शुकदेव जन्म, परीक्षित श्राप और अमर कथा का वर्णन किया

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हनुमानगढ़। श्री सन्त आश्रम कमेटी, हनुमानगढ़ जंक्शन द्वारा ब्रह्मलीन परम पूज्य स्वामी स्वतःप्रकाश जी महाराज के आशीर्वाद से व महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 स्वामी सुरेश मुनि जी महाराज के सानिध्य में आयोजित श्री मद्भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन व्यासपीठ प्रवक्ता महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 स्वामी जगदीश दास जी महाराज हरिद्वार वाले द्वारा शुकदेव जन्म, परीक्षित श्राप और अमर कथा का वर्णन किया। दूसरे दिन की कथा की शुरूवात मुख्य यजमान रमेश जिन्दल, कानचंद गोयल द्वारा पूजा अर्चना करवाई गई। कथा का वाचन करते हुए महाराज जी ने बताया कि बताया कि “नारद जी के कहने पर पार्वती जी ने भगवान शिव से पूछा कि उनके गले में जो मुंडमाला है वह किसकी है तो भोलेनाथ ने बताया वह मुंड किसी और के नहीं बल्कि स्वयं पार्वती जी के हैं। हर जन्म में पार्वती जी विभिन्ना रूपों में शिव की पत्नी के रूप में जब भी देह त्याग करती शंकर जी उनके मुंड को अपने गले में धारण कर लेते पार्वती ने हंसते हुए कहा हर जन्म में क्या मैं ही मरती रही, आप क्यों नहीं।
शंकर जी ने कहा हमने अमर कथा सुन रखी है पार्वती जी ने कहा मुझे भी वह अमर कथा सुनाइए शंकर जी पार्वती जी को अमर कथा सुनाने लगे। शिव-पार्वती के अलावा सिर्फ एक तोते का अंडा था जो कथा के प्रभाव से फूट गया उसमें से श्री सुखदेव जी का प्राकट्य हुआ कथा सुनते सुनते पार्वती जी सो गई वह पूरी कथा श्री सुखदेव जी ने सुनी और अमर हो गए शंकर जी सुखदेव जी के पीछे उन्हें मृत्युदंड देने के लिए दौड़े। सुखदेव जी भागते भागते व्यास जी के आश्रम में पहुंचे और उनकी पत्नी के मुंह से गर्भ में प्रविष्ट हो गए। 12 वर्ष बाद श्री सुखदेव जी गर्व से बाहर आए इस तरह श्री सुखदेव जी का जन्म हुआ। कथा व्यास जी ने बताया कि भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण भागवत कथा पृथ्वी के लोगों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं। कथा व्यास जी ने उन्होंने कहा कि भागवत के चार अक्षर इसका तात्पर्य यह है कि भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे उसे हम भागवत कहते है।
इसके साथ साथ भागवत के छह प्रश्न, निष्काम भक्ति, 24 अवतार श्री नारद जी का पूर्व जन्म, परीक्षित जन्म, कुन्ती देवी के सुख के अवसर में भी विपत्ति की याचना करती है। क्यों कि दुख में ही तो गोविन्द का दर्शन होता है। जीवन की अन्तिम बेला में दादा भीष्म गोपाल का दर्शन करते हुये अद्भुत देह त्याग का वर्णन किया। साथ साथ परीक्षित को श्राप कैसे लगा तथा भगवान श्री शुकदेव उन्हे मुक्ति प्रदान करने के लिये कैसे प्रगट हुये इत्यादि कथाओं का भावपूर्ण वर्णन किया। साथ ही श्रीमद् भागवत तो दिव्य कल्पतरु है यह अर्थ, धर्म, काम के साथ साथ भक्ति और मुक्ति प्रदान करके जीव को परम पद प्राप्त कराता है। उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत केवल पुस्तक नही साक्षात श्रीकृष्ण स्वरुप है। इसके एक एक अक्षर में श्रीकृष्ण समाये हुये है।
उन्होंने कहा कि कथा सुनना समस्त दान, व्रत, तीर्थ, पुण्यादि कर्माे से बढ़कर है। कथा सुनकर पांडाल में उपस्थित श्रद्धालु भाव विभोर हो गए। कथा के मध्य में मेरी लगी श्याम संग प्रीत और मां की ममता के महत्व का भजन सुनकर भक्त आत्मसात हो गये। आयोजन समिति के सदस्य मदन गोपाल जिंदल मिंटू ने बताया कि श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन दूरदर्शन रिले केंद्र के पास स्थित व्यापार मंडल धर्मशाला में 13 से 19 मार्च तक होगा। उक्त भागवत कथा प्रतिदिन दोपहर 2ः30 बजे से शाम 6ः00 बजे तक कथा का वाचन होगा जिसमें सुंदर सुंदर आकर्षक झांकियों के माध्यम से कथा का वर्णन होगा। उन्होंने बताया कि 19 मार्च को प्रातः 8ः15 हवन यज्ञ व उसके पश्चात भंडारे का आयोजन होगा।

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