इन कारणों से रिजर्व बैंक ने टाला ब्याज दरों में कटौती का फैसला

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नई दिल्ली: साल 2017 की पहली क्रेडिट पॉलिसी और वित्त वर्ष 2016 की आखिरी क्रेडिट पॉलिसी का ऐलान हो गया है। RBI ने इस बार भी नीतिगत दरों में कटौती नहीं की है। बिना बदलाव के रेपो रेट 6.25 फीसदी पर बरकरार है और रिवर्स रेपो रेपो रेट 5.75 फीसदी पर बरकरार है।

हालांकि आरबीआई ने एक अच्छा ऐलान किया जिसमें 13 मार्च से सेविंग खातों से भी कैश निकालने की लिमिट खत्म कर दी गई है। इधर बैंकों ने पहले ही साफ कहा कि ग्राहकों के लिए कर्ज की दरें पहले ही कम हो गई हैं इसलिए अब ज्यादा कटौती की उम्मीदें ना रखी जाएं।

इन कारणों से रिजर्व बैंक ने टाला ब्याज दरों में कटौती का फैसला

  • अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की मजबूत होती कीमत, जनवरी 2014 में कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर से गिरकर जनवरी 2016 तक 30 डॉलर प्रति बैरल के नीचे पहुंच गई थी। एक बार फिर क्रूड ऑयल 53-55 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर मजबूत हो रहा है जो कि भारत समेत दुनिया के लिए परेशानी का संकेत है।
  • क्रूड ऑयल की कीमतों में इजाफे के साथ ही वैश्विक स्तर पर मेटल और मिनरल की कीमतों में इजाफा होने की संभावना है। इन कीमतों में इजाफे से महंगाई बढ़ने का खतरा है।
  • अमेरिका की मौद्रिक नीति का 9 साल के बाद सामान्य होना। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्य़वस्था अमेरिका मंद 2008 से 2015 तक लगातार शून्य ब्याज दर रहने और अमेरिकी सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था में 12 ड्रिलियन डॉलर का राहत निवेश करने के चलते विदेशी निवेशक अमेरिका से बाहर रहे। अब एक बार फिर अमेरिका में ब्याज दर बढ़ना शुरू हुआ है।
  • नोटबंदी लागू होने के बाद रीटेल महंगाई नवंबर में 2.59 फीसदी के स्तर से गिरकर 2.23 फीसदी पर दिसंबर में पहुंच गई। यह नोटबंदी से हुआ लेकिन अगले कुछ महीनों में नई करेंसी का पूरा संचार हो जाने के बाद एक बार फिर महंगाई दस्तक दे सकती है।
  • रिजर्व बैंक ने जनवरी 2015 के बाद से रेपो रेट में 175 बेसिस प्वाइंट की कटौती की है। लेकिन इस कटौती के बावजूद बैंकों ने अपने ब्याज दरों को इसकी तुलना में कम करने का फैसला नहीं लिया है। लिहाजा, रेपो रेट में एक और कटौती से पहले भी बैंकों के पास अपने ब्याज दरों में कटौती करने की पूरी संभावना है।

क्या होती हैं रेपो रेट:

बैंकों को अपने दैनिक कामकाज के लिए प्राय: ऐसी बड़ी रकम की जरूरत होती है जिनकी मियाद एक दिन से ज्यादा नहीं होती। इसके लिए बैंक जो विकल्प अपनाते हैं, उनमें सबसे सामान्य है केंद्रीय बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) से रात भर के लिए (ओवरनाइट) कर्ज लेना। इस कर्ज पर रिजर्व बैंक को उन्हें जो ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रीपो दर कहते हैं।

रीपो रेट कम होने से बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना सस्ता हो जाता है और इसलिए बैंक ब्याज दरों में कमी करते हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा रकम कर्ज के तौर पर दी जा सके। रीपो दर में बढ़ोतरी का सीधा मतलब यह होता है कि बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से रात भर के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाएगा। साफ है कि बैंक दूसरों को कर्ज देने के लिए जो ब्याज दर तय करते हैं, वह भी उन्हें बढ़ाना होगा।