दिल्ली: सहारा समूह और बिड़ला समूह की डायरियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम शामिल होने के मामले से जुड़ी सुनवाई से वरिष्ठ न्यायाधीश जेएस खेहर ने खुद को अलग कर लिया है। इसके अलावा मामले पर सुनवाई करते हुए अदालत ने एक बार फिर वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण से पक्के सबूतों के साथ आने की बात कही।
दरअसल, वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इसे रिश्वतखोरी का मामला बताते हुए उच्चतम न्यायालय में प्रधानमंत्री के खिलाफ मामला दायर किया था। इस मामले की शुक्रवार को सुनवाई थी। अदालत ने प्रशांत भूषण द्वारा पेश किए सबूतों को नाकाफी मानते हुए उनसे ठोस सबूत पेश करने को कहा।
अदालत ने कहा कि ये आरोप गंभीर हैं और उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के खिलाफ हैं। चूंकि देश के प्रधानमंत्री पर आरोप लगाए जा रहे हैं और प्रधानमंत्री पर यूं ही आरोप नहीं लगाए जा सकते, अगर पुख्ता सबूत हों तो मामले की आगे सुनवाई करेंगे।
अदालत ने प्रशांत भूषण से कहा कि अगर वे ऐसे ही आरोप लगाते रहेंगे तो संवैधानिक अथॉरिटी का काम करना मुश्किल हो जाएगा। अदालत ने कहा, ‘हमने पहले भी कहा था कि इस मामले में कोई सबूत देंगे, तो ही सुनवाई करेंगे।’ साथ ही अदालत ने प्रशांत को सबूतों के लिए और समय देने की मांग पर भी आपत्ति उठाई।
अदालत की आपत्ति पर प्रशांत भूषण ने अदालत की कार्यप्रणाली पर उंगली उठाते हुए कहा न्यायाधीश जेएस खेहर की महालेखा नियंत्रक की नियुक्ति की फाइल केंद्र सरकार के पास लंबित है और शायद यही बात हो कि आप इस मामले की सुनवाई नहीं कर रहे हैं।
प्रशांत भूषण की टिप्पणी पर खफा होते हुए न्यायाधीश खेहर ने कहा, “अगर आपके मन में ऐसी बात थी तो आपको पहली ही सुनवाई में कहना चाहिए था। यह बात गलत है, आपको अदालत पर पूरा भरोसा रखना चाहिए था।” यह कहते हुए जस्टिस खेहर ने खुद को सुनवाई से अलग करने की बात कही।
जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि आप देश की सबसे बड़ी अदालत पर शक जाहिर कर रहे हैं। वे इससे बिल्कुल इत्तेफाक नहीं रखते। उन्होंने कहा कि यह आरोप सबसे बड़ी संवैधानिक संस्था पर लगाया गया है और अवमानना जैसा है।
भूषण ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि वह न्यायाधीशों पर कोई आरोप नहीं लगा रहे हैं और न ही उन्हें बदलने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अदालत का अधिकारी होने के नाते इसका जिक्र करना उनका फर्ज था ताकि बाद में कोई आरोप न लगे।
प्रशांत भूषण ने अपने जवाब में कहा कि वे प्रधानमंत्री पर आरोप नहीं लगा रहे हैं। सहारा और बिड़ला समूह के पास से आयकर विभाग को ये सारे दस्तावेज मिले हैं। उनके पास 1,500 पेज की रिपोर्ट भी है, जिस पर वे हलफनामा दाखिल करेंगे।
अदालत ने कहा कि पिछली बार सुनवाई के दौरान शांति भूषण और राम जेठमलानी ने कहा था कि वे सबूत रिकॉर्ड के साथ कोर्ट में रखेंगे, लेकिन आज दोनों में से कोई नहीं है।
बता दें कि पहली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा और बिड़ला ग्रुप द्वारा बड़े नेताओं को करोड़ों रुपये देने के मामले की विशेष जांच टीम (एसआईटी) से जांच कराने से इंकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि क्योंकि मामला एक बड़े जनप्रतिनिधि से जुड़ा है, सिर्फ इसलिए मामले की जांच के आदेश नहीं दे सकते। जो कागजात दिए गए हैं, उनके आधार पर जांच नहीं कराई जा सकती, क्योंकि सहारा के दस्तावेज तो पहले ही फर्जी पाए गए हैं।
अदालत ने कहा था कि कोई भी किसी के नाम की कंप्यूटर में एंट्री कर सकता है, इसे तवज्जों नहीं दी जा सकती। याचिकाकर्ता कोई ठोस सबूत दे को सुनवाई कर सकते हैं। अगर कोई ठोस दस्तावेज ना मिलें तो मामले को फिर से कोर्ट ना लाएं।
प्रशांत भूषण की याचिका में कहा गया है कि सीबीआई और आयकर विभाग के छापे में जो दस्तावेज मिले थे कि उन्होंने कई नेताओं और कुछ राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं, इनको करोड़ों रुपये की घूस दी गई थी। इस मामले की सुप्रीम कोर्ट एसआईटी से जांच कराए और सीबीआई और आयकर विभाग के जब्त किए गए कागजातों को कोर्ट में मंगवाया जाए। अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 जनवरी को की जाएगी।