज्य मंत्री का दर्जा मिला था। हालांकि कंप्यूटर बाबा ने शिवराज सरकार का साथ छोड़ दिया है, लेकिन वो अभी भी बने हुए हैं।

देवकीनंदन ठाकुर- कथा वाचक देवकीनंदन ऐसे में यूपी के मथुरा के रहने वाले हैं, लेकिन मध्य प्रदेश की सियासत में अच्छा खासा असर है। राज्य में उनके 10 लाख अनुयायी है और उन्होंने एसएस/एसटी एक्ट के खिलाफ मुखर हैं। उन्होंने अखंड भारत पार्टी बनाई हैं और चुनाव में उतरने का फैसला किया।

रावतपुरा सरकार- मध्य प्रदेश के ग्वालियर में रावतपुरा सरकार का प्रभाव है। हालांकि वो किसी एक दल के करीबी नहीं है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों के नेताओं के साथ उनके संपर्क हैं।

पंडोखर सरकार- गुरुशरण शर्मा मध्य प्रदेश के दतिया जिले के पंडोखर गांव हैं। इसीलिए इन्हें पंडोखर सरकार के नाम से जाना जाता है. इनका ग्वालियर, दतिया की तीन विधानसभा सीटों पर प्रभाव है। शिवराज सरकार में मंत्री उमाशंकर गुप्ता, विश्वास सारंग और महापौर आलोक शर्मा उनके भक्त हैं।

क्यों अहम है राजस्थान और मध्यप्रदेश-
राजस्थान और मध्यप्रदेश के चुनाव कांग्रेस और भाजपा के लिए अलग-अलग मतलब रखते हैं और दोनों राज्यों का समीकरण में अलग है। जहां राजस्थान में पांच साल कांग्रेस और पांच साल भाजपा का राज रहता है वहीं मध्यप्रदेश पिछले 15 सालों से भाजपा का गढ़ रहा है। राजस्थान-मध्यप्रदेश के अपने-अपने मसले हैं लेकिन दोनों पार्टियों के लिए यहां अपनी-अपनी जीत दर्ज करवाना अहम है।

जहां कांग्रेस अपना मिटता वर्चस्व बचाने के लिए हर तरह के प्रयास करने में जुटी है वहीं भाजपा मिलती जीत का इन दो राज्यों में एकबार फिर स्वाद चखना चाहेगी फिर इसके लिए चुनावों को मुद्दों से परे सांप्रदायिक तौर पर लड़ा जाए या और किसी तरह जीत हर हाल में दोनों पार्टियों के लिए जरूरी है। इसलिए पार्टियां अपने-अपने बाबाओं और उनके समर्थकों को लुभाने की पूरी कोशिश करेगी।

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