संवाददाता भीलवाड़ा। बच्चो को भौतिक शिक्षा के साथ – साथ आध्यात्मिक शिक्षा भी दे। जब तक बच्चो में आध्यात्मिक ज्ञान नही होगा तब तक वो तप, त्याग , दान , शील को सही ढंग से नही समझ पाएंगे। धर्म, अर्थ और कर्म इन तीनो पुरुषार्थो में इस तरह की प्रवर्ति करनी चाहिए कि हमारा जीवन संयमित और साधनामय बना रहे। हमे धर्म को प्रमुखता देनी चाहिए । धर्म रहेगा तो ही धन और काम नैतिक और संयमित रहेंगे। उक्त विचार तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या साध्वी डॉ चन्द्र प्रभा ने धर्मसभा में व्यक्त किये। साध्वी ने कहा कि पहला कर्तव्य माता पिता की सेवा करना है उनकी आज्ञा का पालन करना है। माता पिता की सेवा को कभी भी बोझ नही समझना चाहिए, उनकी सेवा को भाग्य भरोसे छोड़ने की बजाय स्वयं सेवा करने का पुण्य अर्जित करें। आप अगर माता पिता की सेवा करोगे तो आपकीं संतान भी आपकीं सेवा करेगी। बच्चा जो देखेगा वो ही तो करेगा। वर्तमान युग मे विवेक की कमी के कारण रिश्तों में कमी आ रही है। बेटा बाप की, बहु सास की, देवरानी जेठानी की , भाई – भाई की बात को नही मानकर अपने रिश्तों में कड़वाहट पैदा कर रहा है। परिवार में एक दूसरे का आदर करना सीखें।साध्वी आनन्दप्रभा ने कहा कि तप का जीवन मे बहुत बड़ा महत्व है। तपस्वी बहिन भावना मेहता द्वारा 9 उपवास की तपस्या करने पर तपस्या से 11 उपवास के भाई दीपक रांका द्वारा प्रत्याख्यान लेकर तपस्वी बहिन का सम्मान किया गया। इस अवसर पर आशा जैन, शिल्पा मेहता, मंजू नाहर, दीपक रांका , लक्ष्मी मेहता, विनीता मेहता , संपत लाल मेहता , पारस मल ओस्तवाल , प्रकाश चौधरी ने अपने विचार रखें।
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