संत्सग में सूक्ष्म रूप में देवता भी उपस्थित रहते है- साध्वी आनन्दप्रभा

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जिला संवाददाता भीलवाड़ा। जब हम सत्संग में उपस्थित रहते हैं, तब सत्संग की उच्च आध्यात्मिक सकारात्मकता का हम पर प्रभाव पडता है वातावरण दैवी चैतन्य से भर जाता है। इसमें प्रमुख सूक्ष्म घटक तत्व होता है । जब सत्संग में उच्च आध्यात्मिक स्तर के साधक उपस्थित होते हैं, जिनमें भाव और सीखने की वृत्ति भी है, तो सत्संग की आध्यात्मिक सकारात्मकता और बढ जाती है । कभी कभी अच्छी शक्तियां और देवता भी सूक्ष्म रूप से सत्संग में उपस्थित रहकर साधकों पर कृपा करते हैं । उक्त विचार तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या साध्वी आनंद प्रभा ने शिवपुर ग्राम में लादूलाल गन्ना के निवास पर आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किये। साध्वी ने कहा कि जब मैं उत्तर अमरीका से स्काइप सत्संग में सहभागी हुई तब सत्संग के अन्य साधकों से मेरा परिचय नहीं था । आरंभ में मैं चुप रही और अन्य साधकों की बातें सुनती रही । सत्संग-प्रमुख अत्यंत स्नेह और उत्साह से सभी साधकों तक पहुंचने का प्रयास कर रही थीं । उनका प्रेम मेरे हृदय को छू गया । जब अन्य साधक खुलकर अपनी साधना में आने वाली अडचनें बताने लगे, तब मुझे उनसे आत्मीयता लगने लगी । मैंने भी नवकार जप आरंभ करने पर हुई एक अनुभूति सुनाई । जब सत्संग समाप्त होने लगा, तब मुझे लगा जैसे मैं सभी साधकों से परिचित हूं और हम सब साधना के सूत्र से बंधे हुए हैं । दैनिक जीवन के अनुभवों से यह बहुत भिन्न था सत्संग में रहने से अन्य साधकों के प्रति आत्मीयता हो जाती है । सांसारिक संबंधों से भिन्न,साधकों के संबंध का केंद्र बिंदु है आध्यात्मिक प्रगति । इसलिए इस संबंध में अपेक्षा का भाग अल्प होता है तथा एक-दूसरे की सहायता करने पर और एक-दूसरे से सीखने पर अधिक ध्यान होता है । सत्संग, सकारात्मक संबंधों के पोषण और विकास का माध्यम (व्यासपीठ) बन जाता है । कुछ काल के उपरांत साधक अपेक्षा विरहित प्रेम का अनुभव करते हैं जिसे प्रीति कहते है इससे आगे की अवस्था में साधक संपूर्ण मानवता के लिए निरपेक्ष प्रेम का अनुभव करने लगता है यह सब सत्संग के पोषक आध्यात्मिक वातावरण के कारण ही संभव होता है ।इस अवसर पर साध्वी चन्दन बाला, साध्वी डॉ चंद्र प्रभा ,साध्वी विनीत रूप प्रज्ञा ने भी अपने भाव प्रकट किए धर्मसभा में चेनपुरा,शिवपुर ,सड़क का बॉडीया,आसींद के श्रावक श्राविकाएं उपस्थिति थे।

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