CRPF में बढ़ते जा रहे आत्महत्या के मामले, एक्शन में कब आएगी सरकार

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CRPF Suicide News: पिछले 23 दिनों में दुनिया के सबसे बड़े केंद्रीय सशस्त्र बल (सीआरपीएफ) के 10 जवानों ने आत्महत्या की है। सीआरपीएफ में पिछले पांच वर्ष के दौरान 240 से अधिक जवान आत्महत्या कर चुके हैं। अगर सभी केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की बात करें तो पांच वर्ष के दौरान 654 से अधिक जवानों ने आत्महत्या कर ली है। ये मामले अलग-अलग राज्यों में दर्ज हुए। सीआरपीएफ के जवानों और कर्मचारियों के बीच आत्महत्या पिछले कुछ वर्षों से एक चिंताजनक मुद्दा रही है।

पिछले 23 दिनों में जो 10 मौतें हुई हैं उनमें सीआरपीएफ की विभिन्न शाखाओं -विशेष विंग, नक्सल विरोधी इकाई कोबरा और जम्मू-कश्मीर यूनिट, असम, ओडिशा और झारखंड, पुलवामा और श्रीनगर जैसे स्थानों में हुई हैं। आत्महत्याओं में कोबरा फोर्स के एक इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी की मौत भी शामिल है।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2018 से 2021 तक की चार साल की अवधि में सीआरपीएफ जवानों के बीच आत्महत्या में चिंताजनक वृद्धि दर्ज की गई है। 2018 में 36 जवानों की आत्महत्या से मौत हुई, इसके बाद 2019 में 40 जवानों की मौत हुई। 2020 में बल में आत्महत्या से 54 मौतें दर्ज की गईं।

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2021 में 57 जवानों की आत्महत्या से मौत हुई। वर्ष 2022 में जवानों द्वारा आत्महत्या में गिरावट दर्ज की गई, लेकिन यह संख्या अभी भी 43 है। इस साल 12 अगस्त से 4 सितंबर के बीच 10 जवानों ने आत्महत्या की। आंकड़ों के मुताबिक, इस साल अब तक सीआरपीएफ में आत्महत्या से हुई 34 मौतों में से 30% पिछले 10 दिनों में हुई हैं।

ओवर टाइम ड्यूटी से परेशान जवान
दूसरी ओर, कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स मार्टियर्स वेलफेयर एसोसिएशन’ का कहना है, इन जवानों को घर की परेशानी नहीं है। सरकार इस मामले में झूठ बोल रही है। इन्हें ड्यूटी पर क्या परेशानी है, इस बारे में सरकार कोई बात नहीं करती। आतंक, नक्सल, चुनावी ड्यूटी, आपदा, वीआईपी सिक्योरिटी और अन्य मोर्चों पर इन बलों के जवान तैनात हैं। इसके बावजूद उन्हें सिविल फोर्स बता दिया जाता है। जवानों को पुरानी पेंशन से वंचित रखा जा रहा है। समय पर प्रमोशन या रैंक न मिलना भी जवानों को तनाव देता है।

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विभिन्न जगहों पर राशन में भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं। सीएपीएफ में कई जगहों पर वर्कलोड ज्यादा है। एक कंपनी में जवानों की तय संख्या कभी भी पूरी नहीं रहती। मुश्किल से साठ सत्तर जवान ही ड्यूटी पर रहते हैं। ऐसे में उनके ड्यूटी के घंटे बढ़ जाते हैं। जवान ठीक से सो नहीं पाते हैं। वे अपनी समस्या किसी के सामने रखते हैं, तो वहां ठीक तरह से सुनवाई नहीं हो पाती। ये बातें जवानों को तनाव की ओर ले जाती हैं। कुछ स्थानों पर बैरक एवं दूसरी सुविधाओं की कमी नजर आती है। कई दफा सीनियर की डांट फटकार भी जवान को आत्महत्या तक ले जाती है। नतीजा, जवान टेंशन में रहने लगते हैं।

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100 दिन के अवकाश पर काम 
अगर पिछले पांच वर्ष की बात करें तो सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ और असम राइफल्स में 50155 कर्मियों ने जॉब को अलविदा कह दिया है। संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश भी की है कि सीएपीएफ में वर्किंग कंडीशन को बेहतर बनाया जाए। खाली पदों को शीघ्रता से भरा जाए। संसद सत्र में इस विषय को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था, इस बात का प्रयास चल रहा है कि सीएपीएफ कार्मिक अपने परिवारों के साथ यथासंभव प्रतिवर्ष 100 दिन बिता सकें।

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