Monkeypox Symptoms: क्यों मंकीपॉक्स वायरस से डरी दुनिया, जबकि ये इतना खतरनाक नहीं ! जानें सबकुछ

इतने सालों में यह बीमारी कभी भी बड़े पैमाने पर अफ्रीका के बाहर नहीं गई, लेकिन इस बार बिना अफ्रीका की ट्रैवल हिस्ट्री के विकसित देशों में मंकीपॉक्स के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इसी नए पैटर्न की वजह से दुनिया घबराई हुई है।

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हेल्थ डेस्क: कोरोना महामारी (Coronavirus) के बीच मंकीपॉक्स (Monkeypox) नामक वायरस ने लोगों को परेशान कर रखा है। दुनियाभर के लगभग 70 से ज्यादा देशों में फैले मंकीपॉक्स वायरस (Monkeypox) ने भारत में दस्तक दे दी है। 14 जुलाई को केरल के कोल्लम जिले से देश का पहला मंकीपॉक्स केस सामने आया। मरीज हाल ही में UAE से केरल लौटा था। दुनिया में अब तक मंकीपॉक्स (Monkeypox) के 11 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं।

भारत में मंकीपॉक्स (Monkeypox) का पहला केस आने के बाद, AIIMS के मेडिसिन विभाग में एडिशनल प्रोफेसर पीयूष रंजन की मानें तो मंकीपॉक्स वायरस से चिंता करने का कोई वजह नहीं है। मंकीपॉक्स (Monkeypox) की संक्रामकता बहुत कम होती है, हालांकि यह कोविड वायरस की तुलना में बच्चों के लिए घातक साबित हो सकता है।

WHO की मंकीपॉक्स पर राय-
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार मंकीपॉक्स (Monkeypox) वायरल जूनोसिस है (जानवरों से इंसानों में प्रसारित होने वाला वायरस), जिसमें चेचक के समान लक्षण होते हैं। हालांकि चिकित्सकीय दृष्टि से यह कम गंभीर है। लेकिन सावधानी ही सुरक्षा है।

क्यों मंकीपॉक्स वायरस से डरी दुनिया
पहली बार मंकीपॉक्स (Monkeypox) 1958 में खोजा गया था। तब रिसर्च के लिए रखे दो बंदरों में चेचक जैसी बीमारी के लक्षण सामने आए थे। इंसानों में इसका पहला मामला 1970 में कॉन्गों में 9 साल के बच्चे में पाया गया। आम तौर पर ये बीमारी रोडेंट्स यानी चूहे गिलहरी और नर बंदरों से फैलती है।

मंकीपॉक्स (Monkeypox) और चेचक एक ही वायरस फैमिली से हैं। WHO और दुनिया भर की नेशनल हेल्थ एजेंसियों के पास चेचक से लड़ने का दशकों का अनुभव है, जिसे 1980 में दुनिया से खत्म घोषित कर दिया गया था। उसका अनुभव मंकीपॉक्स के इलाज में काम आ सकता है।

इतने सालों में यह बीमारी कभी भी बड़े पैमाने पर अफ्रीका के बाहर नहीं गई, लेकिन इस बार बिना अफ्रीका की ट्रैवल हिस्ट्री के विकसित देशों में मंकीपॉक्स के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इसी नए पैटर्न की वजह से दुनिया घबराई हुई है।

क्या मंकीपॉक्स महामारी बन सकती है?
यूरोप में WHO की पैथागन थ्रेट टीम के प्रमुख रिचर्ड पेबॉडी के मुताबिक मंकीपॉक्स आसानी से नहीं फैलता और इससे फिलहाल कोई जानलेवा गंभीर बीमारी नहीं हो रही। इसके आउटब्रेक को लेकर कोविड-19 जैसे बड़े वैक्सीनेशन की जरूरत नहीं है। लोग संक्रमण से बचाव के लिए सेफ सेक्स करें, हाइजीन का ध्यान रखें और नियमित तौर पर हाथ धोते रहें।

UK हेल्थ सिक्योरिटी एजेंसी का भी मानना है कि इसके देशभर में फैलने का रिस्क बहुत कम है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस बात के कोई संकेत नहीं मिले हैं कि मंकीपॉक्स का वायरस म्यूटेट होकर और ज्यादा खतरनाक वैरिएंट विकसित कर रहा है। यह कोविड नहीं है। यह हवा में नहीं फैलता और हमारे पास इसे रोकने के लिए वैक्सीन मौजूद है।

क्या है मंकीपॉक्स के लक्षण:

  • मंकीपॉक्स के लक्षण स्मालपॉक्स और चिकिनपॉक्स जैसे होते हैं
  • शुरुआत में मरीज को बुखार होगा, लिम्फ नोड्स बढ़ी हुई लग सकती हैं
  • 1-5 दिनों के बाद रोगी को चेहरे, हथेलियों और तलवों पर चकत्ते दिख सकते हैं
  • मंकीपॉक्स से संक्रमित होने के बाद आंख की कॉर्निया में भी रैशेज हो सकते हैं, जो अंधेपन का कारण बन सकता है

मंकीपॉक्स से कैसे हो सकता है बचाव, हेल्थ मिनिस्ट्री की गाइडलाइन जारी

  • सभी हेल्थ सेंटर ऐसे लोगों पर कड़ी नजर रखें, जिनके शरीर पर दाने दिखते हैं। पिछले 21 दिनों में मंकीपॉक्स सस्पेक्टेड देशों की ट्रैवल हिस्ट्री, किसी मंकीपॉक्स सस्पेक्टेड से सीधा संपर्क रहा हो।
  • सभी संदिग्ध केस को हेल्थकेयर फैसिलिटी में आइसोलेट किया जाएगा, जब तक उसके दानों की पपड़ी नहीं उधड़ जाती।
  • मंकीपॉक्स संदिग्ध मरीजों के फ्लूइड या खून का सैंपल NIV पुणे में टेस्ट के लिए भेजा जाएगा।
  • अगर कोई पॉजिटिव केस पाया जाता है, तो फौरन कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग शुरू की जाएगी।
  • विदेश से आने वाले यात्रियों को ऐसे लोगों के संपर्क में आने से बचना चाहिए जो स्किन रोग से पीड़ित हों।
  • यात्रियों को चूहे, गिलहरी, बंदर सहित जीवित अथवा मृत जंगली जानवरों के संपर्क में नहीं आना चाहिए।
  • अफ्रीकी जंगली जीवों से बनाए गए उत्पादों जैसे- क्रीम, लोशन, पाउडर का इस्तेमाल करने से बचें। शिकार से प्राप्त मांस को न तो खाएं और न ही बनाएं।

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