मंदिर, गुरु, माता पिता, संतों के सामने हमेशा झुककर जाना चाहिए – आरती विवेक जी

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हनुमानगढ़। टाउन के श्री सनातन धर्म महावीर दल धर्मशाला में संगीतमय श्री शिव महापुराण कथा व नानी बाई को मायरो का आयोजन श्री सनातन धर्म महावीर दल न्यास  हनुमानगढ़ टाउन में द्वारा किया जा रहा है। सातवें दिन कथा मे हनुमान मन्दिर डेरा गुसाईं न्यास के सचिव श्री पुरनगिरी महाराज पधारे, जिनका श्री महावीर दल के पदाधिकारीयो द्वारा स्वागत व सम्मान किया गया। कथा वाचक आरती विवेक ने कहा कि भगवान भोलेनाथ आशुतोष शिव से बड़ा दुनिया में कोई रामभक्त नहीं है, उन जैसा कोई राम स्नेही नहीं है वो हर घड़ी, हर पल राम नाम का सुमिरन करते रहते हैं, इसीलिए उन्होंने भगवान राम की सेवा करने के लिए अपने अंश के रूप में हनुमानजी के रूप में अवतार लिया और इसीलिए हनुमान चालीसा में कहा गया है कि शंकर सुवन केसरी नंदन।

हनुमानजी की पूजा से स्वयं भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं यह बातें कथा वाचक आरती विवेक ने शुक्रवार को शिव अवतारों की कथा में हनुमानजी के अवतार का प्रसंग सुनाते हुए व्यक्त किए। उन्होने कहा कि जो अपने आराध्य की, अपने इष्ट की अपने धन बल के अहंकार को त्याग कर निष्कपट भाव से सेवा करते हैं वो अपने आराध्य से भी ज्यादा पूजनीय हो जाते हैं जैसे महाबलशाली महावीर हनुमानजी महाराज ने अपने बल का अहंकार त्याग कर रामजी की सेवा की लंका पर विजय कर धरती पर राम राज्य की स्थापना में प्रभु श्रीराम की सेवा की तो वो अपने मान का हनन करने के कारण रामजी के आशीर्वाद से हनुमान के रूप में पूजनीय बने एवं आज जितने भगवान राम के मंदिर नहीं हैं उससे कहीं ज्यादा हनुमान जी के मंदिर हैं।

कथावाचक ने आगे कहा कि रामजी सारी दुनिया के बिगड़े काम बनाते हैं और उन्हीं रामजी के काम हनुमानजी करते हैं। नंदीश्वर के अवतार की कथा सुनाते हुए संतश्री ने कहा कि जो झुक जाता है वो तर जाता है जैसे नंदी झुक गए तो पशु होने के बावजूद भगवान भोलेनाथ के साथ मंदिर में स्थापित होकर पंचमहादेव के रूप में पूजनीय हुए। इसलिए मंदिर, गुरु, मातापिता, संतों के सामने हमेशा झुककर जाना चाहिए। उन्होंने कहा, जो अहंकार त्याग देते हैं वो साधक सफल होते हैं। अहंकार आठ प्रकार के होते हैं पहला सत्ता का, दूसरा संपत्ति का, तीसरा ऊंचे कुल, चौथा शरीर का, पांचवा विद्या का, छटा तप का, सातवां प्रभुता का, आठवां अपने रूप का अहंकार। यह आठों अहंकार होंगे तो व्यक्ति साधना में आगे नहीं बढ़ सकता, लेकिन अहंकार का समन समर्पण करने से होता है, जो अपने माता पिता को समर्पित होता है, अपने गुरु को समर्पित होता है, अपने इष्ट को समर्पित होता है वह कभी भी अहंकार नहीं कर सकता।

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