RamLalla Photo: यहां देखें रामलला की तस्वीरें…हम सब के आराध्य प्रभु श्री राम की पहली VIDEO

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RamLalla Photo: राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का विधान पूरा हो गया है। श्रीराम के प्रथम दर्शन हो गए हैं। अगर आपने अभी तक रामलला को नहीं देखा है तो आप यहां देख सकते हैं। पीएम ने ही रामलला के आंख से पट्टी खोली और हाथ में कमल का फूल लेकर पूजन किया। रामलला पीतांबर से सुशोभित हैं। उन्होंने हाथों में धनुष-बाण धारण किया है।

आपको बता दें, रामलला की मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बनाई है। उनकी पत्नी ने बताया उन्होंने बच्चों की 2000 से ज्यादा फोटो देखीं। महीनों तक बच्चों को ऑब्जर्व करते रहे। स्कूल, समर कैंप, पार्क जाने लगे। वहां कई-कई घंटे बच्चों को खेलते हुए देखा करते थे।’ इसके बाद मूर्ति बनाई।

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रामलला की मूर्ति की तारिफ जितनी की जाए वाकिय कम है। मूर्ति में भगवान राम का मनमोहन रुप देखने को मिलता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि मूर्ति सच में जीवंत नजर आती है।

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पिछले 6 दिनों में कब, कौन से पूजा अनुष्ठान हुए, जानें…

16 जनवरी, मंगलवार
इस दिन प्राण-प्रतिष्ठा में पूजा करने वाले यजमान ने प्रायश्चित्त किया और सरयू नदी में स्नान किया। पवित्रीकरण की क्रिया के बाद विष्णु पूजा के बाद प्रायश्चित के तौर पर गोदान किया। इसके बाद जहां मूर्ति निर्माण हुआ उस जगह पर कर्मकुटी होम किया। इस दिन वाल्मीकि रामायण व भुशुण्डिरामायण पाठ की भी शुरुआत हुई।

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17 जनवरी, बुधवार
इस दिन जलयात्रा के साथ ब्राह्मण-बटुक- कुमारी-सुवासिनी पूजन हुआ। बटुक यानी बच्चे, कुमारी यानी दस साल से कम उम्र की बच्चियां और सुवासिनी यानी सुहागन महिलाओं की पूजा हुई। फिर कलश पूजन हुआ और कलश यात्रा हुई। इस दिन रामलला मूर्ति की शोभायात्रा हुई और आनंद रामायण का पाठ शुरू हुआ।

18 जनवरी, गुरुवार
इस दिन रामलला जहां विराजमान होंगे उस जगह की पूजा भी की गई। इसके बाद तीर्थ पूजन हुआ जिसमें गणेश-अंबिका और मंडलों की पूजा हुई। मंडप प्रवेश, यज्ञभूमि और वास्तुपूजन समेत अनुष्ठान में शामिल सभी जरूरी पूजा-पाठ हुए। इसके बाद मूर्ति का जलाधिवास, गन्धादिवास, पूजन और आरती हुई। जलाधिवास में मूर्ति को पानी और गंधादिवास में कई तरह की सुगंधित चीजों में रखा जाता है।

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19 जनवरी, शुक्रवार
औषधाधिवास, केसराधिवास, घृताधिवास और धान्याधिवास हुए। औषधाधिवास में मूर्ति को औषधियों में रखा जाता है। केसराधिवास यानी केसर में, घृताधिवास यानी मूर्ति को घी में और धान्याधिवास का मतलब मूर्ति को कई तरह के अनाजों में रखा जाता है। माना जाता है कि गढ़ाई के वक्त मूर्ति पर चोट होने पर लगने वाले दोष और अशुद्धियां इन अनुष्ठानों से दूर हो जाती हैं। इस दिन अरणि से प्रकट अग्नि की नवकुंडों में स्थापना हुई, फिर हवन, वेदपारायण, रामायणपारायण हुआ।

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20 जनवरी, शनिवार
इस दिन मन्दिर के प्रांगण में 81 कलशों की स्थापना और पूजा हुई। इसके बाद सुबह शर्कराधिवास और फलाधिवास की क्रिया हुई। शर्कराधिवास में शक्कर और फलाधिवास में फलों के साथ मूर्ति को रखा गया। फिर शाम को पुष्पाधिवास की क्रिया हुई। इसमें कई तरह के सुगंधित फूलों में मूर्ति को रखा जाता है। माना जाता है, इन क्रियाओं से मूर्ति की पवित्रता और बढ़ जाती है।

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21 जनवरी, रविवार
पहले टेंट, फिर अस्थायी मंदिर में विराजमान रही रामलला की पुरानी मूर्ति नए मंदिर में ले जाकर स्थापित की गई। इस दिन सुबह मध्याधिवास और शाम को शय्याधिवास हुआ। मध्याधिवास में मूर्ति को शहद के साथ रखा जाता है। शय्याधिवास में मूर्ति को शय्या पर लिटाया जाता है। इसे शयन परंपरा भी कहते हैं। शयन से पहले शाम की पूजा और आरती हुई।

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