Bangladesh Protest: 105 मौतें, 2500 लोग घायल… आखिर क्यों जल रहा बांग्लादेश? पूरे देश में लगा कर्फ्यू

बांग्लादेश की राजधानी ढाका के हालात बेकाबू है। सरकार ने हिंसा के मद्देनजर बांग्लादेश के टेलीविजन समाचार चैनल बंद कर दिए गए हैं, टेलीफोन सेवाएं व्यापक रूप से बाधित हैं।

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बांग्लादेश (Bangladesh Protest) में सरकारी नौकरियों में आरक्षण बहाली के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ विरोध में देशव्यापी आंदोलन लगातार तेज होता जा रहा है। अब तक बांग्लादेश के विभिन्न हिस्सों में कम से कम 105 लोगों की मौत हो चुकी है। 2500 लोग घायल हो चुके हैं।

शहर-शहर प्रदर्शनकारी और पुलिस के बीच हिंसक झड़प देखने को मिल रही है। ऐसा लग रहा है हालात आउट ऑफ कंट्रोल हो चुके हैं। कई शहरों में लाठी, डंडे और पत्थर लेकर प्रदर्शनकारी सड़कों पर घूम रहे हैं। सरकार ने गुरुवार को कहा कि वह प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत करने को तैयार है। हालांकि प्रदर्शनकारियों ने बातचीत करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि बातचीत और गोलीबारी एकसाथ नहीं चल सकती।

इस पर काबू पाने के लिए सरकार ने पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया है। प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी के जनरल सेक्रेटरी ओबैदुल कादर ने शुक्रवार (19 जुलाई) देर रात कर्फ्यू लगाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि हिंसा काबू करने के लिए सेना को तैनात किया गया है। बांग्लादेश में बढ़ते तनाव के बीच अब तक 778 भारतीय स्टूडेंट्स अपने घर लौट आए हैं। ढाका यूनिवर्सिटी को अगले आदेश तक के लिए बंद दिया है।

बता दें, बांग्लादेश की राजधानी ढाका के हालात बेकाबू है। सरकार ने हिंसा के मद्देनजर बांग्लादेश के टेलीविजन समाचार चैनल बंद कर दिए गए हैं, टेलीफोन सेवाएं व्यापक रूप से बाधित हैं। वहीं, कई समाचार वेबसाइट और सोशल मीडिया अकाउंट भी निष्क्रिय कर दिए गए हैं।

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किस लिए हो रहा है बांग्लादेश में विरोध
1. बांग्लादेश 1971 में आजाद हुआ था। बांग्लादेशी अखबार द डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक इसी साल से वहां पर 80 फीसदी कोटा सिस्टम लागू हुआ। इसमें स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों को नौकरी में 30%, पिछड़े जिलों के लिए 40%, महिलाओं के लिए 10% आरक्षण दिया गया। सामान्य छात्रों के लिए सिर्फ 20% सीटें रखी गईं।

2. 1976 में पिछड़े जिलों के लिए आरक्षण को 20% कर दिया गया। इससे सामान्य छात्रों को 40% सीटें हो गईं। 1985 में पिछड़े जिलों का आरक्षण और घटा कर 10% कर दिया गया और अल्पसंख्यकों के लिए 5% कोटा जोड़ा गया। इससे सामान्य छात्रों के लिए 45% सीटें हो गईं।

3. शुरू में स्वतंत्रता सेनानियों के बेटे-बेटियों को ही आरक्षण मिलता था लेकिन 2009 से इसमें पोते-पोतियों को भी जोड़ दिया गया। 2012 विकलांग छात्रों के लिए भी 1% कोटा जोड़ दिया गया। इससे कुल कोटा 56% हो गया।

4. साल 2018 में 4 महीने तक छात्रों के प्रदर्शन के बाद हसीना सरकार ने कोटा सिस्टम खत्म कर दिया था, लेकिन बीते महीने 5 जून को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फिर से आरक्षण देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि 2018 से पहले जैसे आरक्षण मिलता था, उसे फिर से उसी तरह लागू किया जाए।

5. शेख हसीना सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अपील भी की मगर सुप्रीम कोर्ट ने अपना पुराना फैसला बरकरार रखा। इससे छात्र नाराज हो गए। अब इसी के खिलाफ पूरे देश में प्रदर्शन हो रहा है।

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बांग्लादेश में सरकारी नौकरी की मांग अधिक
CNN के मुताबिक, बांग्लादेश में सरकारी नौकरी की 600 सीटों के लिए 6 लाख लोग आवेदन करते है, जिसमें से आरक्षण के कारण 336 सीटे रिजर्व हैं, यानी सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए 264 सीटें बचती हैं।

यहां हर साल 4 लाख से भी अधिक छात्र 3 हजार बांग्लादेश पब्लिक सर्विस कमीशन (BPSC) के लिए कम्पीट करते हैं। कुछ सालों से कोटा न मिलने की वजह से इसमें योग्यता का बोलबाला था लेकिन अब छात्रों को डर है कि आधी से अधिक सीटें ‘कोटा वाले’ खा जाएंगे।

अब ये छात्र सभी छात्रों के लिए एक समान अधिकार मांग रहे हैं। इनका कहना है कि आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सेनानियों के पोते-पोतियों को आरक्षण देने का कोई मतलब नहीं है। सरकारी नौकरियों में कोटा नहीं मेरिट की जरूरत होनी चाहिए।

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