इच्छाओं को रोकने का नाम ही तप है – साध्वी आनन्दप्रभा

0
144

संवाददाता भीलवाड़ा। तप या तपस्या के असली मायने है जिंदगी को बहुत आसानी से जीना, हमारा जीवन इच्छाओं का अक्षय पात्र है और उनको पूरा करने के लिए हम अपने जीवन मे कितनी मुश्किलें खड़ी कर लेते है। संसार मे बिना तप के कुछ नही मिलता है और ऐसा कुछ भी नही है जिसे तप से प्राप्त न किया जा सके। जो तपस्या करते है उन्हें कभी भी नही रोकना चाहिए हमारे सभी 24 तीर्थंकरों ने तपस्या की है उक्त विचार तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या साध्वी आनन्दप्रभा ने महावीर भवन में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किये। साध्वी ने श्रीपाल चारित्र का वाचन करते हुए बताया कि नवपद नवकार से श्रीपालजी ने अपार शक्ति ग्रहण कर ली थी। घर परिवार छोड़कर जंगलों में जाना तप नही है। तप का लक्ष्य कर्मक्षय एवं इच्छाओं का विरोध है। इस लक्ष्य के साथ जो अंतरंग और बहिरंग प्रकार से तपस्या करता है वह कर्मो की निर्जरा करने में भी समर्थ होता है। तप, मन और बुद्धि का तप ही व्यक्ति को फर्श से अर्श तक ले जाता है। विषय- वासना के घोड़े पर दोड़ते इस देह रूपी रथ को मन और बुद्धि के द्वारा अंकुश में रखना तप है। पांचों इंद्रियों को चारो कषायों को रोक कर शुभ ध्यान की प्राप्ति के लिए आत्म चिंतन करना और एकाकी ध्यान में लीन होना तप है। वाणी का, मन
का,शरीर का तप करते रहना चाहिए। शरीर से झुकना, भगवान की पूजा करना,गुरुजनों का सम्मान करना यह शरीर के तप है। वाणी का तप है हमेशा मधुर वचन बोलना, सत्य वचन बोलना,हमेशा जिनेंद्र भगवान के द्वारा कहे गए वचनों को दोहराते रहना। मन का तप है मन में अच्छे विचार रखना, मन की प्रसन्नता बनी रहे इस बात का ध्यान रखना। कर्मो का क्षय करना ही तप है। धर्मसभा मे साध्वी डॉ चंद्रप्रभा ने अनुष्ठान करवाया। साध्वी चंदनबाला, साध्वी विनितरूप प्रज्ञा भी उपस्थित थे। बाहर से आये श्रवको का स्थानीय संघ ने शब्दो से स्वागत किया।

ताजा अपडेट्स के लिए आप पञ्चदूत मोबाइल ऐप डाउनलोड कर सकते हैं, ऐप को इंस्टॉल करने के लिए यहां क्लिक करें.. इसके अलावा आप हमें फेसबुकट्विटरइंस्ट्राग्राम और यूट्यूब चैनल पर फॉलो कर सकते हैं।