28% मौत का कारण भारतीय थाली से गायब होते मोटे अनाज और मौसमी फल: रिपोर्ट

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लाइफस्टाइल डेस्क: दुनियाभर के 16 देशों के 37 वैज्ञानिकों ने 3 साल के अध्ययन के बाद एक रिपोर्ट तैयार की है। जिसका नाम ‘फूड प्लेनेट हेल्थ’ है। इस रिपोर्ट में वैज्ञानिकों का कहना है कि भारतीय मोटे अनाज स्वस्थ जीवन के लिए काफी फायदेमंद है। उन्होंने ये भी चिंता जताई है कि अब उच्च कैलोरी वाले यह परंपरागत मोटे अनाज अब हमारी थाली से गायब हो गए हैं।

इसकी खेती पर्यावरण के लिए भी अच्छी है। पर 50 वर्षों में भारत में मोटे अनाजों का रकबा 60% तक घटा है। इसके स्थान पर अब चावल और गेहूं की उपज ज्यादा ली जाने लगी है। जबकि चावल और गेहूं ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं। जो शरीर पर काफी गलत प्रभाव डालते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि 232 ग्राम मोटे अनाज में सबसे ज्यादा 811 कैलोरी होती है।

रिपोर्ट के अनुसार भोजन में प्लांटबेस्ड फूड अधिक और एनिमल सोर्स फूड कम होना चाहिए। भोजन में स्थानीय स्तर पर पाए जाने वाली मौसमी सब्जियां और फलों की मात्रा 50% तो होनी ही चाहिए। बाकी आधा हिस्सा मोटा अनाज, फलियां, नट्स, तेल, एनिमल फूड से लिया जाना चाहिए। ऐसे भोजन पर निर्भर रहने से खेती से होने वाली ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भी 50% तक की कमी आ सकती है।

भारत में बिगड़ा खाने का तरीका-
भारत में भोजन का तरीका बिगड़ रहा है, इस वजह से तीन दशक से डायबिटीज, मोटापा और दिल की बीमारी के मरीज तेजी से बढ़े हैं। 1990 से भारत में 28% मौतें इन्हीं बीमारियों की वजह से हो रही हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, खेती में 70% ताजे पानी का इस्तेमाल होता है। यानी वो पानी जो हम जमीन के अंदर, तालाब, नदियों और झीलों से लेते हैं। खेत बढ़ाने के लिए जंगलों को काटा जा रहा है। इससे जैव विविधता तबाह हो रही है।

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