G20 India: 4100 करोड़ के खर्चे के बाद आखिर भारत को क्या मिलेगा?

जी-20 की बैठक के बाद सभी देश मिलकर एक संयुक्त बयान जारी करता है। इसी बयान से जी-20 की मीटिंग की सफलता तय की जाती है। भारत के लिए यह एक बड़ी चुनौती है।

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पिछले साल जी-20 की मेजबानी (G20 India) मिलने के बाद से ही भारत सरकार इसकी तैयारियों में जुट गई थी। एक रिपोर्ट के मुताबिक इसकी तैयारी को लेकर देश के 50 से अधिक शहरों में करीब 200 बैठकों का आयोजन किया गया। एक अनुमान के मुताबिक, इस पूरे आयोजन में करीब 10 करोड़ डॉलर यानी 4100 करोड़ रुपए खर्च हुआ है। हालाकि खर्चे की पूरी तरह जानकारी नहीं आयी है। ऐसे में जी20 को लेकर कई सवाल इंटरनेट पर पूछे जा रहे हैं कि इतने भव्य आयोजन से भारत को आखिर क्या हासिल होगा। तो हम आप को बताते हैं कि जी20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करके आखिर भारत को क्या मिलेगा?

4100 करोड़ में क्या-क्या किया?
आपको बता दें, सरकार ने खर्चे का सही ब्यौरा नहीं दिया है। जी 20 समिट के खर्चे को यहां कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों के आंकड़ो के मुताबिक बताया जा रहा है। वित्त वर्ष 2023-24 के केंद्र सरकार के बजट में भारत की G20 अध्यक्षता के लिए 990 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जिससे विदेश मंत्रालय (MEA) का आवंटन 4.26 फीसद (लगभग 800 करोड़ रुपये) की मामूली बढ़ोतरी के साथ कुल 18,050 करोड़ रुपये हो गया था। सरकार ने नेताओं को लाने और ले जाने के लिए कम से कम 20 बुलेट-प्रूफ लिमोजिन किराए पर लिए हैं, जिसपर लगभग 18.12 करोड़ रुपये (21.8 लाख डॉलर) खर्च किए गए हैं।

समाचार एजेंसी PTI की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) की VIP सुरक्षा विंग के 450 ड्राइवरों को खास लेफ्ट हैंड ड्राइव और बुलेट-प्रूफ कारों को चलाने की ट्रेनिंग दी गई है।विपक्षी सांसद अब्दुल वहाब ने संसद के मॉनसून सत्र के दौरान 27 जुलाई को जब G20 से जुड़े कार्यक्रमों पर किए गए कुल खर्च के बारे में सरकार से सवाल किया तो विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने सवाल का जवाब नहीं दिया। दिल्ली में आयोजन स्थलों और सड़कों को 6.75 लाख फूलों वाले पौधों और झाड़ियों से सजाया गया है।

हाई-प्रोफाइल राजनयिकों को सुरक्षित लाने और ले जाने के लिए शहर में सिक्योरिटी भी बढ़ा दी गई है। प्रगति मैदान में भारत मंडमप बनाने में 2100 करोड़ का खर्च आया। भारत मंडमप वह जगह है जहां शिखर सम्मेलन आयोजित करवाया गया है। इसके अलावा राजधानी में बड़े पैमाने पर सजावट की गई है, जिसमें फ्लाईओवर्स पर पेंटिंग बनाई गई हैं और मेहमानों के स्वागत के लिए ऊंची मूर्तियां बनाई गई हैं। जिनका खर्चे की जानकारी नहीं है।

जी20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी से भारत को क्या मिलेगा?

1. दुनिया में भारत की छवि मजबूत होगी- यह मीटिंग ऐसे वक्त में हो रही है, दुनिया के अधिकांश देश यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से 2 गुटों में बंट चुका है। जानकारों का कहना है कि जी-20 की मीटिंग में यूक्रेन युद्ध के मुद्दे एक बड़ी चुनौती है। क्योंकि, मीटिंग में अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के राष्ट्राध्यक्ष शामिल हो रहे हैं, जो रूस के खिलाफ मोर्चा लिए हुए हैं। नवंबर 2022 में बाली की बैठक में यूक्रेन युद्ध का मुद्दा ही छाया रहा। अंत में कई देशों ने एक प्रस्ताव पास किया और कहा कि वे यूक्रेन युद्ध के खिलाफ है, जिसका रूस और चीन ने भारी विरोध किया।

भारत की कोशिश भी यूक्रेन के मुद्दे से ध्यान भटकाने की है। भारत ने इसके लिए सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) के मुद्दे को आगे किया है। भारत का कहना है कि विकासशील देशों, ग्लोबल साउथ के देशों और अफ्रीकी देशों की हाशिए पर पड़ी आकांक्षाओं को मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता है। भारत में आयोजित इस बैठक में अगर वन अर्थ, वन फैमिली और वन फ्यूचर पर कोई हल निकलता है, तो भारत की छवि दुनिया में मजबूत होगी।

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प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ब्लॉग में लिखा है- भारत की डेमोग्राफी, डेमोक्रेसी, डाइवर्सिटी और डेवलपमेंट के बारे में किसी और से सुनना एक बात है और उसे प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करना बिल्कुल अलग है। मुझे विश्वास है कि हमारे जी-20 प्रतिनिधि इसे स्वयं महसूस करेंगे।

2. निवेश आने की संभावनाएं- जी-20 में शामिल देश दुनिया की अर्थव्यवस्था पर 75 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं। वजह इसमें शामिल अमेरिका, चीन और रूस जैसे देश हैं। जी-20 की मीटिंग से भारत की कोशिश निवेश बढ़ाने की भी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जी-20 की मीटिंग में शामिल होने आ रहे अमेरिका के राष्ट्रपति के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्विपक्षीय वार्ता भी करेंगे। कहा जा रहा है कि इस मीटिंग में छोटे मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टरों पर समझौता हो सकता है। साथ ही दोनों देशों के बीच GE जेट इंजन डील पर भी बात आगे बढ़ सकती है। इसी तरह भारत की कोशिश फ्रांस और ब्रिटेन के साथ भी सामरिक डील करने की है।

3. दुनिया के देशों में नेतृत्व की धारणा बदलेगी- वर्तमान में मुख्य तौर पर अमेरिका और रूस-चीन ही नेतृत्वकर्ता के रूप में खुद को स्थापित करता रहा है, लेकिन जी-20 की मीटिंग के जरिए भारत भी इस रेस में शामिल हो गया है। भारत ने जी-20 में अफ्रीकी देशों को शामिल करने की पैरवी की है। चीन और यूरोपियन यूनियन ने अफ्रीकन यूनियन को G20 में शामिल करने के लिए भारत का समर्थन किया है। ऐसे में माना जा रहा है कि इस मीटिंग के बाद इन देशों को स्थाई रूप से जी-20 की सदस्यता मिल सकती है। अगर ऐसा होता है, तो जी-20 का स्ट्रक्चर ही बदल जाएगा और अफ्रीकी देशों की नजर में भारत एक बड़े पैरोकार के रूप में उभरेगा।

भारत के लिए राह आसान नहीं
चीन भी जी-20 का सदस्य है, लेकिन उसके राष्ट्रपति इस मीटिंग में शामिल होने के लिए नहीं आ रहे हैं। यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस के साउथ एशिया मामलों के सीनियर एक्सपर्ट समीर लालवानी के मुताबिक जिनपिंग का जी20 में नहीं आना भारत और चीन के रिश्ते को सुधारने के कदम में एक बड़ा झटका है।

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भारत और चीन के बीच करीब 3 साल से सीमा का विवाद है। हाल ही में दोनों देशों की ओर से कहा गया था कि इसे जल्द ही सुलझाया जाएगा हालांकि, अभी तक इसको लेकर कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया है। जी-20 की मीटिंग देशों पर दबाव डालने का एक महत्वपूर्ण मंच भी माना जात है। ऐसे में चीन के राष्ट्रपति के नहीं आने से भारत सीमा विवाद पर शायद ही उसका कुछ कर पाए।

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संयुक्त बयान जारी कराने की चुनौती
जी-20 की बैठक के बाद सभी देश मिलकर एक संयुक्त बयान जारी करता है। इसी बयान से जी-20 की मीटिंग की सफलता तय की जाती है। भारत के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। अगर बड़े मुद्दों पर सभी सहयोगी सहमत नहीं होता हैं, तो यह खटाई में पड़ सकता है। जानकारों का कहना है कि अगर ऐसा होता है, तो अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भारत की किरकिरी हो सकती है। बाली की बैठक में कुछ देशों ने यूक्रेन मामले में अपना बयान जारी कर दिया था।

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