बढ़ते शहरीकरण के कारण खेती योग्य जमीनों की कमी हो गई। ऐसे में अब मिट्टी के बिना खेती की तकनीक पर कई देशों में तेजी से काम चल रहा है। लेकिन अब इस तकनीक को भारत के किसान भी बड़ी तेजी से अपना रहे है। ये तकनीक इतनी सफल है कि सही जानकारी, सही सलाह से लगभग 1 लाख रुपए के खर्च से से आप घर बैठे सालाना 2 लाख रुपए तक की सब्जियां उगा सकते हैं।
मिट्टी के बिना अब छतों पर फार्मिंग इस तकनीक को हाइड्रोपानिक्स कहा जाता है इस तकनीक की खास बात यह है कि इसमें मिट्टी का इस्तेमाल बिल्कुल भी नहीं होता है। इससे पौधों के लिए जरूरी पोषक तत्वों को पानी के सहारे सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है।
बिना मिट्टी के खेती
इस तकनीक को स्वॉयललेस कल्टीवेशन कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने इसे हाइड्रोपोनिक्स यानी जलकृषि नाम दिया है। इसमें मिट्टी का प्रयोग नहीं होता है। पौधों को पानी भरे एक बर्तन में उगाया जाता है। परंतु सिर्फ पानी में रख देने मात्र से ही पौधे नहीं उगते, बल्कि अन्य इंतजाम करने होते हैं। इसमें पौधों के विकास के लिए जरूरी पोषक तत्वों का घोल पानी में मिला दिया जाता है। पोषक तत्वों व ऑक्सीजन को पौधे की जड़ों तक पहुंचाने के लिए एक पतली नली या पंपिंग मशीन का प्रयोग होता है।
जलकृषि की दो प्रमुख पद्धतियां अभी प्रयोग में लायी जा रही हैं- घोल विधि और माध्यम विधि। घोल विधि में जड़ों के फैलाव के लिए ठोस पदार्थ का प्रयोग नहीं करते हैं। इसमें पौधों को पानी से भरे एक बर्तन में वैज्ञानिक तरीके से रखा जाता है और फिर पोषक तत्वों का घोल प्रवाहित किया जाता है। पौधों की जड़ों तक ऑक्सीजन और पोषक तत्व पहुंचाने की प्रक्रिया वैज्ञानिकों ने निर्धारित कर रखी है। घोल विधि तीन प्रकार की है- स्थैतिक घोल विधि, सतत बहाव विधि और एयरोपोनिक्स। स्थैतिक घोल विधि में पौधों को पानी युक्त बर्तन में रखा जाता है और फिर पोषक तत्वों के घोल को धीरे-धीरे या रुक-रुक कर नली या पंप से प्रवाहित किया जाता है। जब पौधे कम हों तो यह विधि प्रयोग में लायी जाती है। ऐसा होने से जड़ों को ऑक्सीजन भी मिलता रहता है।
इस तकनीक की खासियत
हाइड्रोपोनिक तकनीक की विशेषता यह है कि इसमें मिट्टी के बिना और पानी के कम इस्तेमाल से सब्जियां पैदा की जाती हैं। चूंकि इसमें मिट्टी का प्रयोग नहीं होता, इसलिए पौधों के साथ न तो अनावश्यक खर-पतवार उगते हैं और न इन पौधों पर कीड़े- मकोड़े लगने का डर रहता है। इसके लिए आपको खेत की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि अगर आप शहर में रह रहे हैं तो अपने मकान की छत पर भी सब्जियां उगा सकते हैं। इस तकनीक में क्यारी बनाने और पौधों में पानी देने की जरूरत नहीं होती, इसलिए परिश्रम और लागत कम है। हाइड्रोपोनिक तकनीक से लगातार पैदावार ली जा सकती है और किसी भी मौसम में सब्जियां पैदा की जा सकती हैं। एक किलो सब्जी को खेत में उगाने पर 1800 से 3000 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है, लेकिन हाइड्रोपोनिक तकनीक से केवल 15 लीटर पानी से एक किलो सब्जी पैदा की जा सकती है।
उपयोगी पोषक तत्व
हाइड्रोपोनिक्स विधि द्वारा खेती में ऐसे पोषक तत्वों को प्रयोग में लाया जाता है, जो जल में घुलनशील होते हैं। इनका रूप प्राय: अकार्बनिक तथा आयनिक होता है। कैल्सियम, मैग्निशियम और पोटैशियम प्राथमिक घुलनशील तत्व हैं। वहीं प्रमुख घोल के रूप में नाइट्रेट, सल्फेट और डिहाइड्रोजन फॉस्फेट उपयोग में लाये जाते हैं। पोटेशियम नाइट्रेट, कैल्सियम नाइट्रेट, पोटेशियम फास्फेट और मैग्निशियम सल्फेट रसायनों का भी प्रयोग होता है। इसके अलावा आयरन, मैगनीज, कॉपर, जिंक, बोरोन, क्लोरीन और निकल का भी प्रयोग होता है।
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