Bharat Bandh: क्या है क्रीमी लेयर? जिसके विरोध में दलित-आदिवासी संगठनों ने किया भारत बंद

भारत के अलग-अलग राज्यों में भारत बंद का असर अलग-अलग तरह से देखने को मिल रहा है। राजस्थान, बिहार और यूपी में भारत बंद का असर ज्यादा वहीं अन्य राज्यों में मिला-जुला असर है। 

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सुप्रीम कोर्ट के SC आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू (Bharat Bandh) करने की इजाजत देने के खिलाफ बुधवार को दलित-आदिवासी संगठनों ने 14 घंटे का भारत बंद बुलाया है। नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ दलित एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशन (NACDAOR) ने इसे दलित और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ बताया है। भारत के अलग-अलग राज्यों में भारत बंद का असर अलग-अलग तरह से देखने को मिल रहा है। राजस्थान, बिहार और यूपी में भारत बंद का असर ज्यादा वहीं अन्य राज्यों में मिला-जुला असर है।

भारत बंद बुलाने वालों की है ये मांग
संगठन ने हाल में सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनाए गए फैसले के प्रति विपरीत दृष्टिकोण अपनाया है, जो उनके अनुसार, ऐतिहासिक इंदिरा साहनी मामले में नौ न्यायाधीशों की पीठ द्वारा लिए गए फैसले को कमजोर करता है, जिसने भारत में आरक्षण की रूपरेखा स्थापित की थी।

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एनएसीडीएओआर ने सरकार से अनुरोध किया है कि इस फैसले को खारिज किया जाए क्योंकि यह अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के संवैधानिक अधिकारों के लिए खतरा है। संगठन एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण पर संसद द्वारा एक नये कानून को पारित करने की भी मांग कर रहा है जिसे संविधान की नौवीं सूची में समावेश के साथ संरक्षित किया जाए।

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क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त को इस बारे में बड़ा फैसला सुनाया था। राज्य सरकारें अब अनुसूचित जाति, यानी SC के रिजर्वेशन में कोटे में कोटा दे सकेंगी। अदालत ने 20 साल पुराना अपना ही फैसला पलटा था। तब कोर्ट ने कहा था कि अनुसूचित जातियां खुद में एक समूह हैं, इसमें शामिल जातियों के आधार पर और बंटवारा नहीं किया जा सकता।


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कोर्ट ने अपने नए फैसले में राज्यों के लिए जरूरी हिदायत भी दी थी। कहा था कि राज्य सरकारें मनमर्जी से फैसला नहीं कर सकतीं। फैसला सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ का था। इसमें कहा गया कि अनुसूचित जाति को उसमें शामिल जातियों के आधार पर बांटना संविधान के अनुच्छेद-341 के खिलाफ नहीं है।

क्या है क्रीमी लेयर?
आरक्षण के दृष्टिकोण से क्रीमी लेयर शब्द का प्रयोग अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी वर्ग के तहत उन सदस्यों की पहचान करने के लिए किया जाता है जो सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक रूप से अन्य ओबीसी वर्ग के लोगों की तुलना में काफी समृद्ध हैं। ओबीसी वर्ग में ही क्रीमी लेयर के तहत आने वाले लोगों को सरकार की शैक्षिक, रोजगार व अन्य योजनाओं के लिए पात्र नहीं माना जाता है। साल 1971 में क्रीमी लेयर शब्द का इस्तेमाल सत्तानाथन आयोग द्वारा लाया गया था। उस दौरान आयोग ने निर्देश देते हुए कहा था कि क्रीमी लेयर के तहत आने वाले लोगों को सिविल सेवा परीक्षा में आरक्षण के दायरे से बाहर रखना चाहिए। वर्तमान में ओबीसी वर्ग के तहत क्रीमी लेयर के कुल आय सालाना 8 लाख रुपये निर्धारित की गई है। हालांकि समय-समय पर यह बदलती रहती है।

क्रीमी लेयर में किसे मिलेगी जगह?

  • जिनके माता-पिता सरकारी नौकरी नहीं करते हैं। बावजूद इसके अगर उनकी सालान आय सभी स्त्रोतों से 8 लाख रुपये है।
  • जिन बच्चों के माता-पिता सरकारी नौकरी करते हैं और उनका रैंक या पद पहली श्रेणी का है।
  • डीओपीटी द्वारा 14 अक्तूबर 2004 को जारी दिशानिर्देश के मुताबिक, क्रीमी लेयर का निर्धारण करते समय वेतन या खेती की भूमि से होने वाले आय को इसमें शामिल नहीं किया जाएगा। हालांकि बावजूद इसके यह ध्यान दिया जाएगा कि उपरोक्त सभी मानदंड इसमें शामिल हों।

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