घरेलू प्रदूषण ले रहा है आपकी जान

भारत में सर्वाधिक मौतों के लिए घरेलू वायु प्रदूषण दूसरा सबसे बड़ा कारण है। हर साल घरों में होने वाले प्रदूषण से 527,700 लोगों की मौत होती है।

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प्रदूषण के नाम पर सबसे पहले शहर ही याद आते हैं, सड़क पर वाहनों की भीड़ उनसे निकलने वाले धुएं, बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों की चिमनियों से निकलने वाला गाढ़ा तरल पदार्थ आदि ऐसी ही तस्वीर उभर कर हमारे सामने आती है। लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि आपके घर के अंदर मौजूद हवा बाहरी हवा से कई ज्यादा प्रदूषित है। अब आप सोचेंगे कैसे? उससे पहले आपको बता दें कि आने वाले समय में 90% मौत का बड़ा कारण आपके घर के अंदर मौजूद हवा होगी। जिससे घरेलू प्रदूषण कहा जाता है।

एक रिपोर्ट बताती है कि घर के अंदर का वायु प्रदूषण (घरेलू प्रदूषण) लगभग 13 लाख मौतों का सबसे बड़ा कारण है। भारत में शहरों में रहने वाले लोगों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। वाहनों, फैक्ट्री तथा कचरा जलाने से निकलने वाला धुआं शहरों में पीएम 2.5 का मुख्य स्रोत है। ऐसा नहीं हैं कि शहर के ही लोग ही पीएम 2.5 से प्रभावित हो रहे हैं और गांवों में रहने वाले इससे सुरक्षित हैं। गांव में कई घरों में आज भी खाना लकड़ी, गोबर के उपलों या कचरे को जलाकर बनता है, जो पीएम 2.5 का बहुत बड़ा स्रोत है।

इस मामले में दिल्ली का हाल तो सबसे बुरा है। दिल्ली विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में है। ऐसे में घर के अंदर होने वाले वायु प्रदूषण के प्रति भी जागरूकता फैलाना बेहद जरूरी है। ऐसा हम नहीं बल्कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट का भी दावा है कि घरों के अंदर होने वाला प्रदूषण वैश्विक पर्यावरण की सबसे बड़ी समस्या है। दुनिया भर में घरों में होने वाले प्रदूषण से हर साल 43 लाख लोगों की मौत होती है। यह दुनिया भर में एक साल में प्राकृतिक हादसों से होने वाली मौतों से 45 गुना ज्यादा है, जबकि एड्स से हर साल दम तोड़ने वाले मरीजों की संख्या से दोगुनी है।

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज की 2014 की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में सर्वाधिक मौतों के लिए घरेलू वायु प्रदूषण दूसरा सबसे बड़ा कारण है। हर साल घरों में होने वाले प्रदूषण से 527,700 लोगों की मौत होती है। हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय शहरों में घरों में होने वाला प्रदूषण घरों से बाहर होने वाले प्रदूषण की तुलना में 10 गुना ज्यादा होता है। अब आप सोचेंगे कि आपके घरों में खाने बनाने के अलावा और कोई काम नहीं होता फिर प्रदूषण कैसे? तो शायद आपने कभी ध्यान नहीं दिया कि आपके घर को चमकाने वाली चीजों के रूप में कंपनियां आपके मौत का समान बांट रही है।

आप हम घर से बाहर वायु की गुणवत्ता की निगरानी नहीं कर सकते, लेकिन घर के भीतर होने वाले प्रदूषण पर नियंत्रण रख सकते हैं। रसोई से निकलने वाला धुआं, अगरबत्ती, डिर्टजेट, पेंट के केमिकल से निकलने वाली गंध, फर्श साफ करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली फिनाइल, रूम फ्रेशनर, धूल, वायरस, बैक्टीरिया, सिगरेट से निकलने वाला धुआं ज्यादातर घरों में मौजूद रहता है, जिसमें लोग सांस लेने को मजबूर रहते हैं।

भारत में घरेलू प्रदूषण की स्थिति-
भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही उज्जवला योजना से कई गांवों को फायदा हुआ लेकिन अभी तक ये योजना पूरी तरह से कारगर साबित नहीं हुई है। भारत में आज भी खाना पकाने के लिए पारंपरिक ईधन का इस्तेमाल किया जाता है। ईंधन का उपयोग करने वाले 0.2 बिलियन लोगों में से; 49% जलाऊ लकड़ी का उपयोग करें, 8.9% गाय का गोबर, 1.5% कोयला, लिग्नाइट, या चारकोल, 2.9% केरोसीन, 28.6% द्रवीभूत पेट्रोलियम गैस (LPG), 0.1% बिजली, 0.4% बायोगैस, और 0.5% अन्य साधनों का इस्तेमाल करते हैं।

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कितना खतरनाक है धुंआ-
एक अनुमान मुताबिक, भारत में बच्चों, महिलाओं और पुरुषों को क्रमश: 285 माइक्रोग्राम, 337 माइक्रोग्राम और 204 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पीएम 2.5 का प्रदूषण से रोजाना गुजरना पड़ता है। खाना पकने के दौरान अधिकतम वायु प्रदूषण, रोजाना औसत प्रदूषण के इन आंकड़ों से कई गुना अधिक हो सकता है। वैज्ञानिकों के अध्ययन में निकलकर आया है कि जिन घरों में ठोस ईंधन का इस्तेमाल होता है वहां 24 घंटे के दौरान प्रदूषक कणों का औसत घनत्व 570 माइक्रोग्राम तक हो सकता है, जबकि रसोई गैस का प्रयोग करने वाले घरों में इसकी मात्रा 80 माइक्रोग्राम रहती है। घरों में ठोस ईंधन से पैदा वायु प्रदूषण बाहर फैले वायु प्रदूषण से कहीं ज्यादा खतरनाक होता है।

घरेलू प्रदूषण से होने वाली बीमारियां-
धुएं में मौजूद बारीक कण, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे हानिकारक प्रदूषकों के सांस में जाने से लोगों को सीओपीडी का जोखिम हो सकता है। यह मामला विशेष रूप से महिलाओं में ज्यादा मिलते हैं। क्योंकि वह सबसे ज्यादा किचन में समय बीताती हैं। घरेलू प्रदूषण से दमा, खराब फेफड़े, निमोनिया, ब्रोकाइटिस, कमजोर दिल, खून का कैंसर, यकृत कैंसर, ऑटिज्म, समय से पहले मौत आदि बीमारियां होती है।

इन चीजों से भी होता घरेलू प्रदूषण-
छतों और टाइल्स जैसी निर्माण सामग्री में प्रयुक्त एस्बेस्टस और ग्लास फाइबर, रॉक वूल, सिरेमिक फाइबर में उपस्थित फाइबर्स से फेफड़ों का कैंसर और मेसोथेलियोमा हो सकता है। इसके अलावा कई घरेलू चीजों जैसे फर्निशिंग, प्रिंटर, गोंद, पेंट, पेंट स्ट्रिपर्स, वुड प्रजर्वेटिव्स, एयरोसोल स्प्रे, क्लीनर, मॉथ रिपेलेंट और एयर फ्रेशनर, ईंधन और मोटर वाहन प्रोडक्ट, कीटनाशकों आदि से कार्बनिक यौगिक निकलते हैं, जो सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

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केंद्र सरकार ने पिछले पांच सालों से उज्जवला योजना चलाई है। जिसके तहत सरकार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले करीब डेढ़ करोड परिवारों को रसोई गैस मुहैया कराएगी। हाल ही आम चुनावों से पहले आई रिपोर्ट में आंकड़े कहते हैं सरकार अपना लक्ष्य पूरा करने में लगभग पूरी सी साबित हुई है लेकिन यदि बात जमीनी हकीकत की करे तो रसोई गैस का इस्तेमाल करना हर गरीब के लिए काफी मुश्किल है। घरेलू प्रदूषण को लेकर आज भी भारत में उतनी जागरूकता नहीं जितनी होनी चाहिए। इस दिशा में सभी के प्रयास की जरूरत है।

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