Pope Francis: क्या थी पोप फ्रांसिस की अंतिम इच्छा? जानें धुंए से कैसे चुने जाते हैं नए पोप…

नियमों के तहत 80 साल से कम उम्र के 115 कार्डिनल ही नए पोप के चुनाव में वोट दे सकते हैं। यह चुनाव वेटिकन सिटी के सिस्टीन चैपेल में किया जाता है। पोप पुरुष ही बन सकता है

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लंबे समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे 88 साल के पोप फ्रांसिस (pope francis) का निधन हो गया है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि नया पोप कौन बनेगा? उसका चुनाव कैसे होता है? वो कौन से नियम होते हैं, जिनके तहत चुनाव प्रक्रिया होती है? कैसे होती है अंतिम प्रक्रिया, नए पोप के लिए गोपनीय वोटिंग में चर्च से धुआं क्यों उठता है? ऐसे कई दिलचस्प सवालों के जवाब हम आपके लिए इस आर्टिकल में लेकर आए हैं।

बाइलेट्रल निमोनिया क्या है जिसे पोप फ्रांसिस की हुई मौत?
असल में निमोनिया एक तरह का फेफड़ों का इन्फेक्शन है। इसके चलते फेफड़ों के अंदर मौजूद छोटे-छोटे हवा के थैलों में सूजन हो जाती है। जब सूजन बढ़ती है तो इन थैलों में पानी भर जाता है। इससे मरीज को सांस लेने में दिक्कत और खांसी, बुखार वगैरह हो जाता है। यही संक्रमण जब दोनों फेफड़ों में हो जाता है तो इसे बाइलेट्रल निमोनिया कहते हैं। सर्दियों के मौसम में पोप को फेफड़ों का इन्फेक्शन होने का खतरा बना रहता था। मार्च 2023 में भी ब्रॉन्काइटिस के चलते पोप को 3 दिन तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा था।

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पोप के निधन के बाद शरीर का क्या होता है?
पोप की मृत्यु के बाद 9 दिनों तक शोक मनाया जाता है। रोम की प्राचीन प्रथा के अनुसार इस अवधि को ‘नोवेन्डिएल’ के नाम से जाना जाता है। इस दौरान पोप को ईश्वर का आशीर्वाद दिया जाता है। उन्हें पोप के कपड़े पहनाकर सेंट पीटर बेसिलिका नाम की जगह पर ले जाया जाता है। सेंट पीटर बेसिलिका असल में रोम के पहले पोप सेंट पीटर को दफनाने की जगह है। यहां लोग सार्वजनिक रूप से पोप फ्रांसिस के अंतिम दर्शन करेंगे।

ऐतिहासिक रूप से पोप की मृत्यु के बाद उन्हें दफनाने के बीच के समय में पार्थिव शरीर को संरक्षित करना होता था। इसके लिए पोप के शरीरों से उनके कुछ अंग भी निकाल लिए जाते थे। रोम में 18वीं सदी में बनाया गया एक फव्वारा है, इसे ट्रेवी फाउंटेन कहते हैं। इसके पास एक चर्च में 20 से ज्यादा पोपों के दिल संगमरमर पत्थर के बने कलशों में रखे हुए हैं।

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क्या थी पोप फ्रांसिस की अंतिम संस्कार की इच्छा?
यह परंपरा 16वीं से 19वीं सदी तक चली, लेकिन उसके बाद बंद हो गई। पोप फ्रांसिस ने अपने अंतिम संस्कार से संबंधित परंपराओं को सरल बनाने की इच्छा जताई थी। उन्होंने तीन परतों वाले ताबूत की बजाय एक साधारण लकड़ी के ताबूत में दफन होने का अनुरोध किया, और वेटिकन के बजाय रोम के सेंट मैरी मेजर बेसिलिका में दफन होने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने अपने शरीर से किसी भी अंग को निकालने की अनुमति नहीं दी थी।

पोप फ्रांसिस ने 2023 में एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि उन्होंने रोम में सांता मारिया मैगीगोर बेसिलिका को अपने अंतिम विश्राम स्थल के रूप में चुना है। ये चर्च फ्रांसिस की सबसे पसंदीदा चर्च रही है। वह अक्सर यहां जाते रहे। नवंबर 2024 में उनकी अनुमति के बाद पोप को दफनाने के साल 2000 के नियमों में कुछ बदलाव कर उन्हें आसान बनाया गया था। इन बदलावों के पीछे पोप की इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार एक सामान्य पादरी की ही तरह किया जाए।

पोप कौन होते हैं, इस पद की क्या है शक्तियां?
ईसाई धर्म के अंदर भी कई सेक्शन यानी समूह हैं- जैसे कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट और ऑर्थोडॉक्स। कैथोलिक ईसाइयों के धर्मगुरुओं में सबसे बड़ा ओहदा पोप का होता है। इसका शाब्दिक अर्थ होता है- पिता। दुनिया में सबसे छोटा संप्रभु देश है वेटिकन सिटी। यहीं से पोप का राजकाज चलता है।

‘होली सी’ या ‘परमधर्म पीठ’ नाम की एक संस्था को रोमन कैथोलिक चर्च और पोप का राजनयिक प्रतिनिधि कहा जाता है। इसका मुख्यालय भी वेटिकन सिटी में है। होली सी को एक तरह से रोमन चर्च और पोप की सरकार माना जाता है।जिस तरह ज्यादातर देशों के दुनिया भर में दूतावास होते हैं। उसी तरह भारत सहित दुनिया के कई देशों में वेटिकन की इस होली सी के डिप्लोमेटिक मिशन हैं। इन्हें वेटिकन का धार्मिक राजदूत आवास या ‘एपस्टोलिक ननसियेचर’ कहते हैं।

पोप फ्रांसिस को दुनिया के ज्यादातर ईसाई देश सबसे बड़ा धर्मगुरु मानते हैं। ईसाई धर्म के मामलों में पोप के आदेश आदर के साथ स्वीकार किए जाते हैं। इन देशों के सामाजिक और राजनीतिक मामलों में भी अक्सर पोप के रुख का असर होता है।

नए पोप का चुनाव कैसे होगा?
नियमों के तहत 80 साल से कम उम्र के 115 कार्डिनल ही नए पोप के चुनाव में वोट दे सकते हैं। यह चुनाव वेटिकन सिटी के सिस्टीन चैपेल में किया जाता है। पोप पुरुष ही बन सकता है, हालांकि इसके लिए कोई उम्र निर्धारित नहीं की गई है। किसी कार्डिनल को दो-तिहाई वोट मिलने तक मतदान होता है। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है, जब तक किसी भी कार्डिनल को 77 कार्डिनल्स के वोट नहीं मिल जाते हैं। इसके बाद ही नए पोप का चयन होता है। यही वजह है कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि पहले दिन की वोटिंग में ही नया पोप मिल जाए। यह प्रक्रिया लंबी चल सकती है। चुनाव में गुप्त मतदान के जरिये कागज के मत-पत्रों द्वारा वोटिंग की जाती है।

केमिकल डालकर जलाते हैं बैलेट
हर चरण की वोटिंग के बाद बैलेट पेपर्स को एक खास केमिकल डालकर जला दिया जाता है, जिससे काला या सफेद धुआ चिमनी से बाहर आता है। चिमनी से काला धुंआ निकलने का मतलब है कि चुनाव प्रक्रिया अभी चल रही है। वहीं, पोप का चयन हो जाने के बाद मतपत्रों को दूसरे स्पेशल केमिकल से जलाया जाता है, जिससे चिमनी से सफेद धुंआ निकलता है। पोप चुनने के बाद कार्डिनल अपने लिए एक नए नाम का चयन करते हैं। इसके बाद ‘नए पोप मिल गए’ की घोषणा होती है और फिर नए पोप पूर्व निर्धारित कपड़े पहनकर बैसिलिका की बालकनी में आते हैं, जहां हजारों बेताब लोग उनकी पहली झलक पाने का इंतजार करते हैं। वह दुनियाभर में बसे करोड़ों कैथोलिक ईसाइयों के धर्मगुरु होते हैं।

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