आज हम आपको बता रहे हैं ऐसे ही कुछ मंदिरों के बारें में जिनका अगर खजाना मिल जाए तो भारत एक बार फिर से सोने की चिड़िया बन सकता है…तो पढ़िए यहां…
हिमाचल प्रदेश के मंडी से करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित है कमरुनाग झील। स्थानीय लोग इस झील को पवित्र मानते हैं और उनका भरोसा है कि इस झील का अंत पाताल में होता है। ऐसी मान्यता है कि झील में गहने अर्पित करने से मनोकामना पूरी होती है। दूर दूर से लोग आकर गहने झील में डालते हैं और मनोकामना मांगते हैं। कहा जाता है कि यह झील महाभारतकालीन है। यहां एक मंदिर है जो लकड़ी का बना है और इसमें कमरुनाग की एक पुरानी मूर्ति भी रखी है। सदियों से इस झील में गहने और रुपये आदि चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। ये तो साफ है कि झाल की तलहटी में खजाना जना है लेकिन कितना ये कोई नहीं जानता।
ऐसा माना जाता है कि एक लाख करोड़ का खजाना अभी तक पद्मनाभ स्वामी मंदिर से निकाला जा चुका है और इससे भी अधिक खजाना वहां के तहखानों में दबा हुआ है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक 10वीं शताब्दी में इस मंदिर को बनवाया गया था। त्रावणकोर के शासकों ने अपना राज्य भगवान को समर्पित कर दिया। मंदिर से भगवान विष्णु की जो मूर्ति मिली है वो शालिग्राम की बनी हुई है। इस मंदिर पर कभी कोई विदेशी हमला नहीं हुआ। 1790 में टीपू सुल्तान ने ऐसा प्रयास तो किया लेकिन वह भी सफल नहीं हो पाए। 2011 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मंदिर के पांच तहखाने खोले गए जिनमें से एक लाख करोड़ की संपत्ति निकली। लेकिन एक तहखाना अभी बंद है और माना जा रहा है कि इसमें बेहद अनमोल चीजें हो सकती हैं।
खजाने की एक कहानी बिहार से भी है। माना जाता है कि बिहार के राजगीर की सोनगुफा में बेशुमार सोना दफन है। बौद्ध और जैन दोनों ही धर्मों के लोग यहां की गुफाओं को पवित्र बताते हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग के मुताबिक ये गुफाएं तीसरी-चौथी शताब्दी की हैं। सरकारी शिलालेखों के मुताबिक यहां रथ के पहियों और शंख भाषा में लिखे कुछ अंश मिले थे। ऐसा कहा जाता है कि खजाना अजातशत्रु को ना मिल जाए इसलिए बिम्बिसार ने खजाने को गुफाओं की भूलभुलैया में दबा दिया। इन्ही कहानियों को सुनने के बाद अंग्रेजों ने भी गुफा को तोप से उड़ाने की कोशिश की थी लेकिन असफल रहे। यहां से जो मूर्ति मिली थी वह नालंदा संग्रहालय में रखी है।
सुल्तान मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने गोलकुंडा किले और चारमीनार के बीच 15 फुट चौड़ी और 30 फुट ऊंची भूमिगत सुरंग बनवाई थी। कहा जाता है कि इस सुरंग में शाही परिवार ने अपना शाही खजाना छुपाया था। कई लोग दावा करते हैं कि ये खजाना आज भी यहीं मौजूद है। माना जाता है कि वैसे सुरंत को मुश्किल वक्त पर जान बचाने के लिए बनाया गया था लेकिन बाद में इसका इस्तेमाल खजाने को छुपाने के लिए किया गया। 1936 में निजाम मीर ओसमान अली ने एक नक्शा बनवाया था लेकिन खुदाई नहीं कराई गई। अभी भी कई लोग मानते हैं कि ये खजाना ढूंढने पर मिल सकता है।