संवाददाता भीलवाड़ा। महात्मा गांधी देश में सभी के लिए संस्कृत अनिवार्य करना चाहते थे वो जानते थे कि संस्कृत के बिना रामराज्य की कल्पना अधूरी है । महात्मा गांधी ने बैंगलोर की एक सभा में कहा था कि यह सच है कि हमारी सभी भाषाएं किसी न किसी रूप में संस्कृत से जुड़ी हुई हैं । उत्तर की भाषाएं उसकी पुत्रियां है तो दक्षिण की भाषाओं का स्वतंत्र उद्भव होते हुए भी संस्कृत के शब्दों से भरी हुई है और इसी का ही परिणाम है कि आज उत्तर की अपेक्षा दक्षिण भारत संस्कृत का बहुत बड़ा घर बन चुका है । यह बात संस्कृत भारती चित्तौड़ प्रांत द्वारा आयोजित 10 दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर के उद्घाटन कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्रीशभेड़ेस्गोनकर ने कही । श्री गोनकर ने कहा किे यदि कोई वस्तु जिसमें भारत का प्राचीन ज्ञान और संस्कृति की महानता समाई हुई है तो वह संस्कृत है । संस्कृत भारती इस कोरोना महामारी में भी लोगों को संस्कृत के प्रति जागरुक करने का कार्य निरंतर ऑनलाइन शिविरों के माध्यम से कर रही हैं । प्रांत संगठन मंत्री देवेंद्र पंड्या ने बताया कि ऑनलाइन संस्कृत संभाषण शिविर के उद्घाटन की अध्यक्षता श्रीमती अंजू योग शिक्षिका आर्ट ऑफ लिविंग कोटा ने की । इस अवसर पर श्रीमती अंजू ने शास्त्री जी के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए संस्कृत के प्रति शास्त्री जी के महत्वपूर्ण योगदान को स्मरण किया । शास्त्री जी स्वयं संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और अपने कार्यकाल में संस्कृत भाषा के उत्थान के लिए कार्य करते रहें । एक महान देशभक्त होने के साथ ही शास्त्री जी संस्कृत को भारत का उच्च चरित्र बल मानते थे । कार्यक्रम में मुख्य अतिथि वीरेंद्र शर्मा गायत्री परिवार अजमेर रहे । कार्यक्रम में अतिथि परिचय डॉ कृष्ण कुमार कुमावत प्रांत कार्य गण सदस्य ने करवाया । ध्येय मंत्र गरिमा मौर्य महानगर संपर्क प्रमुख अजमेर ने किया ।
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