गणगौर उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया

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हनुमानगढ़। सोमवार को नगरपरिषद हनुमानगढ़ द्वारा हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी  गणगौर उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर नगरपरिषद सभापति गणेशराज बंसल कि पत्नि पूर्व नगरपालिका चेयरमैन एवं पार्षद श्रीमती सन्तोष बंसल, उपसभापति कि पत्नि पार्षद सुशीला खीचड़ नगरपरिषद निर्माण समिति अध्यक्ष कि पत्नि पार्षद मन्जु रणवां पार्षद रेखा भार्गव पार्षद असलम टाक,सहायक अभियन्ता वेदपाल सहारण,जेईएन विनोद पंचार,जेईएन सतवीर सिंह,  सफाई निरीक्षक प्रेमलता, जगदीश सिराव,प्रेम पारीक,लेखाअधिकारी देवेन्द्र कौशिक, करणी सिंह, सुन्दर बंसल व अन्य गणमान्य नागरीको ने ईसर व गणगौर की विधिवत पूजा अर्चना कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। इसके पश्चात् गणगौर की शोभा यात्रा निकाली गई। प्रेम पारीक ने बताया कि यह शोभायात्रा नगर परिषद कार्यालय से शुरू होकर भटनेर दुर्ग पर पहुची जॅहा पर शहर कि महिलाओं द्वारा पुजा कि गई । इस के पश्चात याोभा यात्रा बाजार से होती हुई रातलीला रंगमंच पर पहुची जहॉ सभी के दर्शनो के लिये रखी गई । गणगौर कि शोभा यात्रा बैण्ड बाजो के साथ ऊटों व घोड़ो पर सवार राजस्थानी वेशभूषा में सुसर्जित सवार बैठे थे । भटनेर दुर्ग पर भारी संख्या में महिलाओं ने ईशर गौर कि पुजा अर्चना की । इस मौके पर पूर्व पालिका चेयरमैन पार्षद सन्तोष बंसल  ने बताया गणगौर राजस्थान एवं सीमावर्ती मध्य प्रदेश का एक त्यौहार है जो चौत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को आता है। इस दिन कुवांरी लड़कियां एवं विवाहित महिलायें शिवजी (ईसर जी) और पार्वती जी (गौरी) की पूजा करती हैं। पूजा करते हुए दूध से पानी के छांटे देते हुए गोर गोर गोमती गीत गाती हैं। गणगौर राजस्थान में आस्था, प्रेम और पारिवारिक सौहार्द का सबसे बड़ा उत्सव है। गण (शिव) तथा गौर (पार्वती) के इस पर्व में कुँवारी लड़कियां मनपसंद वर पाने की कामना करती हैं। विवाहित महिलायें चौत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पूजन तथा व्रत कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। होलिका दहन के दूसरे दिन चौत्र कृष्ण प्रतिपदा से चौत्र शुक्ल तृतीया तक 18 दिनों तक चलने वाला त्योहार है .गणगौर। यह माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा आठ दिनों के बाद ईसर ;भगवान शिव उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं ,चौत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है। गणगौर की पूजा में गाये जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा हैं। राजस्थान के कई प्रदेशों में गणगौर पूजन एक आवश्यक वैवाहिक रस्म के रूप में भी प्रचलित है। गणगौर पूजन में कन्यायें और महिलायें अपने लिए अखंड सौभाग्य ,अपने पीहर और ससुराल की समृद्धि तथा गणगौर से हर वर्ष फिर से आने का आग्रह करती हैं । शोभा यात्रा के बाद रंगमंच पर सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये । बच्चो ने बढचढ कर भाग लिया जिसमें राजस्थानी,मारवाड़ी, पंजाबी, घूमर, कालबेलिया आदि नृत्य प्रस्तुत किये ।

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