Satyendra Das: नहीं रहे राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास, यहां पढ़ें उनके जीवन के बारें में..

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अयोध्या में रामलला मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का 80 साल की उम्र में निधन हो गया। बुधवार सुबह 7 बजे लखनऊ PGI में उन्होंने आखिरी सांस ली। आचार्य सत्येंद्र दास का पार्थिव शरीर अयोध्या लाया जाएगा। उनके आश्रम सत्य धाम गोपाल मंदिर में अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। सत्येंद्र दास 32 साल से रामजन्मभूमि में बतौर मुख्य पुजारी सेवा दे रहे थे। 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी विध्वंस के समय वे रामलला को गोद में लेकर भागे थे।

सत्येंद्र दास का जन्म संतकबीरनगर जिले में 20 मई, 1945 में हुआ था। यह जिला अयोध्या से 98 किमी दूर है। वे बचपन से ही भक्ति भाव में रहते थे। उनके पिता अक्सर अयोध्या जाया करते थे, वह भी अपने पिता के साथ अयोध्या घूमने जाते थे।

राम मंदिर आंदोलन के साक्षी आचार्य सत्येंद्र दास

आचार्य सत्येंद्र दास ने राम मंदिर आंदोलन के संघर्षों को करीब से देखा और हर स्थिति में मंदिर से जुड़े रहे। उन्होंने न्यायिक लड़ाई के दौरान रामलला की सेवा जारी रखी और श्रद्धालुओं की आस्था बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1992 में रामलला के पुजारी लालदास थे। उस समय रिसीवर की जिम्मेदारी रिटायर जज पर हुआ करती थी। उस समय जेपी सिंह बतौर रिसीवर नियुक्त हुए थे। फरवरी 1992 में मौत हो गई, तो राम जन्मभूमि की व्यवस्था का जिम्मा जिला प्रशासन को दिया गया। तब पुजारी लालदास को हटाने की बात हुई।

उस समय तत्कालीन भाजपा सांसद विनय कटियार विहिप के नेताओं और कई संत जो विहिप नेताओं के संपर्क में थे। उनसे सत्येंद्र दास के घनिष्ठ संबंध थे। इसके बाद 1 मार्च 1992 को सत्येंद्र दास की नियुक्ति हो गई। उन्हें अधिकार मिला था कि वो 4 सहायक पुजारी भी रख सकते हैं। तब उन्होंने 4 सहायक पुजारियों को रखा था। उनमें संतोष तिवारी भी शामिल थे।


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1992 में रामलला को लेकर भागे थे सत्येंद्र दास
रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव के दौरान सत्येंद्र दास ने मीडिया में इंटरव्यू दिया था। तब उन्होंने बताया था- 6 दिसंबर, 1992 को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद के 2 गुंबद गिरा दिए थे। मैं बीच वाले बड़े गुंबद के नीचे रामलला की रखवाली कर रहा था। गुस्साए कारसेवक इस गुंबद पर भी चढ़ गए और उसे तोड़ने लगे। गुंबद के बीचो बीच बड़ा सुराख हो गया।

ऊपर से रामलला के आसन पर मिट्टी और पत्थर गिरने लगे। उस वक्त मंदिर में मेरे साथ पुजारी संतोष और चंद्र भूषण जी थे। हमने तय किया कि रामलला को यहां से लेकर निकलना पड़ेगा। मैं रामलला, भरत और शत्रुघ्न भगवान की मूर्तियां लेकर दौड़ पड़ा।

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