बिहार ने जारी किया जातीय सर्वे, जानिए बिहार में किस जाति-धर्म की कितनी आबादी?

बिहार की आबादी में करीब 82 फीसदी हिंदू और 17.7 फीसदी मुसलमान हैं। बिहार में 2011 से 2022 के बीच हिंदुओं की आबादी घटी है।

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Bihar Caste Survey 2023: बिहार सरकार ने सोमवार को जातीय गणना के आंकड़े जारी कर दिए हैं। इसके साथ ही बिहार जातीय गणना के आंकड़े जारी करने वाला पहला राज्य बन गया है। इसमें अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36%, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) 27% हैं। सबसे ज्यादा 14.26% यादव हैं। ब्राह्मण3.65%, राजपूत (ठाकुर) 3.45% हैं। सबसे कम संख्या 0.60% कायस्थों की है।

बिहार की आबादी में सबसे ज्यादा अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36% है। उन्हें नौकरी में मौजूदा आरक्षण 18% दिया जा रहा है। 27% ओबीसी हैं के लिए 12% आरक्षण दिया जा रहा है। मौजूदा समय में बिहार में ईबीसी और ओबीसी को मिलाकर 30% के रिजर्वेशन का प्रावधान है। इसमें 18% ईबीसी को और 12% ओबीसी को आरक्षण मिल रहा है। जबकि जाति आधारित गणना के मुताबिक इनकी संख्या बढ़कर 63% हो गई है।

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बिहार सरकार के प्रभारी मुख्य सचिव विवेक कुमार सिंह ने जातीय गणना पर एक किताब जारी की है। उन्होंने कहा कि बिहार की जनसंख्या 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 है। इसमें 2 करोड़ 83 लाख 44 हजार 160 परिवार हैं। अनुसूचित जाति 19.65%, अनुसूचित जनजाति 1.68% और सामान्य वर्ग 15.52% है।

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हिंदुओं की आबादी घटी, मुस्लिमों की बढ़ी
बिहार की आबादी में करीब 82 फीसदी हिंदू और 17.7 फीसदी मुसलमान हैं। बिहार में 2011 से 2022 के बीच हिंदुओं की आबादी घटी है। 2011 की जनगणना के अनुसार हिंदू आबादी 82.7% और मुस्लिम आबादी 16.9% थी। अभी बिहार में हिंदुओं की जनसंख्या 10 करोड़ 71 लाख 92 हजार 958 है। वहीं मुस्लिम जनसंख्या 2 करोड़ 31 लाख 49 हजार 925 है। 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार में हिंदू आबादी 8 करोड़ 60 लाख 78 हजार 686 थी। वहीं मुस्लिम आबादी 1 करोड़ 75 लाख 57 हजार 809 थी।

कब-कब हुई जनगणना?
देश में जनगणना की शुरुआत ब्रिटिश राज में हुई थी। साल 1881 में पहली बार जनगणना के आंकड़े जारी किए गए थे और उसके बाद हर 10 साल में जनगणना की जाती थी। उस समय जातिवार जनगणना की जाती थी। जातिगत जनगणना के आंकड़े आखिरी बार 1931 में जारी किए गए थे। हालांकि, उसके बाद 1941 में भी जातिगत जनगणना हुई थी, लेकिन उसके आंकड़े जारी नहीं किए जा सके थे। जातिगत जनगणना में 1941 के बाद से अनुसूचित जाति और जनजाति की जनगणना होती है, लेकिन बाकी जातियों की अलग से जनगणना नहीं होती है। अब जनगणना में सिर्फ धर्मों के आंकड़े जारी किए जाते हैं। इसके बाद साल 1951 में जनगणना हुई थी।

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जातीय जनगणना की मांग कब-कब उठी?
देश में जब भी जनगणना होती है तो जातिगत जनगणना की भी मांग उठती है। आजादी के बाद जब पहली बार जनगणना हुई थी तो जातीय जनगणना की मांग उठी, लेकिन तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने प्रस्ताव खारिज कर दिया। उनका ऐसा मानना था कि इससे देश का ताना-बाना बिगड़ सकता है। इसके बाद भी कई बार जातिगत जनगणना की मांग उठी, लेकिन हर बार यही दलील देकर इसे खारिज कर दिया गया। साल 2011 की जनगणना के दौरान भी राजनीतिक दलों ने जातीय जनगणना की फिर से मांग उठाई और बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे ने संसद में इसके पक्ष में बयान दिया। उस साल सरकार ने सामाजिक-आर्थिक जनगणना कराई, लेकिन उसके आंकड़े पेश नहीं किए गए।

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कौन करा सकता है देश में जनगणना? क्या हैं केंद्र और राज्य के अधिकार
संविधान के मुताबिक, जनगणना कराने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है। 1948 के जनगणना एक्ट के तहत कहा गया है कि जनगणना के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति और जानकारी इकट्ठा करने का अधिकार केंद्र के पास होता है। वहीं, राज्य सरकार सर्वेक्षण करा सकती है। कानून के जानकार बताते हैं कि सर्वेक्षण के तहत आंकड़े जुटाने के लिए राज्य सरकार कमेटी या आयोग का गठन कर सकती है।

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