यूजर्स ने लिखा ‘भंसाली ने इतिहास बदला, लोगों ने उनका भूगोल, यहां पढ़ें पद्मावती का इतिहास

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जयपुर में फिल्म पद्मावती के सेट पर डायरेक्टर संजय लीला भंसाली के साथ करणी सेना ने मारपीट की है। इस मारपीट पर बॉलीवुड ने गुस्सा ज़ाहिर किया है। सोशल मीडिया पर #SanjayLeelaBhansali शुक्रवार रात से ही ट्रेंड कर रहे हैं। (यहां पढ़ें पूरी खबर)

पढ़ें- सोशल मीडिया पर यूजर्स ने लिखा

मनीष सिंह ने लिखा, ‘खिलजी रानी पद्मिनी को वश में रखना चाहता था। भंसाली इसे प्यार कह रहे हैं। संजय लीला भंसाली को 21 हिंदुओं ने मारा हैं। ऐसे में हम इसे बॉडी मसाज कह सकते हैं।’

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हर्षित लिखते हैं, ‘जिन गुंडों ने संजय लीला भंसाली पर हमला किया है, उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए। लेकिन कुछ बुद्धिजीवी इसका पूरा इल्ज़ाम हिंदुओं पर लगा रहे हैं।’

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‏@ikpsgill1 ने लिखा, ‘भंसाली ने इतिहास के तथ्यों से छेड़छाड़ की और करणी सेना ने उनका भूगोल बदल दिया।’

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@maheshdandyala ने लिखा, ‘पद्मिनी और खिलजी की फर्जी प्रेम कहानी दिखाने से बेहतर है कि खिलजी और मलिक कफूर की प्रेम कहानी दिखाएं।’ यह फ़िल्म रानी पद्मावती के ऐतिहासिक किरदार पर आधारित है। कार्यकर्ताओं का आरोप है कि भंसाली में अपनी फ़िल्म में राजपूत रानी और अलाउद्दीन खिलजी के बीच प्रेम संबंध दिखाया है जो ग़लत है।

फ़िल्म में दीपिका पादुकोण रानी पद्मावती का किरदार निभा रही हैं और रणवीर सिंह अलाउद्दीन खिलजी की भूमिका में हैं। लोगों का मानना है कि चित्तौड़गढ़ की रानी की सुंदरता पर मुग्ध अलाउद्दीन ने किले पर हमला कर दिया था और उनसे बचने के लिए रानी पद्मावती और किले की कई और महिलाओं ने ‘जौहर’ कर (ख़ुद को जलाकर) ख़ुदकुशी कर ली थी।

कौन थी रानी पद्मावती:

25 अगस्त 1303 ई० को राजस्थान के मेवाड़ दुर्ग में राजा रतन सिंह की धर्मपत्नी रानी पद्मावती सहित 200 से ज्यादा राजपूत स्त्रियाँ उस दहकते हवन कुंड के सामने खड़ी थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि अलाउद्दीन खिलजी दुर्ग के बाहर अपने सेना के साथ खड़ा था। अलाउद्दीन वही शख्स था जो परम रूपवती रानी पद्मावती को पाना चाहता था और अपने हरम की रानी बना कर रखना चाहता था।  इसके लिए रानी पद्मावती को प्राप्त करने के लिए उसने दो बार मेवाड़ पर हमला किया लेकिन वीर राजपूतों के आगे उसकी सेना टिक ना सकी।
लेकिन रानी के प्रेम में खिलजी ने दुबारा मेवाड़ पर हमला किया। इस दौरान मुस्लमानों के हाथ जो भी स्त्रियां आई उनका या तो बलात्कार हुआ या फिर उन्होंने जौहर कर लिया। अंत में वो कालजयी क्षण आ गया जब महान सुन्दरी और वीरता और सतीत्व का प्रतीक महारानी पद्मावती उस रूई घी और चंदन की लकड़ियों से सजी चिता पे बैठ गई।
अगस्त 25, 1303 ई ० की भोर थी,.चिता शांत हो चुकी थी…राजपूत वीरांगनाओं की चीख पुकार से वातावरण द्रवित हो चूका था। राजपूत पुरुषों ने केसरिया साफे बाँध लिए….अपने अपने भाल पर जौहर की पवित्र भभूत से टीका किया….मुंह में प्रत्येक ने तुलसी का पता रखा। दुर्ग के द्वार खोल दिए गये….हर हर महादेव कि हुंकार लगाते राजपूत रणबांकुरे मेवाड़ी टूट पड़े अलाउदीन की सेना पर को हरा दिया। खिलजी की ये सबसे भी हार थी कि उसके इतना कुछ करने के बाद भी रानी पद्मिनी उसे नहीं मिल पाई।
हिन्दी साहित्य ने दी पद्मावती को साहित्य में जगह:

इतिहास के पाठ्यपुस्तक में पद्मावती की कोई भूमिका नहीं है। यह सच है कि 16वीं शताब्दी में हिन्दी साहित्य पद्मावत में मलिक मुहम्मद जायसी ने इस किरदार को ज़िंदा किया। हिन्दी साहित्य में पद्मावती की जगह है और साहित्य भी इतिहास का एक पार्ट होता है। हिन्दी साहित्य को पढ़ाने के लिए पद्मावती का विशेष रूप से इस्तेमाल करना चाहिए, लेकिन इतिहास के किताब में पद्मावती की कोई जगह नहीं है। यदि इतिहास की किताब में पद्मावती है तो यह भ्रमित करने वाला है।