ना जाने क्या होगा मछली, मगरमच्छ और इस तालाब का !

गलत इंसानों और तथ्यों को अपने जैसा माहौल बनाने में समय नहीं लगता और हमारा युवा इस रंग में इतना घुसता जा रहा हैं कि उसको खुद को किसी और हालात का अहसास ही नहीं हैं .. एक तालाब, कुछ मछलियों का झुण्ड, एक मगरमच्छ और एक नई मछली ... ना जाने आगे क्या होगा !

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वो कहते हैं न कि एक मछली पूरे तालाब को गन्दा कर सकती हैं, थोड़ा अजीब लगता हैं कि एक मछली कैसे तालाब को गन्दा कर सकती हैं ? अगर ऐसा होता हैं तो बहुत सारे सवाल पैदा होते हैं….

  • क्या वहां जो पहले से रह रही थी उनका अपना कुछ नहीं था जो वो उस एक के रंग में गई?
  • ऐसा क्या था जो पहले से ज्यादा संख्या में होने के बावजूद वो उस एक मछली को अपने जैसा नहीं बना पाई ?
  • अगर पूरे झुण्ड या समाज को बदलना इतना आसान हैं तो इतने सारे सामाजिक संस्थान आज तक समाज को क्यों नहीं बदल पाए? और भी बहुत से सवाल हैं जो जवाब की तलाश में मन के कोने में भटकने को व्याकुल रहते हैं।

मुझे लगता हैं कि ऐसा उस तालाब में ही हो सकता हैं जंहा कोई मगरमच्छ भी रहता होगा… बगैर मगरमच्छ के तो ये पॉसिबल हो ही नहीं सकता कि तालाब की सारी मछलियाँ एक गन्दी मछली की तरह हो जाए। खैर छोड़ों तालाब और मछलियों को मैंने तो आज आपको गणतंत्र दिवस की शुभकामनाये देने के लिए लिखना शुरू किया था और पता नहीं कौनसे तालाब, मछली  और मगरमच्छ में उलझ गया, पर करता भी क्या आज के युवाओं और उनके विचार सुनकर पढ़ कर ये सोचने पर विवश हो गया।

आज के युवा को देखो तो राष्ट्र भक्ति के नाम पर सिर्फ झण्डे के साथ सेल्फी या 15 अगस्त या 26 जनवरी के मौके पर प्रोफाइल पिक्चर में तिरंगा लगाना या इसके अलावा किसी एक के लिखे मैसेज और पिक्चर को बिना देखे दूसरे को फॉरवर्ड करना ही हैं ।

वो भी क्या दिन थे जब कई दिनों पहले ही तैयारियों में लग जाया करते थे। अक्सर नई स्कूल यूनिफार्म और जूते भी तो इस दिन का ही इंतजार करते थे। सुबह 5 बजे से ही तैयारियां शुरू हो जाती थी । देश भक्ति गाने बजते ही माहौल ऐसा हो जाता था कि पूछो मत, हर बच्चे और गाँव के आदमी-औरत को इस दिन का इंतजार रहता था। सारा गाँव एक जगह इक्ट्ठा होकर राष्ट्र धुन राष्ट्र ध्वज को सलामी देता था। संबोधन ही जय हिन्द और वन्देमातरम के हो जाते थे, अपने दिल पर तिरंगे का फीता लगाने पर गर्व माना जाता था ।

आज का आलम अलग ही हैं वन्देमातरम और जय हिंद सोशल मीडिया के कमेंट में कॉपी पेस्ट होने के लिए रह गए हैं और प्लास्टिक के तिरंगे सेल्फी की शोभा बढ़ा रहे पर किसी से बात करते हो क्या हैं गणतंत्र दिवस तो एक आध वाक्य के साथ लम्बी सी खामोशी !!!  दुःख तो तब होता हैं जब किसी को अपने कृत्व्य का बिल्कुल भी ख्याल नहीं हैं और अपने अधिकारों और सुविधाओं के लिए वापस आप उस तरफ ही देखते हैं और बगावत पर उतर आते हैं, खैर छोड़ो यार ये तो पुरे तालाब में ऐसी भंग घुली पड़ी हैं कही कुछ गड्डों में अभी भंग का असर नहीं पंहुचा हैं क्युकि वहां थोड़ी गहराई अधिक थी पर कितने दिन आखिर वहां भी ये मिट्टी इस गहराई को पाट देगी ।

अगर इन हालातों के लिए ज़िम्मेदार कौनसी मछली को ठहराया जाये या इसकी ज़िम्मेदारी कौनसे मगरमच्छ पर डाल दी जाये ? राष्ट्र भक्ति आएगी भी कहा से युवाओं में यहाँ देशभक्ति का ठेका तो कुछ लोगो ने ले रखा हैं और उनके हिसाब से देशभक्ति की परिभाषा भी हर दिन बदलती हैं, जो गाने देश के युवाओं को उस राष्ट्रहित की सोच पर ले जाते थे पर तो कुछ खास झुण्ड ने अपना मालिकाना हक ठोक रखा हैं । रही-सही कसर टीवी और सिनेमा ने निकाल दी और हमारे चौथे स्तम्भ ने उस पर मुहर लगाकर नए भारत का निर्माण कर दिया ।

ये तो सिर्फ एक मुद्दा हैं ऐसे बहुत से मुद्दे हैं जहाँ पता ही नहीं चलता कि कौन मछली हैं और कौन मगरमच्छ, बस हर बार तालाब बदल जाते हैं । ये तालाब कभी घर के रूप में, कभी गाँव, कभी शहर और कभी ऑफिस के रूप में नज़र आ जाते हैं

बस आपको गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं
जय हिन्द जय भारत